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अयोध्या मामलाः 10 दिन में सुनवाई होगी पूरी, 50 दिन में आएगा फैसला

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने साफ कर किया कि इस मामले में जिरह पूरा करने की पहले से तय समयसीमा को 18 अक्टूबर से एक दिन भी ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता.

Updated on: 26 Sep 2019, 11:35 PM

नई दिल्ली:

अयोध्या मामले (Ayodhya Case) की सुनवाई का आज 32वां दिन था. गुरुवार को सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (Chief Justice Ranjan Gogoi) ने साफ कर किया कि इस मामले में जिरह पूरा करने की पहले से तय समयसीमा को 18 अक्टूबर से एक दिन भी ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता. पक्षकारों को तब तक अपनी जिरह पूरी करनी ही होगी.

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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अगर 18 अक्टूबर तक जिरह पूरी हो जाती है तो बचे 4 हफ्ते के अंदर फैसले को लिखना एक चमत्कार जैसा ही होगा. चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. उस दिन रविवार है. शनिवार, रविवार को सामान्यतय कोर्ट की सुनवाई नहीं होती है. इस लिहाज से 15 नवंबर तक फैसला आने की पूरी उम्मीद है. यानी फैसले के लिए अब करीब 50 दिन का ही इतंजार करना होगा. 

मुस्लिम पक्ष 27 सितंबर तक सुनवाई पूरी कर लेगा. उसका जवाब हिन्दू पक्ष को देना है. इसके बाद राजीव धवन सुन्नी वक्फ बोर्ड की दायर केस पर जिरह के लिए दो दिन का वक्त और लेंगे. फिर से हिन्दू पक्षकार उसका जवाब देंगे, लेकिन ये सब 18 अक्टूबर से पहले खत्म हो जाएगा. वैसे 18 अक्टूबर से पहले सुप्रीम कोर्ट में गांधी जयंती और दशहरा की भी छुट्टी होनी है. ऐसे में बहस के लिए अब महज 10 दिन का समय ही बचा है. शुक्रवार को भी मीनाक्षी अरोड़ा की दलील जारी रहेगी.

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ASI की रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष के सवाल, कोर्ट आश्वस्त नहीं

आज मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने जिरह की. उन्होंने ASI की खुदाई की रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष का रुख बेंच के सामने रखा. मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि ASI ने सभी पहलुओं को ठीक से नहीं देखा, सिर्फ पहले से तय धारणा के आधार पर काम किया. मीनाक्षी अरोड़ा ने ASI की रिपोर्ट को खारिज करने के लिए कई उदाहरण दिए, लेकिन कोर्ट उनकी ज्यादातर दलीलों से आश्वस्त नजर नहीं आया और कोर्ट ने उनसे कई सवाल भी पूछे.

विवादित ढांचे के नीचे ईदगाह होने की संभावना

मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि विवादित ढांचे के नीचे एक ईदगाह हो सकता है. वहां ASI की खुदाई में मिले दीवारों के अवशेष ईदगाह के हो सकते हैं. इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने टोकते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष का तो ये मानना रहा है कि मस्जिद खाली जगह पर बनाई गई, लेकिन अब आप कह रही है कि उसके नीचे ईदगाह था?. अगर ऐसा था तो ये आपकी याचिका में ये शामिल क्यों नहीं था?. मीनाक्षी अरोड़ा ने जवाब दिया कि 1961 में जब हमने केस दायर किया तब ये मुद्दा ही नहीं था. ये बात तो 1989 में सामने आई, जब हिन्दू पक्ष ने मुकदमा दायर कर दावा किया कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी. मेरी अब की जिरह रिपोर्ट पर आधारित है. मेरे कहने का मतलब है कि जब ये कहा जा रहा है कि दीवारें मंदिर की हो सकती हैं तो ये भी अनुमान लगाया जा सकता है कि ये दीवारें ईदगाह की हैं.

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"खम्भे एक विशाल इमारत का हिस्सा नहीं"

मीनाक्षी अरोड़ा ने ASI रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि नीचे जो खंभों के आधार मिले थे वह अलग-अलग समय के थे. उनकी गहराई भी अलग थी. ऐसे में उन्हें एक ही विशाल इमारत का हिस्सा नहीं कहा जा सकता है, जबकि ASI की रिपोर्ट में मस्जिद के नीचे मंदिरनुमा एक विशालकाय ढांचे की बात कही गई थी इस पर जस्टिस भूषण ने उनकी दलीलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आप आधुनिक इंजीनियरिंग के सिद्धांत 1000 साल पुरानी रचना पर नहीं लगा सकते. खंभों की गहराई में 8 इंच का अंतर कोई बड़ी बात नहीं है.

"वैष्णव मन्दिर में पशुबलि सम्भव नहीं"

मीनाक्षी अरोड़ा ने ये भी कहा कि वहां से जानवरों की हड्डियां मिली हैं, जिन पर कट के निशान हैं. वैसे तो मुस्लिम समुदाय में भी मांस भक्षण के लोग जानवरों को स्लॉटर की परम्परा रही है, लेकिन ASI ने अपनी रिपोर्ट में इसे हिन्दू समाज की बलि परम्परा से जोड़ दिया. ASI का ये निष्कर्ष सही नहीं है. बलि की परंपरा तो सिर्फ शाक्त मत के मन्दिर में होती है, वैष्णव जन के मन्दिर में तो नहीं. हिन्दू पक्ष तो इसे श्रीराम के मंदिर (वैष्णव मत के मंदिर) होने का दावा करता है. मीनाक्षी अरोड़ा ने ये भी कहा कि खुदाई में जो वस्तुएं मिली है, वो अष्टभुजाकार आकृति मिली है, जो भग्नावेश मिले हैं, उन पर कमल की आकृतियां मिली हैं, ये सब इस्लामिक सस्कृति का भी हिस्सा रही है, उसे हिन्दू पक्ष से जोड़ना ठीक नहीं होगा.