अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू पक्ष से मंदिर की मौजूदगी साबित करने को मांगे ठोस सबूत
सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने भी ये सवाल सीएस वैद्यनाथन से पूछा कि ये कैसे साबित होगा कि नीचे जो खंभों के आधार मिले थे, क्या एक ही समय के है.
highlights
- जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, हम आस्था पर सवाल नहीं उठा रहे पर आपके पास क्या सबूत हैं
- यह कैसे साबित होगा कि यहां बौद्ध मंदिर नहीं था, मस्जिद नहीं था, मंदिर ही था
नई दिल्ली:
अयोध्या मामले की सुनवाई के 36वें दिन गुरुवार को रामलला की ओर से सीएस वैद्यनाथन ने मुस्लिम पक्ष की ओर से दी गई दलीलों का जवाब देते हुए कहा, ASI की खुदाई से साफ है कि विवादित ढांचे के नीचे एक मंदिरनुमा विशालकाय ढाँचा था. उन्होंने ढांचे के नीचे ईदगाह होने की मुस्लिम पक्ष की दलील को खारिज कर दिया. इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने कहा था, विवादित जगहो पर मिले खम्भे की गहराई अलग-अलग है. अलग-अलग समय के खम्भे किसी विशालकाय इमारत ( मंदिर) का हिस्सा नहीं हो सकते. सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने भी ये सवाल सीएस वैद्यनाथन से पूछा कि ये कैसे साबित होगा कि नीचे जो खंभों के आधार मिले थे, क्या एक ही समय के है. इस पर सीएस वैद्यनाथन ने जवाब देते हुए कहा, ASI रिपोर्ट में बाकायदा इस बात का जिक्र है कि 46 खम्भे एक ही समय के हैं. सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष खाली जगह पर मस्जिद निर्माण की बात कह रहा था. अब वो ईदगाह पर मस्जिद निर्माण की बात कह रहे हैं. खुदाई में मिली कमल की आकृति, सर्कुलर श्राइन, परनाला सब वहां मन्दिर की मौजूदगी साबित करते हैं, क्योंकि ये सब संरचना उत्तर भारतीय मंदिरों की विशेषताएं हैं.
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इस पर जस्टिस चन्दचूड़ ने पूछा, आपने जिन सरंचनाओं का जिक्र किया है, वो बौद्ध विहार में भी तो हो सकती है. आप कैसे ये साबित कर सकते है कि वो बौद्ध विहार न होकर मन्दिर ही होगा. हम आस्था/विश्वास पर सवाल नहीं उठा रहे. सवाल सिर्फ ये है कि मंदिर की मौजदूगी को साबित करने के लिए क्या सबूत है.
इस पर सीएस वैद्यनाथन ने कहा, यह जगह हिंदुओं के लिए हमेशा पवित्र रही है. बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए ये जगह कभी अहम नहीं रही. ये अपने आप में साबित करता है कि यहां मन्दिर ही था. इस पर जस्टिस चन्दचूड़ बोले, आस्था और विश्वास अपने आप में एकदम अलग तर्क हैं. साफ है कि आस्था और विश्वास को साबित करने के लिए तो कोई सबूत होंगे नहीं, लेकिन हम यहां पुख्ता सबूतो की बात कर रहे हैं.
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सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि भारत में इतिहास प्राचीन परम्पराओं/रीति-रिवाजों पर आधारित रहा है. हालांकि इसका दर्ज करने का तरीका पश्चिम से अलग है पर इस कारण हमारी प्राचीन सभ्यता पर आधारित इतिहास को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने वेद, स्मृति, श्रुति का हवाला दिया.
धवन ने उन्हें इस बात के लिए टोका कि हम इन सब पर सवाल नहीं उठा रहे. हमारा यह कहना है कि हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाहियां ये साबित नहीं कर पाई है कि 1934 से पहले वहां नियमित पूजा होती रही है. सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े को सेवादार के हैसियत से केस दायर करने का कोई अधिकार नहीं, क्योंकि श्रीरामजन्मस्थान को ख़ुद न्यायिक व्यक्ति का दर्ज़ा हासिल है.
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