AyodhyaVerdict: हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है अयोध्या
AyodhyaVerdict: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ayodhya Dispute) मामले में शनिवार को फैसला सुनायेगा.
नई दिल्ली:
AyodhyaVerdict: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ayodhya Dispute) मामले में शनिवार को फैसला सुनायेगा. जहां तक अयोध्या की बात है तो रामायण के अनुसार दशरथ अयोध्या के राजा थे. श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था. राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएं तट पर स्थित है. अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है. अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है. रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी. कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा.
अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है. यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं. जैन मत के अनुसार पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था. अयोध्या श्रीरामचन्द्रजी की जन्मभूमि होने के नाते भारत के प्राचीन साहित्य व इतिहास में सदा से प्रसिद्ध रही है. अयोध्या की गणना भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में प्रथम स्थान पर की गई है. अयोध्या की महत्ता के बारे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनसाधारण में निम्न कहावतें प्रचलित हैं-
गंगा बड़ी गोदावरी,
तीरथ बड़ो प्रयाग,
सबसे बड़ी अयोध्यानगरी,
जहँ राम लियो अवतार.
- अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बहुत पुरानी राजधानी थी. स्वयं मनु ने अयोध्या का निर्माण किया था. वाल्मीकि रामायण से विदित होता है कि स्वर्गारोहण से पूर्व रामचंद्रजी ने कुश को कुशावती नामक नगरी का राजा बनाया था.
- श्रीराम के पश्चात् अयोध्या उजाड़ हो गई थी, क्योंकि उनके उत्तराधिकारी कुश ने अपनी राजधानी कुशावती में बना ली थी. रघु वंश से विदित होता है कि अयोध्या की दीन-हीन दशा देखकर कुश ने अपनी राजधानी पुन: अयोध्या में बनाई थी. महाभारत में अयोध्या के दीर्घयज्ञ नामक राजा का उल्लेख है जिसे भीमसेन ने पूर्वदेश की दिग्विजय में जीता था.
- घटजातक में अयोध्या (अयोज्झा) के कालसेन नामक राजा का उल्लेख है. गौतमबुद्ध के समय कोसल के दो भाग हो गए थे- उत्तरकोसल और दक्षिणकोसल जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी. अयोध्या या साकेत उत्तरी भाग की और श्रावस्ती दक्षिणी भाग की राजधानी थी. इस समय श्रावस्ती का महत्त्व अधिक बढ़ा हुआ था. बौद्ध काल में ही अयोध्या के निकट एक नई बस्ती बन गई थी जिसका नाम साकेत था. बौद्ध साहित्य में साकेत और अयोध्या दोनों का नाम साथ-साथ भी मिलता है जिससे दोनों के भिन्न अस्तित्व की सूचना मिलती है.
- रामायण में अयोध्या का उल्लेख कोशल जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है.
- पुराणों में इस नगर के संबंध में कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता है, परन्तु इस नगर के शासकों की वंशावलियाँ अवश्य मिलती हैं, जो इस नगर की प्राचीनता एवं महत्त्व के प्रामाणिक साक्ष्य हैं. ब्राह्मण साहित्य में इसका वर्णन एक ग्राम के रूप में किया गया है.
- सूत और मागध उस नगरी में बहुत थे. अयोध्या बहुत ही सुन्दर नगरी थी. अयोध्या में ऊँची अटारियों पर ध्वजाएँ शोभायमान थीं और सैकड़ों शतघ्नियाँ उसकी रक्षा के लिए लगी हुई थीं.
- राम के समय यह नगर अवध नाम की राजधानी से सुशोभित था.
- बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अयोध्या पूर्ववती तथा साकेत परवर्ती राजधानी थी. हिन्दुओं के साथ पवित्र स्थानों में इसका नाम मिलता है. फ़ाह्यान ने इसका ‘शा-चें’ नाम से उल्लेख किया है, जो कन्नौज से 13 योजन दक्षिण-पूर्व में स्थित था.
- मललसेकर ने पालि-परंपरा के साकेत को सई नदी के किनारे उन्नाव ज़िले में स्थित सुजानकोट के खंडहरों से समीकृत किया है.
- नालियाक्ष दत्त एवं कृष्णदत्त बाजपेयी ने भी इसका समीकरण सुजानकोट से किया है.
- थेरगाथा अट्ठकथा में साकेत को सरयू नदी के किनारे बताया गया है. अत: संभव है कि पालि का साकेत, आधुनिक अयोध्या का ही एक भाग रहा हो.
- शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के लिए जाने का वर्णन है. अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चंद्रगुप्त द्वितीय के समय (चतुर्थ शती ई. का मध्यकाल) और तत्पश्चात् काफ़ी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी. गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघु वंश में कई बार उल्लेख किया है.
- कालिदास ने उत्तरकौशल की राजधानी साकेत और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है, इससे जान पड़ता है कि कालिदास के समय में दोनों ही नाम प्रचलित रहे होंगे. मध्यकाल में अयोध्या का नाम अधिक सुनने में नहीं आता था. युवानच्वांग के वर्णनों से ज्ञात होता है कि उत्तर बुद्धकाल में अयोध्या का महत्त्व घट चुका था.
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