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Ayodhya Case Hearing : 40 दिन चली सुनवाई में मुस्लिम पक्ष की 14 मुख्य दलीलें

मुस्लिम पक्ष का कहना है कि विवादित जगह पर मंदिर तोड़ कर मस्जिद का निर्माण नहीं किया.

Updated on: 16 Oct 2019, 07:01 PM

highlights

  • अयोध्या मामला: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
  • मीनाक्षी अरोड़ा ने ASI की रिपोर्ट पर उठाए सवाल
  • 40 दिनों की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष ने रखी अपनी बात

नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ऐतिहासिक रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद (Historical Ram Birth Palce and Babri Masjid Controversy) की सुनवाई पूरी कर ली है. बुधवार को अयोध्या विवाद (Ayodhya Controversy) की सुनवाई का 40वां दिन और अंतिम दिन था.अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष (Muslim Side) की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन (Rajiv Dhwan), मीनाक्षी अरोड़ा (Minakshi Arora), शेखर नाफड़े (Shekher Nafde), निज़ाम पाशा (Nizam Pasha), ज़फरयाब जिलानी (Zafaryab Jilani) ने दलीलें रखी. मुस्लिम पक्ष की ये मुख्य दलील रही-

1- मन्दिर तोड़ कर मस्जिद का निर्माण नहीं किया गया
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि विवादित जगह पर मंदिर तोड़ कर मस्जिद का निर्माण नहीं किया.ज़मीन तब खाली थी, जब बाबर ने मस्जिद का निर्माण कराया. ASI रिपोर्ट से भी इसकी तस्दीक नहीं होती कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई. मोर, कमल जैसे चिन्ह का मिलना ये साबित नहीं करता कि वहां मंदिर था.

2- विवादित इमारत मस्जिद थी
मुस्लिम पक्ष ने ऐतिहासिक प्रमाणों और दलीलों के जरिये साबित करने की कोशिश की कि विवादित इमारत मस्जिद थी. उन्होंने ये साबित करने के लिए 1950 की विवादित ढांचे की तस्वीर दिखाई जिसके मुताबिक विवादित ढांचे के अंदर तीन जगह अरबी में अल्लाह लिखा हुआ था.

3- रामलला का प्रकट होना सोची समझी साजिश
अयोध्या में 1949 में विवादित जगह में मूर्तियों का प्रकट होना कोई दैवीय चमत्कार नहीं था, बल्कि कब्जा जमाने के लिए एक सोची समझी साजिश थी. मुसलमान तो वहां जा नहीं पा रहे थे, लेकिन हिंदू पूजा करते रहे. आगे चलकर जगह पर पूरा कब्ज़ा लेने के लिए हिंदू रथयात्रा निकालने लगे.

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4- अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान मानने से ऐतराज नहीं, विवाद केंद्रीय गुम्बद पर हिंदू पक्ष के दावे पर
मुस्लिम पक्ष की ओर कहा गया कि उन्हें ये मानने में कोई ऐतराज नहीं है कि श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया है. लेकिन ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं जिसके जरिये ये साबित हो सके कि किस ख़ास जगह पर श्री राम ने जन्म लिया. हिंदू पक्ष केंद्रीय गुम्बद के नीचे वाली जगह पर जन्मस्थान होने का दावा कर रहा है, यही विवाद की जड़ है.

5- निर्मोही अखाड़े के सेवादार का हक़, मालिकाना हक़ नहीं
मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि निर्मोही अखाड़े के सेवादार होने के दावे को पूरी तरह झूठा नहीं कह सकता. अखाड़े को सिर्फ रामचबूतरे पर पूजा का हक़ दिया गया था, वो भी मुस्लिम पक्ष की इजाजत से . पूरी जमीन पर मालिकाना हक़ उन्हें कभी हासिल नहीं था ,न ही उनकी ओर से ऐसा कोई दावा किया गया था.1858 में निर्मोही अखाड़े ने भी सिर्फ पूजा का हक़ मांगा था, वो भी चबूतरे पर .

6- मस्जिद की देखरेख के लिए अनुदान मिलता रहा
पुराने वक्त से बादशाह की ओर से वहाँ मस्जिद के मुतवल्ली को मस्जिद की देखरेख के लिए 302 रुपये सालाना मिलता था.अंग्रेजो के वक़्त में मुतवल्ली को राजस्व हासिल करने के लिए कई गांव दे दिये गये.ये दर्शाता है कि मुसलमानों का वहां पर कब्जा रहा है.

7- मस्जिद की मरम्मत के लिए हर्जाना भी मिला
1934 में बैरागियों के हमले से इमारत को नुकसान हुआ. मस्ज़िद के मुतवल्ली ने सरकार से हर्जाना मांगा. टूटा हिस्सा 1935 में उससे ठीक करवाया गया.चूंकि हर्जाने के लिए सिर्फ मुसलमानों ने ऑथोरिटी का रुख किया. ये दर्शाता है कि मुस्लिम मस्जिद के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे.

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8- श्रीरामजन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा नहीं
मुस्लिम पक्ष की ओर से श्रीरामजन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति का दर्जा दिये जाने पर सवाल उठाए. कहा कि जन्मस्थान के नाम से याचिका दाखिल करने का मकसद मुस्लिम पक्ष को ज़मीन से पूरी तरह बाहर करना था. अगर इस तरह से मुकदमे दायर करने की इजाजत दी जाएगी तो मुकदमों की बाढ़ आ जायेगी

9- 1886 के फैसले के बाद फिर से सुनवाई के औचित्य नहीं
मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलों में क़ानून के रेसज्युडिकेटा' सिद्धान्त का हवाला भी दिया.इस सिद्धांत के मुताबिककिसी सम्पति विवाद का एक बार निपटारा होने के बाद कोर्ट में वो मामला फिर से नहीं उठाया जा सकता. मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि 1886 में फैज़ाबाद कोर्ट ने मंहत रघुवर दास की याचिका पर सुनवाई करते हुए , विवादित रामचबूतरे पर मन्दिर निर्माण की मांग को ठुकरा दिया था. ऐसे में इस फैसले के 70 साल बाद फैजाबाद कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट को फिर से इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेसज्युडिकेटा को लेकर मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को खारिज कर दिया था

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10- बाबरी मस्जिद गिराए जाने का मकसद हकीकत को मिटाना
मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि 6 दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने का मकसद हकीकत को मिटाना था. इसके लिए सोची-समझी चाल के तहत बाकायदा 1985 में रामजन्मभूमि न्यास का गठन किया गया. 1989 में जहां इसको लेकर मुकदमा दायर किया गया, वहीं विश्व हिंदू परिषद ने देश भर में हिंदुओं से शिला एकत्र करने का अभियान शुरू किया.इस मामले में लोगों को धर्म के नाम पर उकसाया गया, रथयात्रा निकाली गई, जिसकी परिणीति विवादित ढाँचा विध्वंस के रूप में सामने आई

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11- ASI रिपोर्ट पर सवाल
मुस्लिम पक्ष ने विवादित ढांचे के नीचे मंदिरनुमा विशालकाय ढाँचा होने की पुष्टि करने वाली ASI रिपोर्ट की विश्वनीयता और विश्वनीयता पर भी सवाल खड़े किए.मुस्लिम पक्ष ने कहा कि ASI की रिपोर्ट पुरातत्वविदों के राय पर आधारित है
उन्होंने अपनी धारणाओं के मुताबिक काम किया..ये बस उनकी राय भर है. इसे कोई ठोस सबूत नहीं माना जा सकतापुरातत्व फिजिक्स, केमिस्ट्री की तरह कोई विज्ञान नहीं है. किसी खोज पर पुरातत्वविदों की राय अलग अलग हो सकती है.

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12- विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह हो सकता है
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि विवादित ढांचे के नीचे एक ईदगाह हो सकता है. वहां ASI की खुदाई मे मिले दीवारों के अवशेष ईदगाह के हो सकते है. मीनाक्षी अरोड़ा ने ASI रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि नीचे जो खंभों के आधार मिले थे वह अलग-अलग समय के थे. उनकी गहराई भी अलग थी. ऐसे में उन्हें एक ही विशाल इमारत का हिस्सा नहीं कहा जा सकता. जबकि ASI की रिपोर्ट में मस्जिद के नीचे मंदिरनुमा एक विशालकाय ढांचे की बात कही गई थी .

13- बाबर के काम की समीक्षा अब अदालत में नहीं हो सकती
मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि बाबर एक बादशाह था, सर्वेसर्वा था.बाबर के काम की समीक्षा अब अदालत में नहीं की जा सकती.सुप्रीम कोर्ट दोबारा इतिहास नहीं लिख सकता. बाबर के काम की समीक्षा होगी तो सम्राट अशोक के काम की भी समीक्षा होगी. क्या कोर्ट उन सभी 500 मस्जिदों की खुदाई की इजाजत देगा जिन पर हिंदू पक्ष का दावा है कि वो मंदिर तोड़कर बनाई गई.अगर किसी दूसरे धार्मिक संस्थान के कुछ अवशेष मिलते भी है,तो भी क्या 450 साल बाद किसी मस्जिद को अवैध घोषित किया जा सकता है.

14- हिंदू पक्ष के बयानों में विरोधाभास
मुस्लिम पक्ष ने सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में हिंदू पक्ष की तरफ से पेश गवाहों के बयानों पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ज़्यादातर गवाहियां कल्पना पर आधारित हैं. हाई कोर्ट के जज बी डी अग्रवाल ने इन्हीं काल्पनिक कहानियों को सैंकड़ों पन्नों में जगह दी.

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