इसी साल के अगस्त में मंजूर सरोगेसी (रेग्यूलेशन) बिल 2016 के विधेयक को स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने सोमवार 21 नंवबर को नोटबंदी के हंगामे के बीच इस बिल को लोकसभा में पेश कर दिया। हालांकि हंगामे के कारण इस बिल पर चर्चा नहीं हो पाई और सदन की कार्यवाही को मंगलवार तक स्थगित कर दिया गया।
इस बिल के तहत देश में व्यवसायिक सरोगेसी पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। हालांकि जरूरतमंद निसंतान दंपत्तियों को कड़े नियमों के तहत सरोगेसी की मदद से बच्चे को जन्म देने की अनुमति मिलेगी।
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क्या है सरोगेसी से जुड़ी मुख्य बातें
- सरोगेसी (रेग्यूलेशन) बिल 2016 के तहत केवल भारतीय नागरिक ही सरोगेसी का लाभ उठा सकते है।
- सरोगेसी को अपनाने के लिए दंपति का कानूनी रूप से विवाहित होना आवश्यक है।
- शादी के पांच साल बाद तक बच्चे ना हो पाने के बाद ही आप इस प्रक्रिया को अपना सकते है।
- केवल संतानहीन दंपति ही इसकी मदद से बच्चे पैदा कर सकते है।
- इस प्रक्रिया को अपनाने के लिए पुरूष की आयु 26 से 55 और महिला की आयु 23 से 50 साल के बीच होनी आवश्यक है।
- इस प्रक्रिया को अपनाने से पहले दंपति को संतान की उत्पत्ति के लिए खुद को अनफिट होने का सर्टिफिकेट देना होगा।
- सरोगेट महिला का भी शादीशुदा होना आवश्यक है, साथ ही महिला का दंपति से पारिवारिक संबंध होना चाहिए।
- इस कानून का उल्घंन करने वालों को 10 साल की सजा का प्रावधान है।
क्यों पड़ी बिल की जरूरत
सरोगेसी एक दंपति और एक महिला के बीच का एग्रीमेंट होता है जिसमें वह बच्चे के जन्म के लिए अपनी कोख को किराए पर देती है। भारत में इस प्रकिया के तहत कम खर्चा आता है, इसलिए बाहर देशों के लोग भारत मे सरोगेसी के लिए आते है। कई जगह अवैध रूप से अविवाहित महिलाओं से बी सरोगेसी कराई जाती है, जिसके कारण उन्हें शारीरिक रूप से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है। इन्हीं कारणों से सरकार को इस बिल के जरिए देश में सरोगेसी को नियमित करने के लिए नया कानून ढ़ांचा बनाना पड़ा।
भारत में सरोगेसी का बिजनेस
भारत में कुछ एजेंसी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइंस के दिशार्निदेश को मानते हुए सरोगेट मदर उपलब्ध कराती है। इन एजेंसी को आर्च क्लीनिक कहा जाता है। स्वास्थ्य विभाग को भेजे गए कुछ अध्यनों के मुताबिक भारत में करीब 2000 विदेशी बच्चों का जन्म होता है, जिनकी सरोगेट मां भारतीय होती हैं।
Source : News Nation Bureau