कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम की खंडपीठ और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई को होने वाले पंचायत चुनावों के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से एक पर्यवेक्षक रखने पर आदेश सुरक्षित रख लिया।
एनएचआरसी ने 11 जून को पंचायत चुनावों के लिए स्वतंत्र पर्यवेक्षक के रूप में अपने महानिदेशक (जांच) दामोदर सारंगी की नियुक्ति की घोषणा की थी। इस संबंध में एक पत्र उसी दिन एनएचआरसी द्वारा राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) और राज्य सचिवालय को भेज दिया गया था। नामांकन दाखिल करने के चरण के दौरान हिंसा की रिपोर्टों पर एनएचआरसी द्वारा स्वत: संज्ञान लेने के बाद यह कदम उठाया गया।
हालांकि, एसईसी ने एनएचआरसी के इस कदम का विरोध किया और इस संबंध में एक याचिका के साथ कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 23 जून को न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल-न्यायाधीश पीठ ने ग्रामीण नागरिक निकाय चुनावों के लिए एक स्वतंत्र पर्यवेक्षक नियुक्त करने के एनएचआरसी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
एनएचआरसी ने उचित समय पर मुख्य न्यायाधीश शिवगणनम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में फैसले को चुनौती दी।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान एनएचआरसी के वकील अमन लेखी ने तर्क दिया कि अदालत एनएचआरसी के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, जो मानवाधिकार सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है।
लेखी ने तर्क दिया, “यही कारण है कि एनएचआरसी ने ग्रामीण नागरिक निकाय चुनावों से पहले हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में स्थिति की समीक्षा करने के लिए पर्यवेक्षकों को नियुक्त करने का निर्णय लिया। एनएचआरसी ऐसी स्थितियों की स्वत: समीक्षा करता है और तदनुसार सिफारिशें देता है। एनएचआरसी का एकमात्र कार्य मानव अधिकारों को सुनिश्चित करना है। इस मामले में कोई राजनीतिक मकसद शामिल नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि अदालत के आदेश ने इसे नजरअंदाज कर दिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि 2018 में पंचायत चुनावों और 2021 में विधानसभा चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा और रक्तपात हुआ था, इसलिए एनएचआरसी 2023 में इसकी पुनरावृत्ति नहीं चाहता है।
उन्होंने कहा, अगर हर दिन मानवाधिकारों का हनन होता है तो एनएचआरसी चुप नहीं रह सकता।
एसईसी के वकील जयंत मित्रा ने दावा किया कि एनएचआरसी का कदम राजनीति से प्रेरित है।
मित्रा ने कहा, ज्यादा रसोइयों का हाथ लगने से शोरबा खराब हो जाता है। राज्य निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्था कानून-व्यवस्था की स्थिति पर लगातार नजर रख रही है। न्यायालय मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए नियमित निर्देश दे रहा है। ऐसी स्थिति में एनएचआरसी, जो एक संवैधानिक निकाय नहीं है, इस मामले में कैसे हस्तक्षेप कर सकता है।”
राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि जब अन्य राज्यों में चुनाव संबंधी हिंसा होती है तो एनएचआरसी पर्यवेक्षक नहीं भेजता है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने आज के लिए अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
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Source : IANS