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उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव, सपा अपनी रणनीति को लेकर सजग

समाजवादी पार्टी ने 2014 में अपनी हार के बाद अपनी रणनीति बदली है. भाजपा की जीत के बाद से सपा ने अपने परिवार को समेटने को काम किया है.

समाजवादी पार्टी ने 2014 में अपनी हार के बाद अपनी रणनीति बदली है. भाजपा की जीत के बाद से सपा ने अपने परिवार को समेटने को काम किया है.

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Mohit Saxena
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Uttar Pradesh ( Photo Credit : social media )

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर समाजवादी पार्टी परिवार की तरफ लौटती दिख रही है. वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने परिवार के साथ-साथ पार्टी में भी अपना वर्चस्व स्थापित करना शुरू किया. लोकसभा चुनाव 2014 में प्रदेश में सरकार रहने के बाद भी समाजवादी पार्टी की करारी हार के बाद अखिलेश ने रणनीति बदलनी शुरू की. इस चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने प्रदेश की 71 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, एनडीए 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही. समाजवादी किले मोदी लहर में ढह गए. हालांकि, मुलायम सिंह यादव उस समय भी अपने परिवार को साथ लेकर चल रहे थे.अब कुछ इसी प्रकार की रणनीति पर काम करते अखिलेश यादव भी दिखे. 

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बड़ी संख्या में परिवार के सदस्यों के टिकट काटे गए. कुछ यही स्थिति लोकसभा चुनाव 2019 और यूपी चुनाव 2022 में दिखी. हालांकि, इसका फायदा नहीं होता दिखा. इसके बाद रणनीति में बदलाव हो रहा है. अखिलेश, डिंपल, शिवपाल से लेकर परिवार के अन्य सदस्यों के चुनावी मैदान में उतरने की चर्चा शुरू हो गई है. शिवपाल यादव के आजमगढ़ से चुनावी मैदान में उतारने की चर्चा चल रही है. समाजवादी पार्टी समाजवादी गढ़ को अपने कब्जे में लेने की कोशिश में है. मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ाने को लेकर लगातार विवाद होता रहा है.

मैनपुरी से डिंपल यादव को चुनावी मैदान में उतारे जाने और उप चुनाव में शानदार जीत के बाद एक बार फिर उनके इसी सीट से ही चुनावी मैदान में उतारने की चर्चा है. हालांकि, सबसे अधिक चर्चा में आजमगढ़ सीट है. लोकसभा उप चुनाव 2022 में आजमगढ़ से भाजपा के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव को चुनाव में हराया था.

लोकसभा चुनाव 2024 के मैदान में धर्मेंद्र यादव के भी उतरने की चर्चा है. वे फिरोजाबाद लोकसभा सीट से अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं. हालांकि, फिरोजाबाद सीट से दावेदारी अक्षय यादव की भी है. दोनों में से कोई एक यहां से चुनावी मैदान में उतर सकता है. दरअसल, बदायूं सीट से सांसद रह चुके धर्मेंद्र यादव के लिए मुश्किलें लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा की संघमित्रा मौर्य ने बढ़ा दी थीं. अब उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य समाजवादी पार्टी के साथ हैं. पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बना दिया है. रामचरितमानस पर टिप्पणी के बाद से ही स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के निशाने पर हैं.

Source : News Nation Bureau

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