अयोध्या में राम मंदिर पर अब 10 जनवरी को नई बेंच करेगी सुनवाई
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी तय की है.
नई दिल्ली:
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी तय की है. दस जनवरी से पहले इस मामले के लिए नई बेंच का गठन किया जाएगा. 6 या 7 जनवरी को नई बेंच के गठन का फैसला हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (4 जनवरी) को 10:40 मिनट पर सुनवाई शुरू हुई और 60 सेकंड में सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत आदेश जारी कर दिया. हालांकि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वकील हरिनाथ राम के नवंबर 2018 में दाखिल उस पीआईएल को खारिज कर दिया जिसमें राम मंदिर की सुनवाई रोजाना करने की मांग की गई थी.
Supreme Court also dismissed a PIL seeking to hear the Ayodhya matter on urgent and day to day basis. The PIL was filed by an advocate Harinath Ram in November 2018. pic.twitter.com/eHK9N1Rr8H
— ANI (@ANI) January 4, 2019
अब नई बेंच ही ये तय करेगी कि क्या ये मामला फास्टट्रैक में सुना जाना चाहिए या नहीं.
और पढ़ें : जानें, कब और कहां से शुरू हुआ था अयोध्या विवाद, यहां पढ़ें पूरा इतिहास
बता दें कि मुख्य अयोध्या केस आइटम नंबर 7 था. एक और नया केस लगा था आइटम 18 के तौर पर. इसमें हरिनाथ नाम के शख्स (मूल पक्षकार नहीं) ने तय समय सीमा में सुनवाई और स्थगन देने पर कारण दर्ज करने की मांग की थी. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए नाराजगी जताई और कहा कि ये कैसी याचिका है. आप चाहते हैं कि कोर्ट अयोध्या मामले की तारीख तय करने का कारण बताए.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पीठ अयोध्या विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था.
बता दें कि 27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के इस्माइल फारूकी केस पर अपना फैसला सुनाया. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 1994 मामले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि हमें 1994 वाले फैसले को समझने की जरूरत होगी.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मुस्लिम पक्षकारों की ओर से याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने 20 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा था.
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