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बाबरी विध्वंस केस में बड़ा फैसला- आडवाणी, जोशी, उमा सहित सभी आरोपी बरी

28 साल के लंबे इंतजार के बाद सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने बाबरी विध्वंस मामले में फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने माना कि घटना पूर्व नियोजित नहीं थी.

Updated on: 30 Sep 2020, 12:46 PM

लखनऊ:

बाबरी विध्वंस केस (babri demolitioncase) में सीबीआई की विशेष अदालत ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इस मामले में माना कि घटना पूर्व नियोजित नहीं थी. कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट का फैसला 28 साल बाद आया है. जज एसके यादव ने कहा कि 1992 को जो कुछ हुआ पूर्व नियोजित नहीं थी. जज ने कहा घटना सुनियोजित नही थी,अचानक से घटना हुई. आवेश में घटना को अंजाम दिया गया. कोर्ट ने फैसले में कहा कि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे नेताओं ने भीड़ पर काबू करने की कोशिश की.

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कौन थे मुख्य आरोपी
इस मामले में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार, राम विलास वेदांती, ब्रज भूषण शरण सिंह, महंत नृत्य गोपाल दास, चम्पत राय, साध्वी ऋतम्भरा, महंत धरमदास सहित 32 मुख्य आरोपी थे. 

अब तक क्या हुआ

- 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को पूरी तरह से ध्वस्त होने के बाद थाना राम जन्मभूमि, अयोध्या के प्रभारी पीएन शुक्ल ने शाम 5:15 पर लाखों अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया. इसमें बाबरी मस्जिद गिराने का षड्यंत्र, मारपीट और डकैती शामिल है.

-6 दिसम्बर 1992 को मस्जिद के सम्पूर्ण विध्वंस के लगभग 10 मिनट बाद एक अन्य पुलिस अधिकारी गंगा प्रसाद तिवारी ने आठ लोगों के खिलाफ राम कथा कुंज सभा मंच से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ धार्मिक उन्माद भड़काने वाला भाषण देकर बाबरी मस्जिद गिरवाने का मुकदमा दर्ज कराया.

- इस मामले में अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा इस केस में नामजद अभियुक्त हैं. इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए ,153बी , 505, 147 और 149 के तहत यह मुकदमा रायबरेली में चला. बाद में लखनऊ सीबीआई कोर्ट में चल रहे मुकदमे में शामिल कर लिया गया.

-बाबरी विध्वंस मामले में फैसला आज, हाई प्रोफाइल केस में 49 अभियुक्त, 17 का हो चुका है देहांत

-विध्वंस के बाद अयोध्या में विवादित स्थल पर बनाए गए अस्थायी राम मंदिर को लेकर पुलिस ने 8 दिसंबर 1992 को आडवाणी व अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया था. इस मुकदमे की जांच उत्तर प्रदेश पुलिस की सीआईडी क्राइम ब्रान्च ने की.

-सीआईडी ने फरवरी 1993 में आठों अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी. मुकदमे के ट्रायल के लिए ललितपुर में विशेष अदालत स्थापित की गई. बाद में आवागमन की सुविधा के लिए यह अदालत रायबरेली ट्रांसफर कर दी गई.

-सरकार ने बाद में सभी केस सीबीआई को जांच के लिए दे दिए. सीबीआई ने रायबरेली में चल रहे केस नंबर 198 की दोबारा जांच की अनुमति अदालत से ली. उत्तर प्रदेश सरकार ने 9 सितम्बर 1993 को नियमानुसार हाई कोर्ट के परामर्श से 48 मुकदमों के ट्रायल के लिए लखनऊ में स्पेशल कोर्ट के गठन की अधिसूचना जारी की.

-इस अधिसूचना में केस नंबर 198 शामिल नही था, जिसका ट्रायल रायबरेली की स्पेशल कोर्ट में चल रहा था. सीबीआई के अनुरोध पर बाद में 8 अक्टूबर 1993 को राज्य सरकार ने एक संशोधित अधिसूचना जारी कर केस नंबर 198 को भी लखनऊ स्पेशल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में जोड़ दिया. सीबीआई ने सभी 49 मामलों में 40 अभियुक्तों के खिलाफ संयुक्त चार्जशीट फ़ाइल की. सीबीआई ने बाद में 11 जनवरी 1996 को 9 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ पूरक चार्जशीट फाइल की.

-स्पेशल जज अयोध्या प्रकरण जेपी श्रीवास्तव ने 9 सितंबर 1997 को आदेश किया कि सभी 49 अभियुक्तों के खिलाफ सभी 49 मामलों में संयुक्त रूप से मुकदमा चालाने का पर्याप्त आधार बनता है क्योंकि ये सभी मामले एक ही कृत्य से जुड़े हैं. जज ने सभी अभियुक्तों को 17 अक्टूबर 1997 को आरोप निर्धारण के लिए तलब किया.

-हाईकोर्ट आदेश के मुताबिक सीबीआई ने 27 जनवरी 2003 को रायबरेली की स्पेशल कोर्ट में आडवाणी समेत आठ लोगों के खिलाफ भड़काऊ भाषण का मुकदमा बहाल करने को कहा. मुकदमा चालू हुआ, लेकिन स्पेशल ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट विनोद कुमार सिंह ने 19 सितम्बर 2003 को आडवाणी को बरी करते हुए डॉ. मुरली मनोहर जोशी और अशोक सिंघल समेत केवल सात अभियुक्तों के खिलाफ आरोप निर्धारण कर मुकदमा चलाने का निर्णय किया.

- इस आदेश के खिलाफ भी हाई कोर्ट में अपील हुई और दो साल बाद छह जुलाई 2005 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि पहली नजर में सभी आठों अभियुक्तों के खिलाफ मामला बनता है. इसलिए आडवाणी को बरी करना ठीक नही. इस तरह आडवाणी समेत आठ लोगों पर रायबरेली कोर्ट में मुकदमा बहाल हो गया.

- दस साल बाद 20 मई 2010 को हाई कोर्ट के जस्टिस एके सिंह ने सीबीआई की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए स्पेशल कोर्ट लखनऊ द्वारा केस नम्बर 198 में आडवाणी, कल्याण सिंह और ठाकरे समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा स्थगित करने के आदेश को सही ठहराया.

- सीबीआई ने 9 फरवरी 2011 को सुप्रीम कोर्ट में अपील करके मांग की है कि हाई कोर्ट के इस आदेश को खारिज करते हुए आडवाणी समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ विवादित ढांचा गिराने के षड्यंत्र व अन्य धाराओं में मुकदमा चलाया जाए.

- 18 मई, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के अनुपालन में सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) ने डिस्चार्ज हो चुके 13 अभियुक्तों में छह अभियुक्तों को समन तलब किया. क्योंकि इनमें छह अभियुक्तों की मौत हो चुकी थी. जबकि राज्यपाल होने के नाते कल्याण सिंह पर आरोप नहीं तय हो सकता था. लिहाजा उन्हें तलब नहीं किया या था.

-31 अगस्त, 2020 को सभी अभियुक्तों की ओर से लिखित बहस दाखिल. बहस की प्रति अभियोजन को भी मुहैया कराई गई. एक सितंबर, 2020 को दोनों पक्षों की मौखिक बहस भी पूरी हुई. 16 सितंबर, 2020 को अदालत ने 30 सितंबर को अपना फैसला सुनाने का आदेश जारी किया.

- जिन आरोपियों का निधन हो चुका है उनमें बाल ठाकरे, अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, महंत अवैद्यनाथ, महंत परमहंस दास, महामंडलेश्वर जगदीश मुनि, बैकुंठ लाल शर्मा प्रेम, डॉ सतीश नागर , मोरेश्वर साल्वे (शिवसेना नेता), डीवी रे (तत्कालीन एसपी), विनोद कुमार वत्स (हरियाणा निवासी), रामनारायण दास, हरगोबिंद सिंह, लक्ष्मी नारायण दास महात्यागी, रमेश प्रताप सिंह और विजयराजे सिंधिया शामिल हैं.