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बिहार : गरीबों, विक्षिप्तों की सेवा कर मानवता की मिसाल बना ठेले पर चाय बेचने वाला संजय

बिहार : गरीबों, विक्षिप्तों की सेवा कर मानवता की मिसाल बना ठेले पर चाय बेचने वाला संजय

Updated on: 23 Jan 2022, 11:40 AM

गया (बिहार):

आपने अब तक दानियों, परमार्थ और सेवा करने की कई कहानियां पढ़ी होंगी। कई ऐसे लोगों को देखा भी होगा, लेकिन जो स्वयं जीवनयापन के लिए जद्दोजहद कर रहा हो लेकिन वह गरीबों, भीखमंगे, अर्धविक्षप्तों की सेवा में लगा हो, तो इसे आप क्या कहेंगे।

ऐसे ही हैं, धर्म नगरी गया के रहने वाले संजय चंद्रवंशी, जो सुबह होते ही गरीबों की सेवा में जुट जाते हैं ।

मानवता की सेवा को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना रखे संजय के लिए सेवा अब जुनून बन गया है। गया शहर के गौतम बुद्ध मार्ग के गोल पत्थर मोड़ के समीप ठेला पर चाय बेचने वाला संजय गरीब, असहाय और विक्षिप्त लोगों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं है।

संजय को दिनभर चाय, सत्तू और जूस बेचने के बाद जो आमदनी होती है, उससे वह गरीबो, भूखो और विक्षिप्त लोगों को खाना खिलाने का कार्य करते हैं।

संजय को यह प्रेरणा उसके पिता वनवारी राम से मिली। संजय के परिवार में यह दानशीलता की परंपरा कई सालों से चली आ रही है।

संजय गया जिले के अति उग्रवाद प्रभावित इमामगंज प्रखंड के केन्दुआ गांव का रहने वाला है। देश की आजादी के पूर्व से ही लोगों की मदद करने का कार्य उसके खानदान में होता आया है। उसके दादा झंडू राम गरीब और असहाय लोगों को हमेशा मदद किया करते थे। उनके पिता बनवारी राम भी गरीब लोगों की जरूरत के हिसाब से मदद करते थे।

यहीं वजह है कि संजय का परिवार कभी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं बन पाया। आज खुद संजय भी आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद प्रतिदिन 20 से 25 या इससे अधिक संख्या में जुटे गरीब, पागल, विकलांग और भूखे लोगों को खाना खिलाते है।

संजय बताते है कि उनकी याद में पिछले छह - सात दशकों से उसके खानदान की यह परंपरा चली आ रही है।

संजय के सुबह अपने चाय के ठेला के पास पहुंचने के पूर्व ही असहायों, गरीबों की भीड़ वहां लग जाती है। संजय इन्हें सुबह चाय और विस्किट देते है। गर्मी के दिनों में दोपहर में इन्हे दो-दो गिलास सत्तू पिलाने का कार्य करते है।

सुबह विक्षिप्त लोग उसके ठेले के पास चले आते है और चाय विस्किट खाने के बाद चले जाते है। यह रोजाना की दिनचर्या में शामिल है। संजय के ठेले के पास अक्सर ऐसे लोगों की भीड़ देखने को मिलती है।

ठंड के मौसम में ठेले के पास प्रतिदिन लकड़ी खरीदकर वह अलाव जलाते हैं, जिससे गरीबों लोगों को बड़ी राहत मिलती है। इसके अलावा समय समय पर गरीबों और विक्षिप्तों के बीच कंबल, स्वेटर व अन्य कपड़े भी वितरण करते है।

संजय बताते है कि दूर-दराज से लोग उसके पास मदद के लिए भी आते है। जिनके पास पैसे कम पड़ गये या फिर गरीबी के कारण इलाज कराने में सक्षम नहीं है, उसे भी संजय पैसे देकर उनका इलाज भी करवाते हैं। उसके इस कार्य से खुश होकर उसके आसपास के डाक्टर भी अपनी फीस कम कर उसके द्वारा भेजे गये रोगियों का इलाज करते हैं।

संजय गरीबों की सेवा में अपने घर तक को गिरवी रख दिया। इतना ही नहीं जिस महाजन से संजय ने पैसे लिए थे , जिसे बाद में उसी महाजन को सौंप दिया।

संजय की इच्छा यहां एक रैन बसेरा बनाने की है जिससे उसमें विक्षिप्त, भिखारी, असहाय और गरीब लोग रात गुजार सके।

संजय आईएएनएस को बताते हैं, मैने पहले पूर्व प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुभाग अधिकारी भीमसेन के द्वारा बिहार सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर मेरी भावना से अवगत कराया गया, लेकिन बिहार सरकार के द्वारा आज तक कुछ नहीं किया गया है।

आज भी संजय को इंतजार है कि बिहार सरकार शायद गरीबों के लिए रैन बसेरा बनाने की उसकी इस इच्छा को पूरा कर दें।

उन्होंने बताया कि उनके पास गया जिले के अलावे आसपास के जिले के भी लोग मदद के लिए पहुंचते हैं। प्रारंभ में यह कार्य संजय की पत्नी अनिता देवी को अच्छा नही लगा था, लेकिन अब वह भी संजय के व्यवसाय और परमार्थ के कार्य में हाथ बंटाती है। इसमें उनके पुत्र गौतम कुमार भी सहयोग करते हैं।

संजय कहते हैं कि मेरे पास ही मानवता की सेवा उनके खानदान के लिए परंपरा बन गई है। वे खुद कहते हैं कि इस कार्य को ईश्वर पूरा करते हैं, वे तो सिर्फ माध्यम हैं।

कई मुसीबतों के बाद भी संजय इस कार्य को कभी नहीं छोड़ा। वे कहते भी हैं कि वह आर्थिक रूप से भले कमजोर हैं, लेकिन जीवन भर असहायों की मदद करता रहूंगा।

उन्होंने कहा, गरीबों की मदद मैं अंतिम सांस तक करता रहूंगा। मेरी इच्छा है कि मेरी आने वाली पीढ़ी भी इस कार्य को अपनाए। नर में ही नारायण वास करते हैं।

संजय कहते हैं कि यह दानशीलता का कार्य परिवार नि:स्वार्थ भाव से करती रहेगी।

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