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भारत में घटी थी विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी, जिसमें गई 15,000 लोगों की जान

भोपाल में दो-तीन दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन काबार्इड प्लांट से रिसी जहरीली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था.

Updated on: 03 Dec 2018, 01:07 PM

नई दिल्ली:

Bhopal Gas Tragedy (भोपाल गैस त्रासदी): भोपाल की सड़कों पर रविवार को यूनियन काबार्इड गैस पीड़ितों ने एक बार फिर मशाल ज़ुलूस निकालकर सरकारों के खिलाफ ग़ुस्सा दिखाया. हाथ में मशाल थामे लोग 34 साल गैस हादसे को याद कर नारा लगा रहे थे कि 'अब और भोपाल नहीं बनने देंगे.' साथ ही अपने बिछुड़े प्रियजनों को श्रद्धांजलि दी. बता दें कि भोपाल में दो-तीन दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन काबार्इड प्लांट से रिसी जहरीली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. तभी से विभिन्न संगठन पीड़ितों के हक व न्याय के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं. इस हादसे को विश्व का सबसे भयंकर औद्योगिक आपदा बताया जाता है. 

भोपाल गैस त्रासदी की वजह (Reasons of Bhopal Gas Tragedy)

साल 1984 में 2 दिसंबर (When Bhopal Gas Tragedy happened) की रात और 3 दिसंबर (Date of Bhopal Gas Tragedy) की सुबह के बीच का वक़्त भोपाल के लिए ऐसी काली रात बनकर उभरी जो अब तक एक दु:स्वप्न के तौर पर याद किया जाता है. यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर 'सी' से निकली जहरीली गैस (मिक या मिथाइल आइसो साइनाइट) ने हज़ारों लोगों की जान ले ली.

हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना में कुछ ही घंटों के अंदर 2,259 लोगों की जान चली गई थी. वहीं मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी. हालांकि गैर सरकारी स्रोत के अनुसार यह आंकड़ा सरकारी आंकड़ो से करीब तीन गुना ज्यादा थी.

कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि इस त्रासदी में 15 हजार से भी अधिक लोगों की मौत हुई है. हालांकि एक सच यह भी है कि भोपाल गैस त्रासदी का दंश अब तक वहां के लोग झेल रहे हैं.

रिपोर्ट्स बताता है कि 2 दिसंबर की रात और 3 दिसंबर 1984 की सुबह यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से करीब 40 टन गैस का रिसाव (Bhopal Gas Leak) हुआ था. बताया जाता है कि 2 दिसंबर की रात 10 बजे फैक्ट्री के टैंक नंबर 610 में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस में पानी भर गया था.

पानी भरने से टैंक के अंदर रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हो गई और टैंक का तापमान 200 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. बता दें कि टैंक का तापमान 4-5 डिग्री ही होना चाहिए लेकिन तापमान बढ़ जाने से टैंक में गैस बनने लगी.

तापमान बढ़ने का नतीज़ा यह हुआ कि टैंक के अंदर प्रेशर बढ़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी (मिथाइल आइसोसाइनेट, मोलिकुलर फॉर्मुला- CH3NCO or C2H3NO) का रिसाव हो गया. ज़हरीली गैस बादल की तरह पूरे इलाके में फैलने लगी और भोपाल का पूरा दक्षिण पूर्वी इलाका चपेट में आ गया. इस घटना में कम लंबाई वाले आदमी और बच्चे सबसे अधिक प्रभाति हुए.

इलाक़े में गैस के फैलते ही आसपास रहने वाले लोगों को घुटन, आंखों में जलन, उल्टी, पेट फूलने, सांस लेने में दिक्कत आदि समस्या होने लगी. बताया जाता है कि 2 दिसंबर की रात फ़ैक्ट्री में काम कर रहे मज़दूर पाइपलाइन की सफाई करते हुए वाल्व ठीक से बंद नहीं कर पाए थे. इसके अलावा इस घटना के लिए ज़ंग लगी पाइपलाइन को भी ज़िम्मेदार बताया जाता है. क्योंकि ज़ंग लगे आयरन के गैस से संपर्क में आने से रसायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई और तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा. इसके अलवा टैंक में गैस
स्टोरेज भी क्षमता से अधिक था.

गैस रिसाव के बाद शहर की हालत

गैस रिसाव का यह हादसा रात 12:15 मिनट पर शुरू हुआ था और इसके तक़रीबन 30 मिनट बाद भोपाल की सड़कों पर हंगामा मच गया. रात 12 बज कर 50 मिनट पर आस-पास की बस्तियों में रहने वाले लोगों ने अचानक घुटन महसूस किया. उन्हें खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलने और उल्टी की शिकायत होने लगी. जब तक कि पुलिस किसी तरह की सूचना जारी करती लोग सड़क पर बदहवास हो भाग रहे हैं.

रात दो बजे तक अस्पताल के बाहर लोगों की भीड़ लग गई. पूरा शहर ज़हरीली हवा की चपेट में था. हालांकि इससे पहले तक
कारखाने के संचालक ने किसी भी प्रकार के रिसाव का खंडन किया.

अगले दिन हजारों लोगों ज़हरीली हवा की चपेट में आकर मौत की नींद सो चुके थे. लोगों का सामूहिक रूप से दफनाया और अंतिम संस्कार किया जा रहा था. इंसान के अलावा लगभग 2,000 जानवरों के शव को विसर्जित किया गया. आसपास के इलाक़ों में पेड़ बंजर हो गए. एक समय में करीब 17,000 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया.

2006 में सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दाख़िल किया जिसके मुताबिक गैस रिसाव के कारण कुल 5,58,125 लोग जख्मी हुए. उनमें से 38,478 लोग आंशिक तौर पर अस्थायी विकलांग हुए और 3,900 स्थायी रूप से विकलांग हो गए.

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त्रासदी का दुष्प्रभाव जारी:

33 साल बाद भी गैस के संपर्क में आने वाले कई लोगों ने शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों को जन्म दिया है. मानवाधिकार समूह के मुताबिक़ हजारों टन ख़तरनाक अपशिष्ट भूमिगत दफनाया गया, सरकार ने भी माना कि क्षेत्र दूषित है. भोपाल गैस कांड के बाद सरकार की ओर से बनाए गए गैस राहत विभाग में हर महीने दर्जनों आवेदन आते हैं, जिसमें कैंसर के इलाज के लिए आर्थिक सहायता की मांग होती है.

मुआवजे की मांग अब भी जारी

साल 2010 में एक पिटिशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी. इस पीटिशन में 7728 करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग की गई थी. कंपनी से वर्ष 1989 में जो समझौता हुआ था, उसके तहत 705 करोड़ रुपए मिले हैं. सरकार का तर्क है कि गैस कांड से प्रभावित और मृतकों की संख्या बढ़ी है, इस कारण मुआवजा भी बढ़ाना चाहिए. बता दें कि यूनियन कार्बाइड कारखाने का मालिकाना अधिकार अमेरिकन कंपनी के पास थी.

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मुख्य आरोपी को भारत वापस लाने में असफ़ल रही केंद्र सरकार (Culprit of Bhopal Gas Tragedy)

इस घटना का मुख्य आरोपी फैक्ट्री के संचालक वॉरन एंडरसन को बनाया गया जिसकी 29 सितंबर, 2014 को मौत हो गई. घटना के तुरंत बाद वह भारत छोड़कर अमेरिका भाग गया था. उसे भारत लाकर सजा देने की मांग की गई लेकिन भारत सरकार एंडरसन को अमेरिका से लाने में सफल नहीं हुई.

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