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राजस्थान: सहकारी बैंक में फर्जी डिग्रियों के जरिए प्रमोशन का बड़ा घोटाला, जानें पूरा मामला

सहकारी बैंकों में फर्जी डिग्रियों से प्रमोशन लेने का बड़ा घोटाला सामने आया है.

Updated on: 12 Jul 2019, 11:18 PM

highlights

  • राजस्थान के सहकारी बैंकों में प्रमोशन घोटाला
  • फर्जी डिग्रियों के सहारे हुआ डबल प्रमोशन
  • जांच में पूरा प्रदेश की शाखाएं घोटाले में शामिल

नई दिल्ली:

प्रदेश के सहकारी बैंकों में फर्जी डिग्रियों से प्रमोशन लेने का बड़ा घोटाला सामने आया है. बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों ने सामूहिक रूप से एमएससी आईटी, एमटेक और एमसीए की डिग्रियां खरीदीं और दो-दो प्रमोशन ले लिए. आराेपियाें में ऑफिस के चपरासी से लेकर डीजीएम लेवल तक के अधिकारी शामिल बताए जा रहे हैं. जांच में सामने आया कि जाे डिग्रियां लगाई गई हैं, उनकी परीक्षाओं के दिन आराेपी कर्मचारी और अधिकारी अपने दफ्तराें पर ड्‌यूटी पर थे.

सीकर में इस तरह की शिकायत मिलने के बाद सहकारिता रजिस्ट्रार ने जांच कराई ताे मामले का खुलासा हुआ. इन लोगों को जब रजिस्ट्रार ने तलब किया ताे उन्हाेंने खुलासा किया कि इस तरह का घपला करने वाले वे अकेले 6 कर्मचारी नहीं हैं, ऐसा तो पूरे प्रदेश में हुआ है. इसके बाद रजिस्ट्रार ने प्रदेश के सभी सहकारी बैंकों को निर्देश दिए हैं कि फर्जी डिग्री से प्रमोशन के मामलों की जांच कर रिकवरी की जाए. सीकर के आरोपी छह कर्मचारियाें से प्रमाेशन लेकर प्राप्त किए गए अतिरिक्त वेतन की रिकवरी करने के आदेश भी दिए गए हैं.

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सहकारी बैंकों में 14वें वेतन समझौते में यह प्रावधान किया गया था कि यदि कोई कर्मचारी एमएससी आईटी, एमटेक या एमसीए की डिग्री लेता है तो उसे एक साथ दो प्रमोशनों का लाभ दिया जाएगा. यह आदेश इसलिए जारी किए गए थे ताकि सहकारी बैंकों में कम्प्यूटरीकरण को बढ़ावा मिल सके. इस आदेश के बाद सहकारी बैंकों में डिग्रियों की बाढ़ आ गई. प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ है कि प्राइवेट यूनिवर्सिटी के एजेंटों के जरिए ऑफिस रहते हुए कर्मचारियों ने एमएससी आईटी, एमटेक और एमसीए की रेग्यूलर डिग्रियां ले ली. इस पूरे मामले में मंत्री जांच की दुहाई देते नजर आ रहे हैं.

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हाल में सहकारी बैंकाें में लाेन घाेटाला भी सामने आया था, जिसकी जांच चल रही है. इसमें बैंक के अफसरों ने दलालों के साथ मिलकर फर्जी आईटीआर तैयार की और फर्जी दस्तावजों से करोड़ों रुपए के लोन उठा लिए. भौतिक सत्यापन में न तो वहां मकान मिला और न ही लोन लेने वालों के नाम-पते सही मिले.