अयोध्‍या विवाद : गोपाल सिंह विशारद की याचिका का अब कोई मतलब नहीं, मुस्‍लिम पक्ष के वकील की दलील

राजीव धवन ने कई गवाहों के बयानों का हवाला देते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि मुसलमान उस जगह पर अपना दावा ठोकते रहे. वो चाहते थे कि नमाज़ के दौरान कोई दूसरा स्पीकर न बजे.

राजीव धवन ने कई गवाहों के बयानों का हवाला देते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि मुसलमान उस जगह पर अपना दावा ठोकते रहे. वो चाहते थे कि नमाज़ के दौरान कोई दूसरा स्पीकर न बजे.

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Sunil Mishra
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अयोध्‍या विवाद : विशारद की याचिका का अब कोई मतलब नहीं, बोले धवन

अयोध्या मामले की सुनवाई के 30वें दिन मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने गोपाल सिंह विशारद की ओर से दायर अर्जी पर जवाब देते हुए कहा, विशारद ने श्रीरामजन्मभूमि पर पूजा के व्यक्तिगत अधिकार का दावा करते हुए मुकदमा दायर किया था और उनकी मौत के बाद उनकी याचिका का कोई औचित्य नहीं रहा. (1950 में पूजा के अधिकार को हासिल करने के लिए निचली अदालत का रुख करने वाले गोपाल सिंह विशारद का 1986 में देहांत हो चुका है. उनकी मौत के बाद उनके बेटे राजेन्द्र सिंह केस की पैरवी कर रहे हैं.

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राजीव धवन ने कई गवाहों के बयानों का हवाला देते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि मुसलमान उस जगह पर अपना दावा ठोकते रहे. वो चाहते थे कि नमाज़ के दौरान कोई दूसरा स्पीकर न बजे. ये साबित करता है कि उनका वहां कब्जा रहा और वो वहां नमाज़ अदा करते रहे.

राजीव धवन ने दलील दी कि गर्भगृह में पूजा नहीं की गई. 1949 में वहां जबरन मूर्ति रखी गई. ग़लत तरीके से रखी मूर्ति से हिंदुओं के दावे पुख्‍ता नहीं हो जाते. धवन ने कहा, जब-जब हिन्दू पक्ष की ओर से जबरन एंट्री करने की कोशिश की गई , हमेशा मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया और अथॉरिटी ने भी मुस्लिमों के पक्ष में ही फैसला दिया.

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धवन ने कहा- पुराने वक्त से बादशाह की ओर से वहां मस्जिद के मुतवल्ली को मस्जिद की देखरेख के लिए 302 रुपये सालाना मिलते थे. अंग्रेजों के वक़्त में मुतवल्ली को राजस्व हासिल करने के लिए कई गांव दे दिए गए. ये दर्शाता है कि मुसलमानों का वहां पर कब्जा रहा है.

राजीव धवन की दलीलें पूरी हो चुकी हैं. हिंदू पक्ष की ओर से 16 दिन सुनवाई पूरी होने के बाद धवन ने करीब 14 दिन अपनी दलीलें रखी. अब ज़फरयाब जिलानी दलीलें रख रहे हैं. 

ज़फरयाब जिलानी ने जिरह की शुरुआत में कहा, चाहे वाल्मिकि रामायण हो या फिर रामचरितमानस, दोनों में रामजन्मभूमि मंदिर का कोई जिक्र नहीं है. इस पर बेंच ने सवाल किया, क्या इन ग्रंथों में इनका जिक्र न होने भर से यह साबित हो जाएगा कि वहां मंदिर की मौजूदगी नहीं रही है. जस्टिस चन्दचूड़ ने जिलानी से सवाल किया कि सिर्फ इसलिए कि वाल्मिकि रामायण और रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म के किसी 'खास जगह' का जिक्र नहीं है, इतना भर से हिन्दू नहीं मान सकते कि अयोध्या में किसी 'खास जगह' पर श्रीराम ने अवतार लिया था.

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जिलानी ने जवाब दिया कि ऐसे कोई सबूत नहीं है कि 1949 में केंद्रीय गुम्बद में पूजा होती रही हो. जस्टिस बोबड़े ने जिलानी से सीधा सवाल किया, आपकी बात को मानें तो इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था?

इस पर ज़फरयाब जिलानी ने कहा, हमें ये मानने में कोई दिक्कत नहीं कि श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया था. विवाद इस बात को लेकर है कि श्रीराम का जन्मस्थान मस्जिद के अंदर नही है.

जस्टिस बोबडे : - तो आप ये मानते हैं कि राम चबूतरा जो 1885 के बाद अस्तित्व में आया, श्रीराम का जन्मस्थान है

ज़फरयाब जिलानी : हमें ये मानने में कोई हर्ज नहीं. तीन कोर्ट इससे पहले ये बात कह चुके हैं.

Source : न्‍यूज स्‍टेट ब्‍यूरो

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