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18 साल से कम उम्र में देश के लिए सूली चढ़ने वाले खुदीराम बोस को कुमार विश्वास ने ऐसे किया याद

देश के लिए बिना सोच अंग्रेजों से लड़ने वाले और खुशी-खुशी मौत को गले लगाने वाले खुदीराम बोस की आज जयंती है. खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में हुआ था.

Updated on: 03 Dec 2019, 11:46 AM

नई दिल्ली:

देश के लिए बिना सोच अंग्रेजों से लड़ने वाले और खुशी-खुशी मौत को गले लगाने वाले खुदीराम बोस की आज जयंती है.  स्वाधीनता संग्राम के नायक खुदीराम बोस की जयंती के मौके पर उन्हें याद करते हुए कवि कुमार विश्वास ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, '12 अगस्त 1908 के अखबारों ने छापा कि 'कल सुबह 6 बजे उसे फाँसी दे दी गई। वह फाँसी के फंदे तक झूमता हुआ आया। उसका चेहरा खिला हुआ था और वह मुस्कुराता हुए फाँसी पर चढ़ गया।' स्वतंत्रता संग्राम के उस निडर महानायक शहीद खुदीराम बोस जी की जन्मतिथि पर उन्हें प्रणाम.'

बता दें कि खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था. उनके मन में देश की आजादी को लेकर इतना जुनून था कि उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई को छोड़कर मुक्ति आंदोलन में गए थे. इस बहादुर नौजवान को 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई थी उस समय उनकी उम्र 18 साल कुछ महीने थी.

अंग्रेज सरकार उनकी निडरता और वीरता से इस कदर आतंकित थी कि उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. इस फैसले के बाद क्रांतिकारी खुदीराम बोस हाथ में गीता लेकर ख़ुशी-ख़ुशी फांसी पर चढ़ गए.

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खुदीराम की लोकप्रियता का यह आलम था कि उनको फांसी दिए जाने के बाद बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था और बंगाल के नौजवान बड़े गर्व से वह धोती पहनकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे.