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अयोध्या केस (Ayodhya Case) : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) दोबारा इतिहास नहीं लिख सकता: मुस्लिम पक्ष

अयोध्या मामले की सुनवाई के 38 वें दिन आज मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने दलीलें रखी. धवन ने कहा कि बाबर के काम की समीक्षा अब अदालत में नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट दोबारा इतिहास नहीं लिख सकता.

Updated on: 14 Oct 2019, 11:37 PM

नई दिल्ली:

अयोध्या मामले (Ayodhya case) की सुनवाई के 38वें दिन आज मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन (Rajeev Dhawan) ने दलीलें रखी .धवन ने कहा कि बाबर के काम की समीक्षा अब अदालत में नहीं की जा सकती.सुप्रीम कोर्ट दोबारा इतिहास नहीं लिख सकता. बाबर के काम की समीक्षा होगी तो सम्राट अशोक के काम की भी समीक्षा होगी. धवन ने सवाल उठाया कि क्या कोर्ट उन सभी 500 मस्जिदों की खुदाई की इजाजत देगा जिन पर हिंदू पक्ष का दावा है कि वो मंदिर तोड़कर बनाई गई.अगर किसी दूसरे धार्मिक संस्थान के कुछ अवशेष मिलते भी है, तो भी क्या 450 साल बाद किसी मस्जिद को अवैध घोषित किया जा सकता है.

राजीव धवन ने सुनवाई के दौरान औरंगज़ेब को सबसे उदार शासकों में से एक बताया. उन्होंने कहा, 'हिंदु पक्ष को को इस्लामिक नियमों की सीमित समझ है. वो अपने हिसाब से तथ्यों को पेश कर रहे है.एक बार बनी मस्ज़िद किसी को नहीं दी जा सकती. दरअसल हिंदू पक्ष का कहना था कि इस्लामिक मान्यताओं के लिहाज से भी इसे वैध मस्जिद करार नहीं दिया जा सकता.'

विध्वंस के बाद भी मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहेगी
मुस्लिम पेश की ओर से राजीव धवन ने कहा कि 1930 के बाद से वहां हिंदू पक्ष की ओर से जबरन कब्जे की कोशिश होती रही. धवन ने कहा, 'मस्जिद को तबाह किया गया, विवादित जगह के अंदर जबरन घुसने की कोशिश की गई, खम्बों पर सिंदूर लगाए गए उन्होंने पवित्र जगह ( मस्जिद का)का ऐसा अपमान क्यों किया .उन्हें मस्जिद के अंदर तस्वीरें टांगने का कोई हक़ नहीं था.धवन ने कहा कि एक मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहेगी. उसको धवस्त किये जाने से मस्जिद खत्म नहीं हो जाती .इमारत ढहाए जाने के बाद भी वो जगह मस्जिद ही है.

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मुस्लिम पक्ष का विवादित ज़मीन पर लगातार कब्जा रहा
धवन ने कहा कि वहां नमाज पढ़े जाने से रोके जाने से मुस्लिमों का दावा कमज़ोर नहीं हो जाता.मुस्लिम पक्ष का विवादित ज़मीन पर लगातार कब्जा रहा है. हिंदू पक्ष ने बहुत देर से दावा किया. 1989 से पहले हिंदू पक्ष ने कभी ज़मीन पर मालिकाना दावा पेश नहीं किया.1986 में रामचबूतरे पर मंदिर बनाने की महंत धर्मदास की मांग को फैज़ाबाद कोर्ट खारिज कर चुका है.ASI की रिपोर्ट में भी कहीं पर मन्दिर के विध्वंस किये जाने की बात नहीं कही गई है. अगर विवादित जगह पर मुस्लिम पक्ष का कब्जा नहीं होता को फिर 1934 में एक गुबंद को गिराने या फिर 1949 में जबरन मूर्ति रखे जाने की क्या ज़रूरत थी.हिंदू पक्ष ये भी साबित नहीं कर पाया कि भगवान राम अंदरुनी हिस्से में गुम्बद के नीचे पैदा हुए थे.

बाहरी चबूतरे पर हिंदुओं की पूजा को लेकर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन से सवाल पूछा कि बाहरी चबूतरे पर हिंदुओं के कब्जे को लेकर उनका क्या कहना है. दस्तावेज वहां पर 1885 से रामचबूतरे पर हिंदुओ द्वारा पूजा किये जाने की की पुष्टि करते है. क्या ये मुस्लिम पक्ष के दावे को कमज़ोर नहीं करता.

धवन ने जवाब दिया कि नहीं ,इससे मुस्लिम पक्ष का मालिकाना दावा कमजोर नहीं होता. सिर्फ रामचबूतरे पर पूजा करते रहे है, वो भी मुस्लिम पक्ष की इजाजत से. ज़मीन पर मालिकाना हक़ को लेकर तब हिंदू पक्ष ने दावा पेश नहीं किया था.

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सारे मुश्किल सवाल मुस्लिम पक्ष से ही क्यों ?
मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि मैंने नोटिस किया है कि सुनवाई के दौरान बेंच के सारे सवाल मुस्लिम पक्ष से ही रहे है.हिंदू पक्ष से कोई सवाल नहीं पूछा गया.

रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इस पर ऐतराज जाहिर करते कहा- धवन की ये ग़लत, बेबुनियाद बात है.

धवन ने कहा - मैं कोई बेबुनियाद बात नहीं कह रहा है. मेरी ज़िम्मेदारी बनती है कि मैं बेंच के सारे सवालों के जवाब दुं. पर सारे सवाल मुस्लिम पक्ष से ही क्यों हो रहे है.

रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इस पर ऐतराज जाहिर करते कहा- ये ग़लत, बेबुनियाद बात है.

धवन ने कहा - मैं कोई बेबुनियाद बात नहीं कह रहा है. पर मेरी ज़िम्मेदारी बनती है कि मैं बेंच के सारे सवालों के जवाब दूं.