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Ayodhya Verdict: अयोध्या के इस गांव में हो सकता मस्जिद का निर्माण, ये है खास वजह

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार यानि कि 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को राम मंदिर के हक में सुनाया. फैसले में कहा गया कि राम मंदिर विवादित स्थल पर बनेगा और मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन अलग से दी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार यानि कि 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को राम मंदिर के हक में सुनाया. फैसले में कहा गया कि राम मंदिर विवादित स्थल पर बनेगा और मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन अलग से दी जाएगी.

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Vineeta Mandal
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Ayodhya Verdict: अयोध्या के इस गांव में हो सकता मस्जिद का निर्माण, ये है खास वजह

मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या के इस गांव में मिलेगी जगह( Photo Credit : (सांकेतिक चित्र))

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार यानि कि 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को राम मंदिर के हक में सुनाया. फैसले में कहा गया कि राम मंदिर विवादित स्थल पर बनेगा और मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन अलग से दी जाएगी. साथ ही कोर्ट ने कहा कि विवादित 02.77 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के अधीन रहेगी.  वहीं केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर बनाने के लिए तीन महीने में एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया गया है. 

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कोर्ट के फैसले के बाद अब मस्जिद निर्माण के लिए जगह की तलाश की कवायद तेज हो गई है. जिसके लिए अयोध्या की 14 कोसी परिक्रमा क्षेत्र से बाहर सदर तहसील के पूरा विकास खंड अन्तर्गत शहनवां ग्रामसभा का नाम आगे आया है. इसके साथ ही राजस्व विभाग ने सोहावल बीकापुर और सदर तहसील क्षेत्र में भी जमीन की तलाश शुरू कर दी है.

बताया जा रहा है कि शहनवां ग्रामसभा में बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के क्रब होने का दावा किया जाता रहा है. इस गांव के निवासी शिया बिरादरी के रज्जब अली व उनके बेटे मो. असगर को बाबरी मस्जिद का मुतवल्ली कहा गया. इसी परिवार को ब्रिटिश हुकूमत की ओर से 302 रुपये छह पाई की धनराशि मस्जिद के रखरखाव के लिए दी जाती थी. सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के दावे में इसका जिक्र भी किया गया.

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वहीं कहा जा रहा है कि पूर्व मुतवल्ली के वारिसान आज भी इसी गांव में रह रहे हैं. इन वारिसान की ओर से भी मस्जिद के निर्माण के लिए अपनी जमीन दिए जाने की घोषणा की जा चुकी है.

इसके साथ ही बता दें कि सन्1990-91 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में हिन्दू-मुस्लिम पक्ष की वार्ता के दौरान मस्जिद के लिए विहिप की ओर से ही शहनवां गांव में जमीन दिए जाने का प्रस्ताव किया गया था.

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