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राज्यसभा से पास होने के बाद भी लटक सकता है कोई बिल, जानिए कब हुआ था ये

किसी भी नए कानून को संसद से पारित करवाने के लिए उस बिल को एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसके बाद वह नये कानून का रूप ले लेता है.

Updated on: 11 Dec 2019, 08:55 PM

नई दिल्‍ली:

नागरिता संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पास हो चुका है बुधवार को राज्यसभा में बिल के पक्ष में 125 वोट और विपक्ष में 105 वोट पड़े. आपको बता दें कि कोई भी बिल लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी पास हो जाने के बाद एक कानून का रूप लेता है. किसी भी नए कानून को संसद से पारित करवाने के लिए उस बिल को एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसके बाद वह नये कानून का रूप ले लेता है. लेकिन, हम आपको यह भी बता दें कि भारतीय इतिहास में ऐसा भी हुआ है जब कोई बिल संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद भी कानून का रूप नहीं ले पाया है. आइये हम आपको बताते हैं कि भारतीय इतिहास में ऐसा कब हुआ.

जानिए क्या होता है बिल
किसी पुराने कानून को बदलने के लिए, उसमें संशोधन करने के लिए या फिर नया कानून लाने के लिए सबसे पहले अधिनियम लाया जाता है. प्रथम चरण में पुराने कानून को बदलने के लिए सबसे पहले अधिनियम लाया जाता है फिर उस अधिनियम को कानून बनाने के लिए सुझाव या फिर मुख्य प्रस्ताव लाए जाते हैं ऐसा ही पुराने कानून में संशोधन करने के लिए किया जाता. विधेयक एक तरह का प्रस्ताव होता है, जिसे कानून में रूप में ढालने के लिए इसे तीन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. विधेयक को कानून बनाने के लिए 5 चरणों से गुजरना होता है.

पहले तीन चरणों की प्रक्रिया
किसी भी विधेयक को कानून में बदलने के लिए सबसे पहले उसे तीन चरणों से गुजरना पड़ता है. पहले चरण में विधेयक पर संसद के लोकसभा में चर्चा की जाती है जबकि दूसरे चरण में इसे उच्च सदन यानि कि राज्यसभा में चर्चा की जाती है. तीसरे चरण में दोनों सदनों में चर्चा के बाद विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाता है. इसके बाद चौथे चरण में विधेयक को दोनों सदनों की साझा बैठक में पास किया जाता है. विधेयक के अंतिम यानी पांचवें चरण में इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. फिर राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद ही ये विधेयक कानून का रूप ले लेता है. यहां आपको बता दें कि अगर राष्ट्रपति चाहे तो नियमों के मुताबिक अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल करके इस बिल को लटका सकता है.

संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद वोटिंग होती है
संसद के दोनों सदनों में पहले विधेयक पर चर्चा की जाती है जिसके बाद सवालों और संशोधनों को लेकर संसद के सदस्यों से वोटिंग करवाई जाती है. जिसके बाद विधेयक पर चर्चा शुरू होती है. इन प्रक्रियाओं के बाद इस बिल पर उठे सवालों को वोट के लिए सदन में रखा जाता है. इसके बाद सदन में पास होने के बाद बिल को आधिकारिक राजपत्र के तौर पर छापा जाता है. आपको बता दें कि यह सिर्फ स्पीकर की इजाजत से हो सकता है. चर्चा के बाद विधेयक में संशोधन के सुझाव को शामिल किया जाता है इसके बाद विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाता है.

राष्ट्रपति की मुहर भी जरूरी
सबसे आखिरी और पांचवें चरण में संचालक अधिकारी विधेयक की जांच-पड़ताल करके इस बिल पर एक रिपोर्ट तैयार करता है. स्टैंगिंग कमेटी विधेयक पर विशेषज्ञों से राय लेकर सुझावों को विधेयक में शामिल किया जा सकता है. राज्यसभा में भी पूरी प्रक्रियाएं एक बार फिर से दोहराई जाती है. जिसके बाद राज्यसभा से बिल पास होने के बाद दोनों सदनों की साझा बैठक होती है बैठक के बाद यह राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है राष्ट्रपति की मुहर के बाद यह कानून का रूप ले लेता है और पूरे देश में लागू कर दिया जाता है.

ज्ञानी जैल सिंह ने लटकाया था बिल
ब्लू स्टार ऑपरेशन के बाद 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी को उनके ही सुरक्षा दस्ते के दो सिख जवानों ने गोली मार दी थी. उस समय तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ओमान के दौरे पर थे ऐसे में उपराष्ट्रपति ने बिना उनका इंतजार किए ही इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी को पश्चिम बंगाल के दौरे से बुलाकर पीएम पद की शपथ दिलवा दी थी. जिसके बाद राजीव गांधी और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के बीच दूरियां बढ़ गई थीं. जिसके बाद एक संवैधानिक व्यवस्था के सहारे ज्ञानी जैल सिंह ने सरकार पर नकेल कसनी शुरू की. जब राजीव गांधी सरकार ने राज्यसभा से भी पास हो चुका पोस्टल अमेंडमेंट बिल राष्ट्रपति के पास भेजा तो ज्ञानी जैल सिंह ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर यह बिल लटका दिया था. आपको बता दें कि इस वीटो पॉवर से राष्ट्रपति स्वीकृति के लिए आए किसी बिल को अनियमित काल तक अपने पास रोक सकते हैं.