अयोध्या में विवादित भूमि को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है।
श्याम बेनेगल, तीस्ता सीतलवाड़, ओम थानवी, जॉन दयाल, मेधा पाटकर समेत 32 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दायर कर अयोध्या विवाद में पक्ष रखने की मांग की है। अर्ज़ी में कहा गया है कि विवादित ज़मीन का धार्मिक इस्तेमाल न हो। वहां जनहित के काम की कोई इमारत बनाई जाए।
यूपी सरकार ने अंग्रेज़ी अनुवाद के लगभग 15 हज़ार पन्ने सुप्रीम कोर्ट जमा कराए हैं। मामले से जुड़े दूसरे पक्षों ने भी हज़ारों पन्नों का अनुवाद कोर्ट को सौंपा है। 11 अगस्त को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को उन दस्तावेजों का अनुवाद कराने का निर्देश दिया था, जिनका वो हवाला देना चाहते है।
जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ की अगुवाई में उनके साथ जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन हैं। वहीं रामलला का पक्ष हरीश साल्वे रख रहे हैं। इस मुकदमे की सुनवाई के लिए सभी पक्षकार पूरी तैयारी से अदालत में सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट इस विवाद से जुड़े कई भाषाओं में ट्रांसलेट किए गए 9000 पन्नों पर गौर करेगा।
बता दें कि 6 दिसंबर को विवादित ढांचा ढहाए जाने के 25 साल भी पूरे हो रहे हैं।
रामलला विराजमान की ओर से पक्षकार महंत धर्मदास ने दावा किया है कि सभी सबूत, रिपोर्ट और भावनाएं मंदिर के पक्ष में हैं। हाईकोर्ट के फैसले में जमीन का बंटवारा किया गया है जो हमारे साथ उचित न्याय नहीं है।
उधर, इस मामले में कोर्ट देखेगा कि डॉक्युमेंट्स का ट्रांसलेशन पूरा हुआ है या नहीं। ट्रांसलेशन नहीं होने पर पेच फंस सकता है लेकिन अदालत कह चुकी है कि अब सुनवाई नहीं टलेगी।
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इससे पहले 11 अगस्त को तीन जजों की स्पेशल बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट में 7 साल बाद अयोध्या मामले की सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने कहा था कि 7 भाषा वाले दस्तावेज का पहले का अनुवाद किया जाए। कोर्ट से साथ ही कहा कि वह इस मामले में आगे कोई तारीख नहीं देगा।
गौरतलब है कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित कई भाषाओं में हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी।
आपको बता दें कि राम मंदिर के आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। इसमें कहा गया कि जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए।
सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपी जाए।
इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी।
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Source : News Nation Bureau