दक्षिण के राज्य केरल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश में पूरी तरह से जुट गई है।
अगर यह कहा जाए कि पार्टी प्रेसिडेंट अमित शाह के लिए केरल में पार्टी को स्थापित करना सबसे बड़ी प्राथमिकता बन चुका है, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी।
शाह आज से केरल में पदयात्रा की शुरुआत कर रहे हैं। शाह की इस यात्रा का नाम 'जनसुरक्षा' यात्रा रखा गया है जो केरल के कन्नूर जिले से निकलकर राजधानी त्रिवेंद्रम तक जाएगी।
पार्टी का कहना है कि वह राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बीजेपी के कार्यकर्ताओं की लगातार हो रही हत्या के खिलाफ यात्रा निकाल रही है।
बीजेपी की जमीनी टक्कर
हालांकि यह यात्रा सीधे तौर पर केरल की वामपंथी सरकार के खिलाफ बीजेपी की सियासी जंग की शुरुआती होगी।
शाह इससे पहले भी केरल की यात्रा कर चुके हैं और हाल ही में हुई पार्टी कार्यकर्ता की ह्त्या के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी केरल का दौरा किया था।
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मृतक कार्यकर्ता के परिवार से मिलने के बाद जेटली ने कहा कि राज्य में जारी राजनीतिक हिंसा से पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर कोई असर नहीं होगा और नहीं पार्टी की विचारधारा को दबाया जा सकेगा।
जेटली ने कहा, 'इस तरह की हिंसा से केरल में न तो हमारी विचारधारा दबेगी और नहीं हमारे कार्यकर्ता भयभीत होंगे।'
वैचारिक जंग का अखाड़ा बना केरल
केरल बीजेपी-संघ कार्यकर्ता और सीपीएम कार्यकर्ताओं के बीच खूनी लड़ाई का अखाड़ा रहा है और इसमें दोनों तरफ के कई कार्यकर्ताओं की जान जा चुकी है। दोनों ही पक्ष इन हत्याओं के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं।
ऐसे में इस यात्रा का मकसद बीजेपी और संघ के कार्यकर्ताओं को यह संदेश देना है कि उनकी इस राजनीतिक लड़ाई में पार्टी पूरी तरह से उनके साथ है।
यही वजह है कि शाह की इस यात्रा में मोदी की पूरी कैबिनेट शामिल हो रही है।
लोकसभा सीटों के लिहाज से केरल उतना अहम नहीं है। लेकिन विचारधारा आधारित लड़ाई में यह बीजेपी और संघ के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
इसका अंजादा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां नई दिल्ली में बीजेपी की कार्यकारिणी में केरल हिंसा को लेकर हुई चर्चा के बाद इस यात्रा के आयोजन पर मुहर लगाई गई थी वहीं विजयादशमी के दिन हुए संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अपने भाषण में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की सरकार पर राष्ट्र विरोधी तत्व के समर्थन का आरोप लगाया था।
भागवत ने बंगाल और केरल का जिक्र करते हुए कहा था कि इन राज्यों में जेहादी ताकतें सक्रिय हैं और इन्हें रोकने के लिए राज्य सरकारें काम नहीं कर रही हैं।
इसके बाद फेसबुक पोस्ट के जरिये विजयन ने संघ प्रमुख को जवाब दिया था। विजयन ने संघ को राष्ट्रभक्ति का पाठ नहीं पढाए जाने की नसीहत दी थी।
विजयन ने कहा था कि आजादी की लड़ाई में केरलवासियों का योगदान स्मरणीय है और जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को पीठ दिखाकर ब्रिटिश हुकूमत को गले लगाया, उस आरएसएस को केरलवासियों को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने की जरूरत नहीं है।
सियासी जमीन बनाने की चुनौती
दक्षिण के राज्यों में केरल पार्टी संगठन और विचारधारा दोनों के लिहाज से बीजेपी- संघ के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।
अभी तक केरल की राजनीति वामपंथी गठबंधन और कांग्रेसी गठबंधन के बीच केंद्रित रही है।
हालांकि 2016 में राज्य की 140 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक सीट जीतने में सफल रही। केरल की सियासत में बीजेपी ने इस सीट के साथ अपना खाता खोला। हालांकि सबसे अधिक चौंकाने वाली बात पार्टी को मिला मत प्रतिशत रहा।
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राज्य की सत्तारुढ़ गठबंधन एलडीएफ को जहां 43.31 फीसदी वोट मिले वहीं बीजेपी की गठबंधन को 15.20 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ गठबंधन 38.86 फीसदी मत के साथ दूसरे नंबर पर रही।
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले पार्टी के वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ। 2014 के आम चुनाव में पार्टी ने कुल 18 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 10.33 फीसदी मत मिले। केरल में लोकसभा की कुल 20 सीटें हैं।
पिछले दो चुनावों में बीजेपी के मत प्रतिशत में इजाफा हुआ है और यह बीजेपी की सियासी उम्मीदों को बल दे रही है।
HIGHLIGHTS
- केरल में आज से शुरू होगी बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह की जनसुरक्षा यात्रा
- आरएसएस-बीजेपी बनाम सीपीएम के बीच वैचारिक जंग का अखाड़ा बना केरल
Source : News Nation Bureau