भारत को मिलेगा पहला डेटा सुरक्षा कानून, बी एन श्रीकृष्णा समिति ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट

पिछले साल 31 जुलाई को डेटा सुरक्षा को लेकर गठित बी एन श्रीकृष्णा समिति ने शनिवार को सरकार के सामने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है।

पिछले साल 31 जुलाई को डेटा सुरक्षा को लेकर गठित बी एन श्रीकृष्णा समिति ने शनिवार को सरकार के सामने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है।

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vineet kumar1
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भारत को मिलेगा पहला डेटा सुरक्षा कानून, बी एन श्रीकृष्णा समिति ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट

जस्टिस बी एन श्रीकृष्णा

पिछले साल 31 जुलाई को डेटा सुरक्षा को लेकर गठित बी एन श्रीकृष्णा समिति ने शनिवार को सरकार के सामने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है। समिति ने आधार, सूचना के अधिकार, स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े डेटा की सुरक्षा के लिए सरकार के सामने सिफारिश की है।

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इसके अनुसार अगर डेटा की निजता और उससे जुड़े दूसरे नियमों का उल्लंघन होता है तो आपको भारी जुर्माना भी देना पड़ सकता है।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार अगर सरकार इन सिफारिशों को मान लेती तो उसे करीब 70 कानूनों में संशोधन करना पड़ेगा।

समिति का नेतृत्व कर रहे जस्टिस श्रीकृष्णा ने कहा कि मौजूदा समय में निजता एक ज्वलंत मुद्दा रहा है और इसीलिए इसे हर कीमत पर बचाने की कोशिश की गई है।

जस्टिस बी एन श्रीकृष्णा की अगुवाई में समिति ने शनिवार को अपनी रिपोर्ट केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को सौंपी।

उन्होंने कहा कि पिछले एक साल की अवधि में हमने डेटा को सुरक्षित रखने और डेटा की निजता का बखूबी ध्यान रखा है।

केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, 'यह एक आदर्श कानून है और हम इस पर व्यापक संसदीय परामर्श चाहते हैं ... हम चाहते हैं कि भारतीय डेटा संरक्षण कानून विश्व स्तर पर सुरक्षा, गोपनीयता, और नवाचार के मुद्दे पर एक मॉडल बन जाए।'

उन्होंने कहा कि रिपोर्ट अंतर-मंत्रालयी परामर्श और कैबिनेट के साथ-साथ संसदीय चर्चा से भी होकर गुजरेगी।

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समिति में शामिल एक सूत्र के अनुसार, 'पैनल ने ट्राई के ज्यादातर प्रस्तावों पर सहमति जताई है।'

ट्राई ने हाल में कहा था कि उपभोक्ता अपने डेटा के मालिक खुद हैं और इनका प्रबंधन करने वाली डिजिटल क्षेत्र की कंपनियां डेटा के केवल संरक्षक हैं और उनका डेटा पर प्राथमिक अधिकार नहीं है।

बता दें कि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि समिति के सदस्यों ने उल्लंघन किए जाने पर जुर्माना करने का सुझाव दिया है क्योंकि इसे दंडनीय अपराध बनाना भी काफी सख्त निर्णय है।

गौरतलब है कि सरकार सिफारिशों को मंजूर कर सकती है और मसौदे को सार्वजनिक कर सकती है या फिर इसे सार्वजनिक करने से पहले इसमें कुछ बदलाव कर सकती है।

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Source : News Nation Bureau

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