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अयोध्‍या विवाद : मुस्‍लिम पक्ष का यू-टर्न, कहा- सुन्नी वक्फ बोर्ड राम चबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान नहीं मानता

अयोध्या विवाद की सुनवाई के 31वें दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से ज़फरयाब गिलानी ने सफाई देते हुए कहा, सुन्नी वक्फ बोर्ड राम चबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान नहीं मानता है.

Updated on: 25 Sep 2019, 01:04 PM

नई दिल्‍ली:

अयोध्या विवाद की सुनवाई के 31वें दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से ज़फरयाब गिलानी ने सफाई देते हुए कहा, सुन्नी वक्फ बोर्ड राम चबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान नहीं मानता है. हमारा यह कहना है कि हिंदू पक्ष राम चबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान मानता रहा है और इस मामले में डिस्ट्रिक्ट ज़ज की टिप्पणी के खिलाफ हम नहीं जा रहे हैं. सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी दरअसल बुधवार को सीधे तौर पर राम चबूतरे को श्रीराम जन्मस्थान मानने से इंकार कर रहे, लेकिन हकीकत यह है कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट जज के उस फैसले को कभी चुनौती नहीं दी, जिसमें जज ने रामचबूतरे को श्रीरामजन्मस्थान मानने की हिंदू पक्ष की आस्था को मान्यता दी थी.

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फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का यह फैसला 18 मई 1986 को आया था. तब महंत रघुबर दास ने विवादित ज़मीन पर श्री राममंदिर के निर्माण को लेकर अर्जी दायर की थी. रघुबर दास ने फैजाबाद सब जज के 24 दिसंबर 1885 के फैसले को चुनौती दी थी. डिस्ट्रिक्ट जज खुद विवादित जगह पर गए और उसके बाद उन्होंने फैसला दिया था.

18 मई 1986 को दिए अपने फैसले में डिस्ट्रिक्ट जज ने कहा कि अपने आप में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदुओं के लिए इतनी पवित्र जगह पर बाबरी मस्जिद बनाई गई, लेकिन यह 356 साल पुरानी बात हो चुकी है. अब उस नुकसान की भरपाई होना मुश्किल है. ज़्यादा से ज़्यादा यब यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया जा सकता है. इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि रामचबूतरे को हिंदू श्रीराम का जन्मस्थान मानते आए हैं और एक रेलिंग रामचबूतरे को मस्जिद से अलग करती है.

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मुस्लिमों ने 1986 के इस फैसले में रामचबूतरे को श्रीराम का जन्मस्थान मानने की टिप्पणी को कभी किसी अदालत में चुनौती नहीं दी और उसके बाद से (1986 से) रामचबूतरे पर हिन्दुओं का कब्जा रहा है.