BHU को आईना दिखा बेल्लूर मठ में संस्कृत पढ़ाने के लिए रमजान अली को जिम्मा
कोलकाता से सटे इलाके बेल्लूर में संस्कृत भाषा पढ़ाने के लिए रमजान अली को सहायक प्रोफेसर बतौर नियुक्त किया गया है.
highlights
- बेल्लूर मठ में संस्कृत पढ़ाने के लिए रमजान अली की नियुक्ति.
- बीएचयू में संस्कृत पढ़ाने के लिए मुस्लिम प्रोफेसर की नियुक्ति पर विवाद.
- रमजान अली ने बीएचयू विवाद को बेवजह और संस्कृत भाषा का अपमान बताया.
New Delhi:
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विधा धर्म विभाग में संस्कृत भाषा पढ़ाने के लिए प्रोफेसर फिरोज खान की नियुक्ति पर खड़ा विवाद भले ही अभी शांत नहीं हुआ है, लेकिन कोलकाता से सटे इलाके बेल्लूर में संस्कृत भाषा पढ़ाने के लिए रमजान अली को सहायक प्रोफेसर बतौर नियुक्त किया गया है. उन्हें बेल्लूर मठ में अपने नौ साल के अनुभव के कारण राम कृष्ण मिशन विद्यामंदिर में नियुक्त किया गया है. वह इस नियुक्ति के साथ-साथ वहां के छात्रों और फैकल्टी सदस्यों द्वारा किए गए दिल छू लेने वाले स्वागत से कहीं ज्यादा अभिभूत नजर आए.
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स्वागत से अभिभूत हैं रमजान अली
अपने स्वागत से अभिभूत रमजान अली ने समाचार एजेंसी को बताया, 'स्कूल में ज्वाइनिंग के दिन मेरा स्वागत प्राचार्य शास्त्रज्ञानांदजी महाराज ने किया. उन्होंने मुझसे बेहद साफ शब्दों में कहा कि उन्हें मेरी धार्मिक पहचान से कतई कोई मतलब नहीं है और ना ही वह उनके लिए महत्वपूर्ण है. अगर कुछ महत्वपूर्ण है तो वह है मेरा भाषा ज्ञान, मेरी समझ और उसे छात्रों के साथ बांटने की क्षमता.' बनारस हिंदू विश्वद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर पद पर मुस्लिम विद्वान की नियुक्ति से जुड़े विवाद पर उन्होंने कहा, 'मेरे विचार से संस्कृत अपनी समृद्ध विरासत के कारण समावेशी भाषा है. हमें यह भी कतई नहीं भूलना चाहिए की संस्कृत समस्त भाषाओं को जननी है. कोई भला कैसे किसी दूसरे धर्म के शख्स को संस्कृत सीखने या पढ़ाने से रोक सकता है.'
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बीएचयू में नहीं थमा है विवाद
गौरतलब है कि मुस्लिम होने के कारण ही बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत भाषा के प्रोफेसर पद पर एक मुस्लिम फिरोज खान की नियुक्ति पर छात्रों के एक धड़े ने मोर्चा खोल रखा है. मामला इस कदर तूल पकड़ चुका है कि विश्विद्यालय प्रबंधन के समर्थन के बावजूद फिरोज खान एक भी दिन क्लास लेने नहीं पहुंचे. इधर कोलकाता के पास के स्कूल में नियुक्त हुए रमजान अली का बेलौस कहना है कि उन्हें अपनी जिंदगी में संस्कृत का टीचर होने के कारण कभी कोई भेदभाव नहीं झेलना पड़ा.
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