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जसवंत सिंह के राजनीतिक करियर के वो बड़े फैसले, जिससे उनके कद को मिली थी ऊंचाई

जसवंत सिंह ने अपने राजनीतिक करियर में कई ऐसे फैसले लिए थे जो मील के पत्थर साबित हुए थे.

Updated on: 27 Sep 2020, 08:12 PM

नई दिल्‍ली:

भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक और पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का रविवार को 82 साल की उम्र में निधन हो गया. वो काफी लंबे से कोमा में थे. कभी अटल बिहारी वाजपेयी के हनुमान कहे जाने वाले जसवंत सिंह एनडीए सरकार में विदेश, रक्षा और वित्त मंत्री के पदों पर रह चुके थे. जसवंत सिंह ने अपने राजनीतिक करियर में कई ऐसे फैसले लिए थे जो मील के पत्थर साबित हुए. पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्तों की बात करें या फिर परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों से संबंधों की बेहतरी की बात हो एक केंद्रीय मंत्री को तौर पर जसवंत सिंह ने अपना किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया.

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बंग्लादेश के साथ रिश्ते सुधराने की हरसंभव कोशिश की थी. जसवंत सिंह का भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच शांति का सपना भी अधूरा ही रह गया. आपको बता दें कि एक बार जसवंत सिंह ने भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश को लेकर ये कहा था कि ये तीनों देश एक ही मां की सिजेरियन प्रसव से पैदा हुई संतानें हैं, जिनके बीच आपसी संबंध अच्छे होने चाहिए इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश भी की थी.

संसद पर हमले के बाद युद्ध के पक्ष में नहीं थे जसवंत सिंह
साल 2001 में भारतीय संसद पर पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला कर दिया था जिसके बाद देश की सभी राजनीतिक पार्टियां इस बात पर सहमत हो गईं थीं कि इस हमले की जवाबी कार्रवाई की जाए. भारतीय सेना ने सीमा पर जवानों की तैनाती भी कर दी थी लेकिन उस समय जसवंत सिंह पर ऐसे आरोप लगे थे कि उन्होंने इस जवाबी कार्रवाई को रोकने के लिए अपना पूरा जोर लगा दिया था. मुनाबाव-खोखरापार के बीच थार एक्सप्रेस चलवाकर उन्होंने दोनों देशों के रिश्ते सुधारने की ओर एक कदम बढ़ाया था. यही नहीं पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बस को लेकर पाकिस्तान के लाहौर गए थे.

परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया मजबूत देशों से बेहतर संबंध बनाए
साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दो दिनों के अंतराल में 5 परमाणु परीक्षण कर पूरे विश्व को असमंजस में डाल दिया था, जिसके बाद दुनिया के लगभग सभी मजबूत देश एकजुट होकर भारत के खिलाफ खड़े हो गए थे. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और कई पश्चिमी देशों सहित कई देशों में भारत के खिलाफ आर्थिक पाबंदी लगा दी गई थी. वहीं देश की आंतरिक राजनीति में विपक्ष इसी मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने में जुटा था तब पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के चलते देश की आर्थिक व्यवस्था खराब हो गई थी ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को जवाब देने के लिए जसवंत सिंह को आगे किया था. परमाणु परीक्षण के बाद भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में आई दरार को भरने के लिए जसवंत सिंह एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी के संकटमोचक बने. जसवंत सिंह ने अपनी बेहतरीन कूटनीतिक कौशल के दम पर साल 2001 के आते-आते ज्यादातर देशों ने सारी पाबंदियां हटा ली थीं.

1999 में कंधार विमान अपहरण में आगे आए
24 दिसंबर साल 1999 में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 का अपहरण कर लिया था. इस विमान में 176 यात्री और 15 क्रू मेंबर्स सवार थे. कंधार विमान अपहरण कांड के समय तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद आगे आए और तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जसवंत सिंह ख़ुद तीन चरमपंथियों अपने साथ कंधार ले गए थे. छोड़े गए चरमपंथियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे. आतंकियों ने शुरू में भारतीय जेलों में बंद 35 उग्रवादियों की रिहाई और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग की. सरकार इस पर राजी नहीं हुई और बाद में तीन आतंकियों को छोड़ने पर सहमति बनी. शुरूआत में जसवंत सिंह आतंकियों से किसी भी तरह का समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय के सामने रोते- बिलखते अपह्रत यात्रियों के परिजनों को देखकर उनका मन बदल गया.

राजनीतिक जीवन भ्रष्टाचार से पाक रहा
जसवंत सिंह ने 1960 में सेना में मेजर के पद से इस्तीफा दिया और राजनीति के मैदान में कूद पड़े. वो भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वह अपने कैरियर के शीर्ष पर थे. वो पांच बार राज्यसभा और चार बार लोकसभा सदस्य रहे. अटल सरकार में जसवंत सिंह ने रक्षामंत्री, वित्तमंत्री और विदेश मंत्री जैसे अहम पदों की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन उनके दामन पर एक भी भ्रष्टाचार का दाग नहीं लगा. अपने आप को लिबरल डेमोक्रेट कहने वाले जसवंत सिंह हमेशा विवादों से घिरे रहे लेकिन उनपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप कभी नहीं लगा.