logo-image

Ayodhya Dispute: सुप्रीम कोर्ट की सलाह, आपसी बातचीत से सुलझाएं विवाद

क्या वर्षों से अदालती दलीलों में उलझे अयोध्या भूमि विवाद को आपसी बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है? ये सवाल एक बार फिर खड़ा हो गया है.

Updated on: 26 Feb 2019, 03:31 PM

नई दिल्‍ली:

क्या वर्षों से अदालती दलीलों में उलझे अयोध्या भूमि विवाद को आपसी बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है? ये सवाल एक बार फिर खड़ा हो गया है. सवाल एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से आया है. अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का सुझाव देते हुए सभी पक्षकारों से इस पर विचार करने को कहा है . जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने कहा कि हम प्रॉपर्टी विवाद को तो सुलझा सकते हैं पर हम रिश्तों को बेहतर करने पर विचार कर रहे हैं.इसलिए अगर समझौते के जरिए एक प्रतिशत भी इस मामले के सुलझने के चांस हो, तो इसके लिए कोशिश होनी चाहिए.

हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों का रुख

कोर्ट की इस पहल पर हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकीलों का कहना था कि इससे पहले भी मध्यस्थता के जरिये इस मामले को सुलझाने की कोशिश हुई पर वो नाकामयाब ही रही. हालांकि इसके बाद कुछ मुस्लिम पक्षकार और निर्मोही अखाड़ा जैसा हिंदू संगठन कोर्ट की इस पहल पर कुछ हद तक सहमत भी नजर आये. मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकील राजीव धवन का कहना था कि कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता के जरिये मामले को सुलझाने की एक कोशिश की जा सकती है, बशर्ते हिंदू पक्ष इसको लेकर स्पष्ठ रुख रखे.

यह भी पढ़ेंः केस जीतने पर भी सुन्नी वक्फ बोर्ड को नहीं मिलेगी रामजन्म भूमि की जमीन: सुब्रमण्यम स्वामी

लेकिन रामलला विराजमान की ओर से पेश वकील सी एस वैद्यनाथन ने इसे सिरे से खारिज कर दिया.उन्होनें कहा- पहली भी ऐसी कोशिश असफल ही साबित हुई है और हम मध्यस्थता का कोई दूसरा राउंड नहीं चाहते. बहरहाल कोर्ट 5 मार्च को सुनवाई में तय करेगा कि क्या इस मामले में समझौते के लिए कोर्ट की ओर मध्यस्थ नियुक्त हो सकता है या नहीं.

दस्तावेजों के अनुवाद की प्रामाणिकता पर सवाल

अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान एक बड़ा पेंच हजारों पेज के दस्तावेजों को लेकर भी अटका है. पिछली बार सुप्रीन कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि वो कोर्ट में यूपी सरकार और दूसरे पक्षों की ओर से जमा कराए गए दस्तावेजों के अनुवाद की जांच कर रिपोर्ट सौंपे. कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि कोर्ट के आधिकारिक अनुवादकों द्वारा अभी भी हजारों पेज के दस्तावेजों का अनुवाद किया जाना बाक़ी है.

यह भी पढ़ेंः भगवान राम सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि मुसलमानों के भी पूर्वज हैं: बाबा रामदेव

इस पर चीफ जस्टिस ने है कि क्या सभी पक्ष यूपी सरकार की ओर से जमा कराए गए दस्तावेजों के अनुवाद से सहमत है, अगर सभी पक्ष एकमत है तो हम आगे बढ़ सकते है, क्योंकि एक बार जब हम अयोध्या मामले की सुनवाई शुरू कर देंगे, तब हम नहीं चाहते कि कोई भी पक्षकार दस्तावेजों के अनुवाद में खामी का हवाला देकर सुनवाई टालने की मांग करे.

यह भी पढ़ेंः 7 Points में समझें अयोध्‍या मामले में सरकार की ओर से दायर अर्जी के पीछे का Background

मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने कहा-- इसके लिए पहले हमे दस्तावेजों के अनुवाद को देखना होगा और इसके लिए 8 से 12 हफ्ते के वक़्त की ज़रुरत होगी.हालांकि हिंदू महासभा के वकील सी एस वैद्यनाथन ने इसका विरोध किया.उनका कहना था कि दिसंबर 2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भी साफ है कि यूपी सरकार की ओर से किये अनुवाद को लेकर सभी पक्षों की एक राय थी और अब जानबूझकर दो साल बाद फिर से अनुवाद की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया जा रहा है.

आगे क्या होगा!

बहरहाल कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वो सभी दस्तावेजों के अनुवाद की कॉपी सभी पक्षों को दे.सभी पक्ष अनुवाद को देखे और अगर एतराज हो तो छह हफ्ते के अंदर लिखित जवाब दाखिल करे.कोर्ट आठ हफ्ते बाद सुनवाई करेगा.