प्राचीन संस्कृति और संस्कार से परिपूर्ण है बनारस, पर्यटकों की पहली पसंद
बनारस घराना भारतीय तबला वादन के छः प्रसिद्ध घरानों में से एक है. ये घराना 200 सालों से कुछ पहले ख्यातिप्राप्त पंडित राम सहाय (1780-1826) के प्रयासों से विकसित हुआ था.
highlights
- बनारस घराना भारतीय तबला वादन के छह प्रसिद्ध घरानों में से एक है
- वाराणसी का पुराना शहर, गंगा तीरे का लगभग चौथाई भाग है
- यहां दशहरा का त्यौहार खूब रौनक और तमाशों से भरा होता है
वाराणसी:
वाराणसी का पुराना शहर, गंगा तीरे का लगभग चौथाई भाग है, जो भीड़-भाड़ वाली संकरी गलियों और किनारे सटी हुई छोटी-बड़ी असंख्य दुकानों और सैंकड़ों हिन्दू मंदिरों से पटा हुआ है. ये घुमाव और मोड़ों से भरी गलियां किसी के लिये संभ्रम करने वाली हैं. ये संस्कृति से परिपूर्ण पुराना शहर विदेशी पर्यटकों के लिये सालों से लोकप्रिय आकर्षण बना हुआ है. वाराणसी के मुख्य आवासीय क्षेत्र (विशेषकर मध्यम एवं उच्च-मध्यम वर्गीय श्रेणी के लिये) घाटों से दूर स्थित हैं. ये विस्तृत, खुले हुए और अपेक्षाकृत कम प्रदूषण वाले हैं.
रामनगर की रामलीला
यहां दशहरा का त्यौहार खूब रौनक और तमाशों से भरा होता है. इस अवसर पर रेशमी और ज़री के ब्रोकेड आदि से सुसज्जित भूषा में काशी नरेश की हाथी पर सवारी निकलती है और पीछे-पीछे लंबा जलूस होता है. फिर नरेश एक माह लंबे चलने वाले रामनगर, वाराणसी की रामलीला का उद्घाटन करते हैं. रामलीला में रामचरितमानस के अनुसार भगवान श्रीराम के जीवन की लीला का मंचन होता है. ये मंचन काशी नरेश द्वारा प्रायोजित होता है अर पूरे 31 दिन तक प्रत्येक शाम को रामनगर में आयोजित होता है.अन्तिम दिन इसमें भगवान राम रावण का मर्दन कर युद्ध समाप्त करते हैं और अयोध्या लौटते हैं. महाराजा उदित नारायण सिंह ने रामनगर में इस रामलीला का आरम्भ 19वीं शताब्दी के मध्य से किया था.
बनारस घराना
बनारस घराना भारतीय तबला वादन के छह प्रसिद्ध घरानों में से एक है. ये घराना 200 सालों से कुछ पहले ख्यातिप्राप्त पंडित राम सहाय (1780-1826) के प्रयासों से विकसित हुआ था. पंडित राम सहाय ने अपने पिता के संग पांच वर्ष की आयु से ही तबला वादन आरम्भ किया था. बनारस-बाज कहते हैं. ये बनारस घराने की विशिष्ट तबला वादन शैली है. इन्होंने तत्कालीन संयोजन प्रारूपों जैसे जैसे गट, टुकड़ा, परान, आदि से भी विभिन्न संयोजन किये, जिनमें उठान, बनारसी ठेका और फ़र्द प्रमुख हैं.
आज बनारसी तबला घराना अपने शक्तिशाली रूप के लिये प्रसिद्ध है, हालांकि बनारस घराने के वादक हल्के और कोमल स्वरों के वादन में भी सक्षम हैं. घराने को पूर्वी बाज मे वर्गीकृत किया गया है, जिसमें लखनऊ, फर्रुखाबाद और बनारस घराने आते हैं. बनारस शैली तबले के अधिक अनुनादिक थापों का प्रयोग करती है, जैसे कि ना और धिन. बनारस घराने में एकल वादन बहुत इकसित हुआ है और कई वादक जैसे पंडित शारदा सहाय, पंडित किशन महाराज और पंडित समता प्रसाद, एकल तबला वादन में महारत और प्रसिद्धि प्राप्त हैं. घराने के नये युग के तबला वादकों में पं कुमार बोस, पं. समर साहा, पं. बालकृष्ण अईयर, पं. शशांक बख्शी, सन्दीप दास, पार्थसारथी मुखर्जी, सुखविंदर सिंह नामधारी, विनीत व्यास और कई अन्य हैं. बनारसी बाज में 20 विभिन्न संयोजन शैलियों और अनेक प्रकार के मिश्रण प्रयुक्त होते हैं.
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