कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने मंगलवार को माकपा से संबद्ध राज्य सरकार के कर्मचारी संघ, पश्चिम बंगाल राज्य समन्वय समिति को गुरुवार को सचिवालय मार्च आंदोलन करने की अनुमति दी। कर्मचारी संघ बढ़े हुए महंगाई भत्ते व बकाये का भुगतान करने की मांग कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने दो दौर में दिनभर चली सुनवाई के बाद मंगलवार की दोपहर में अनुमति देते हुए राज्य सरकार से इस रैली के लिए अनुमति नहीं देने का कारण पूछा।
राज्य सरकार ने अदालत में दलील दी कि चूंकि ट्रेड यूनियन निकाय द्वारा प्रस्तावित रैली के मार्ग में भीड़ रहती है, ऐसे में जुलूस से यातायात जाम हो सकता है और यात्रियों को सप्ताह भर के लिए असुविधा हो सकती है। राज्य सरकार ने यह भी तर्क दिया कि वह वैकल्पिक मार्ग पर रैली के लिए सहमत थी।
राज्य सरकार का तर्क स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति मंथा ने सवाल किया कि क्या पुलिस को सत्तापक्ष द्वारा निकाली जाने वाली रैलियों के कारण इसी तरह की असुविधाओं की आशंका नहीं रहती?
जस्टिस मंथा ने कहा, मेरा सवाल यह है कि आप जिन प्रतिबंधों की बात कर रहे हैं, क्या वे सत्तारूढ़ दल की रैलियों के मामले में लागू होंगे? क्या पुलिस को इस तरह की असुविधाओं का सामना नहीं करना पड़ता, जब राजनीतिक रैलियां व्यस्त रेड रोड पर रैलियां करती हैं और पूरे शहर का ट्रैफिक जाम कर देती हैं। क्या पुलिस को उस मामले में यह कोई समस्या नहीं लगती?
साथ ही, उन्होंने पश्चिम बंगाल राज्य समन्वय समिति को रैली का मार्ग बदलने का सुझाव दिया। उनके मुताबिक, गुरुवार को दोपहर 2.30 बजे और शाम 4.30 बजे के बीच रैली पूरी कर लेनी चाहिए।
इससे पहले दिन में न्यायमूर्ति मंथा ने सवाल किया कि विरोध प्रदर्शन की अनुमति के लिए प्रदर्शनकारियों को हर बार अदालत का दरवाजा क्यों खटखटाना पड़ेगा। उन्होंने कहा, शांतिपूर्वक विरोध करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का लोकतांत्रिक अधिकार है। इस विशेष मामले में प्रदर्शनकारी राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। राज्य सरकार निश्चित रूप से कुछ प्रतिबंध लगा सकती है, लेकिन विरोध कार्यक्रमों को निश्चित रूप से नहीं रोक सकती।
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Source : IANS