वर्ष 2022 : भाजपा के लिए गुजरात का गढ़ बचाने और उत्तर प्रदेश को दोबारा जीतने की बड़ी चुनौती (भाग-1)
वर्ष 2022 : भाजपा के लिए गुजरात का गढ़ बचाने और उत्तर प्रदेश को दोबारा जीतने की बड़ी चुनौती (भाग-1)
नई दिल्ली:
सदस्यता के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए 2022 उम्मीदों और चुनौतियों का बड़ा वर्ष बनने जा रहा है। आने वाले नए साल में जहां एक तरफ भाजपा को अपने सबसे मजबूत गढ़ गुजरात को बचाने के लिए जी-जान से मेहनत करनी होगी वहीं लोक सभा में सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश को दोबारा से जीतना भी अपने आप में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।2022 में गुजरात और उत्तर प्रदेश सहित 7 राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे इस बात का संकेत दे देंगे कि 2024 में दिल्ली की गद्दी पर किसकी सरकार आने वाली है। इसलिए 2022 को 2024 की भविष्यवाणी करने वाला वर्ष भी कहा जा सकता है। इनमें से 5 राज्यों - उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड, पंजाब , मणिपुर और गोवा में 2022 के शुरूआती महीनो में ही चुनाव होने की संभावना है जबिक 2 राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में 2022 के आखिरी महीनो में चुनाव होना है। 2022 में भाजपा एक और लक्ष्य को लेकर भी चल रही है जिसके लिए 1980 से ही पार्टी लगातार कोशिश कर रही है और वह लक्ष्य है भाजपा का अखिल भारतीय विस्तार। भाजपा 2022 में भी केरल, आंध्र प्रदेश , तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारत के राज्य में संगठन को लगातार मजबूत करने का प्रयास करती रहेगी।
गुजरात का गढ़ बचाना : भाजपा के लिए 2022 की सबसे बड़ी चुनौती
सबसे पहले बात करते हैं उस प्रदेश की जो पिछले कई दशकों से भाजपा का गढ़ बना हुआ है। हम बात कर रहे हैं गुजरात की , जहां 2022 के आखिरी महीनों में विधान सभा का चुनाव होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण इस राज्य के चुनावी परिणाम अपने आप ही दोनों की प्रतिष्ठा के साथ जुड़ जाते हैं इसलिए 2022 में गुजरात के गढ़ को बचाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होने जा रही है।
हम चुनौती शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि 2017 में हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा राज्य में बड़ी मुश्किल से अपनी सरकार बचा पाई थी। गुजरात में भाजपा 1995 से लगातार सत्ता में है। 2001 में नरेंद्र मोदी के राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद से भाजपा राज्य में अजेय हो गई लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन कर दिल्ली आ जाने के बाद से ही गुजरात में भाजपा संभल नहीं पा रही है। 1995 , 1998, 2002, 2007 और 2012 के लगातार 5 विधान सभा चुनावों में भाजपा राज्य की कुल 182 विधान सभा सीटों में से 115 से लेकर 127 के बीच सीटें जीतकर सरकार बनाती रही है लेकिन 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा 100 से भी नीचे पहुंच गई। 2017 में भाजपा को महज 99 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई। इस चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। मतदान प्रतिशत की बात करें तो भाजपा को 49 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिला था जबकि कांग्रेस ने भी 41.5 प्रतिशत वोट लेकर भाजपा को राज्य में कड़ी टक्कर दी थी।
अपने सबसे मजबूत गढ़ में मिले इस झटके के बाद मौका मिलते ही भाजपा ने राज्य में मुख्यमंत्री के साथ-साथ पूरी सरकार को ही बदल डाला और अब भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2022 के आखिर में राज्य में होने वाले चुनाव में फिर से 115 से ज्यादा सीटें जीतकर शानदार बहुमत के साथ लगातार 7 वीं बार राज्य में सरकार बनाने की है।
लोक सभा में 80 सासंद भेजने वाले उत्तर प्रदेश को बचाने की चुनौती
अब बात करते हैं लोक सभा सीटों के हिसाब में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की । 2013 में जब यह तय हो गया कि भाजपा की तरफ से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे तो उन्होने राज्य के अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगी अमित शाह को तत्कालीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह की टीम में राष्ट्रीय महासचिव बनवा कर उत्तर प्रदेश का ही प्रभार दिलवाया था और बाद में वो लोक सभा का चुनाव लड़ने वाराणसी पहुंच गए। इसी से आप अंदाजा लगा सकता हैं कि उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए और खासतौर से मोदी-शाह की जोड़ी के लिए कितना अहम है और 2022 में इसे दोबारा जीतना भाजपा के लिए कितनी बड़ी चुनौती है।
उत्तर प्रदेश में 2022 के शुरूआती महीनो में ही चुनाव होना है लेकिन इसके लिए भाजपा समेत सभी राजनीतिक दल मैदान में पहले ही उतर चुके हैं। राज्य में विधान सभा की कुल 403 सीट है और 2017 के चुनावी नतीजों की बात करें तो भाजपा को अपने सहयोगी दलों के साथ 325 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा को अकेले 40 प्रतिशत के लगभग वोट के साथ 312 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि उसके सहयोगी अपना दल ( एस ) को 9 और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 2017 में 21.82 प्रतिशत मत के साथ समाजवादी पार्टी को 47 और 22.23 प्रतिशत मत के साथ बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
विपक्ष, खासकर अखिलेश यादव 2022 विधान सभा चुनाव को लेकर प्रदेश के राजनीतिक माहौल को बदले की कोशिश कर रहे हैं। 2017 में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले ओम प्रकाश राजभर इस बार सपा के साथ है और इसके साथ ही अखिलेश भाजपा के जातीय समीकरणों को भी तोड़ने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।
यह कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर निकलता है और इसलिए देश की लोक सभा में सबसे ज्यादा 80 सासंद भेजने वाले प्रदेश को भाजपा किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहती है इसलिए 2022 में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में उत्तर प्रदेश भी शामिल है जिसे दोबारा से जीतना भाजपा का बड़ा लक्ष्य है।
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