मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय के पहले चरण के चुनाव के नतीजों में ग्वालियर और जबलपुर में मिली हार ने भाजपा को बड़े संदेश दिए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा के दोनों स्थान राजनीतिक तौर पर सबसे मजबूत किले माने जाते रहे हैं।
नगरीय निकाय के पहले चरण में 11 नगर निगम सहित 133 निकायों में चुनाव हुए और इनके नतीजे रविवार को आए। भाजपा ने सात स्थानों पर जीत दर्ज की है तो कांग्रेस तीन स्थानों पर सफल रही है, वहीं एक स्थान पर सिंगरौली में महापौर आम आदमी पार्टी का बना है।
राज्य के 11 नगर निगमों में चार स्थानों को इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता है। इंदौर और भोपाल में तो भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की, मगर ग्वालियर और जबलपुर की हार ने पार्टी को चिंतन के लिए मजबूर कर दिया है।
ग्वालियर वह स्थान है जहां भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जड़ें बहुत गहरी हैं, इतना ही नहीं वर्तमान में इस इलाके से नाता केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर का है। इसके बावजूद भाजपा को यहां हार मिली, यहां नगर निगम के महापौर उम्मीदवार को लेकर सिंधिया और तोमर के बीच काफी तनातनी चली थी और यही कारण था कि महापौर पद के उम्मीदवार का फैसला दिल्ली से हुआ था। महापौर की उम्मीदवार बनाई गई सुमन शर्मा को तोमर के करीबियों में गिना जाता है, वही सिंधिया पूर्व मंत्री माया सिंह जो उनकी रिश्ते में मामी हैं, उन्हें मैदान में उतारना चाहते थे। दोनों में टकराव का नतीजा अब सामने आया है।
भाजपा में जहां अंदरूनी तौर पर ग्वालियर में टकराव था, वहीं कांग्रेस ने कभी भाजपा में रहे और वर्तमान में कांग्रेस के विधायक सतीश सिंह सिकरवार की पत्नी शोभा सिकरवार को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने यहां चुनाव पूरी एकजुटता से लड़ा वही उम्मीदवार के परिवार का प्रभाव चुनावी नतीजों में काम आया। सिकरवार परिवार और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अदावत सियासी हलकों में किसी से छुपी नहीं है।
अब अगर हम बात जबलपुर की करें तो यह महाकौशल का केंद्र है और भाजपा यहां हमेशा से ताकतवर रही है। यहां पार्टी के कई दावेदार थे, मगर सियासी पहुंच के चलते गैर राजनीतिक व्यक्ति डॉ जितेंद्र जामदार को उम्मीदवार बनाया गया। डॉ जामदार का सीधा जनता से संपर्क और संवाद नहीं था और यही बात नतीजों के तौर पर सामने आई। पार्टी के इस फैसले से कार्यकर्ता भी खुश नहीं थे और कई नेताओं ने अपने को घर तक ही सीमित कर लिया। वही कांग्रेस उम्मीदवार जगत बहादुर सिंह की पहचान जनता के सेवक के तौर पर है।
इसी तरह छिंदवाड़ा जो कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का गृह इलाका है वहां से भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के महापौर के तीन उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। उनका नाता सीधे तौर पर कमलनाथ से है और इस जीत को कमलनाथ की जीत के तौर पर देखा जा रहा है।
भाजपा जबलपुर और ग्वालियर की हार को लेकर काफी चिंतित है और तमाम नेताओं के जो भी बयान आ रहे हैं, सीधे तौर पर समीक्षा करने की बात कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी ने जबलपुर और ग्वालियर की जीत को बड़ी जीत बताते हुए ट्वीट किया है, मप्र नगर निकाय चुनावों में सराहनीय व साहसी प्रदर्शन के लिए मप्र कांग्रेस के सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को बधाई। भाजपा सरकार के चौतरफा हमलों, धन-बल के बावजूद आपकी जी-तोड़ मेहनत ने ग्वालियर नगर निगम में 57 साल बाद व जबलपुर में 23 साल बाद कांग्रेस का झंडा गाड़ कर इतिहास रच दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने जहां चुनाव के काफी पहले महापौर पद के उम्मीदवार घोषित कर दिए थे और जबलपुर, ग्वालियर में जनता के बीच गहरी बैठक और जाने-पहचाने चेहरों को सामने लाया, वहीं भाजपा में दोनों ही स्थानों पर खींचतान चली। यह नतीजे भाजपा को संदेश है कि अगर उसने समय रहते विधानसभा में इलाकाई नेताओं के बढ़ते प्रभाव को नहीं रोका तो 2023 के विधानसभा चुनाव आसान नहीं रहने वाले।
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Source : IANS