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Birthday Special: जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) ने देश से जितना लिया, उससे कहीं ज्यादा लौटा दिया, जानें उनका पूरा सफर

टाटा साम्राज्य के संस्थापक जमशेदजी द्वारा किए गये कार्य आज भी लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. उद्योगों के साथ-साथ उन्होंने विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध कराईं.

Updated on: 03 Mar 2020, 10:00 AM

नई दिल्ली:

आज 3 मार्च है. आज ही के दिन भारत के प्रसिद्ध उद्धोगपति और औद्योगिक घराने टाटा समूह (Tata Group) के संस्थापक जमशेदजी टाटा का जन्म हुआ था. आज उनका 181वां जन्मदिन है. भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में उनका योगदान आज भी अतुल्यनीय है. टाटा साम्राज्य के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsethji Tata) द्वारा किए गये कार्य आज भी लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. उद्योगों के साथ-साथ उन्होंने विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध कराईं.

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जीवन परिचय

जमशेदजी टाटा का पूरा नाम नुसीरवानजी टाटा है. उनका जन्म 3 मार्च 1839 में दक्षिणी गुजरात के नवसारी में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम नुसीरवानजी तथा माता का नाम जीवनबाई टाटा था. उनके पिता अपने ख़ानदान में अपना व्यवसाय करने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्होंने महज 14 वर्ष की आयु में ही अपने पिता के साथ मुंबई आ गए और व्यवसाय में पहला क़दम रखे. जब वे 17 साल के थे, तब उन्होंने मुंबई के एलफ़िंसटन कॉलेज में प्रवेश लिया. 2 वर्ष बाद 1858 में ‘ग्रीन स्कॉलर’ (स्नातक स्तर की डिग्री) के रूप में उत्तीर्ण हुए और पिता के व्यवसाय में पूरी तरह लग गए. उन्होंने हीरा बाई दबू के साथ शादी की.

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पिताजी के साथ व्यावसाय में हाथ बंटाने लगे

जमशेद जी ने जब अपनी शिक्षा पूरी कर ली, तो उन्होंने एक वकील के साथ काम करना शुरू किया. उनका इस काम में मन नहीं लगा. बाद में उन्होंने वकील का काम छोड़कर अपने पिता के साथ काम करने लगा. व्यवसाय में उन्हें बहुत रुचि थी. व्यापार के प्रति बेटे की लगन और कर्मठता को देखकर नसरवान जी बहुत प्रसन्न हुए. अब वे अपना व्यवसाय भारत से बाहर फैलाना चाहते थे.

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विदेशों में भी अपनी शाखाएं खोलीं

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने जमशेद जी को चीन भेजा. जमशेद जी ने हांगकांग और शंघाई जैसे बड़े नगरो में अपने व्यापार की शाखाएं खोली. 29 साल की आयु तक जमशेदजी अपने पिता जी के साथ काम करते रहे. 1868 में उन्होने 21000 रुपयों के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया. सबसे पहले उन्होने एक दिवालिया तेल कारखाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में बदल दिया. उसका नाम बदल कर एलेक्जेंडर मिल (Alexender Mill) रखा. 2 साल बाद उन्होंने इसे मुनाफे के साथ बेच दिया. इस पैसे के साथ उन्होंने नागपुर में 1874 में एक रुई का कारखाना लगाया.

मजदूरों की देखभाल करते थे

देश के सफल औद्योगीकरण के लिए उन्होंने इस्पात कारखानों की स्थापना की महत्वपूर्ण योजना बनाई. ऐसे स्थानों की खोज की जहां लोहे की खदानों के साथ कोयला और पानी सुविधा से प्राप्त हो सके. अंतत: आपने बिहार के जंगलों में सिंहभूमि जिले में वह स्थान (इस्पात की दृष्टि से बहुत ही उपयुक्त) खोज निकाला. जमशेदजी ने कहा था कि अगर किसी देश को आगे बढ़ाना है, तो उसके असहाय और कमज़ोर लोगों को सहारा देना ही सब कुछ नहीं है.

इस वजह से बनाया ताज होटल

विश्व प्रसिद्ध 'ताज होटल' सिर्फ़ मुम्बई ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत में ख्यातिप्राप्त है. ताज होटल के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी छुपी हुई है. सिनेमा के जनक लुमायर भाइयों ने अपनी खोज के 6 महीनों बाद अपनी पहली फ़िल्म का शो मुम्बई में प्रदर्शित किया था. वैसे तो वे ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे, लेकिन बीच रास्ते में उन्होंने मुम्बई में भी शो रखने की बात सोची. 7 जुलाई 1896 को उन्होंने मुम्बई के तत्कालीन आलीशान वाटसन होटल में अपनी 6 अलग-अलग फ़िल्मों के शो आयोजित किए. इन शो को देखने के लिए मात्र ब्रिटिश लोगों को ही आमंत्रित किया गया था, क्योंकि वाटसन होटल के बाहर एक तख्ती लगी रहती थी, जिस पर लिखा होता था कि भारतीय और कुत्ते होटल में नहीं आ सकते हैं.

ब्रिटिश और बिल्लियां अंदर नहीं आ सकतीं

टाटा समूह के जमशेदजी टाटा भी लुमायर भाइयों की फ़िल्में देखना चाहते थे, लेकिन उन्हें वाटसन होटल में प्रवेश नहीं मिला. रंगभेद की इस घृणित नीति के ख़िलाफ़ उन्होंने आवाज भी उठाई. इस घटना के 2 साल बाद ही वोटसन होटल की सारी शोभा धूमिल कर दे, एक ऐसे भव्य 'ताज होटल' का निर्माण जमशेदजी ने शुरू करवा दिया. 1903 ई. में यह अति सुंदर होटल बनकर तैयार हो गया. कुछ समय तक इस होटल के दरवाज़े पर एक तख्ती भी लटकती थी, जिस पर लिखा होता था कि- ब्रिटिश और बिल्लियां अंदर नहीं आ सकतीं.

ताज की चकाचौंध हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती थी

तत्कालीन मुम्बई में ताज होटल की इमारत बिजली की रोशनी वाली पहली इमारत थी, इसीलिए इसकी चकाचौंध हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती थी. इसकी गणना संसार के सर्वश्रेष्ठ होटलों में की जाने लगी थी. जमशेदजी का यह उद्यम उनके अन्य उद्यमों की तुलना में बिल्कुल अलग था. आज टाटा संस का साम्राज्य नमक से लेकर चाय तक, स्टील से लेकर कार-ट्रकों तक और वित्त से लेकर सॉफ्टवेयर तक हर कहीं नज़र आता है. जब कोई नया मैनेजर या कामगार टाटा समूह की किसी कंपनी में काम शुरू करता है, तो उसे समूह के बारे में एक वाक्य में बताया जाता है कि हम किसी न किसी रूप में हर भारतीय की जिंदगी का हिस्सा हैं. टाटा समूह अपनी बाकी विशेषताओं के अलावा एक और बात के लिए जाना जाता है और वह है इसका केंद्रीय मूल्य.

65 वर्ष की आयु में ही उनका निधन हो गया

65 वर्ष की आयु में ही उनका निधन हो गया. उनके बाद उनके पुत्रों, सर दोराब और सर रतन ने विविध योजनाओं को पूरा करके और कारबार बढ़ाकर टाटा परिवार को प्रतिष्ठा ही नहीं, अपितु विभिन्न क्षेत्रों में सहायता और दान की निधि का भी विस्तार किया. अन्य पारसी महान्‌ व्यवसायियों तथा उद्योगपतियों में जो नाम लिए जा सकते हैं, वे हैं-सर दीनश पेटिट, बोमनजी दीनशा पेटिट, नौशेरवां जी पेटिट, कावसजी अदनवाला, आर्दशिर हरमुस जी वाडिया, कावसजी जहाँगीर रेडीमनी (बर्नेट) इनके पुत्र सर कावस जी (द्वितीय बर्नेट,) एन. एम. वाडिया, नौशेरवाँ वाडिया इनके पुत्र सर नेस और खुसरो वाडिया, जो सभी सामुदायिक और सार्वभौमिक दानशीलता के लिए प्रसिद्ध हैं.