सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की 40 दिन की लगातार सुनवाई के एक माह बाद फैसला आएगा. आज अयोध्या केस में फैसला सुरक्षित होने की उम्मीद है, क्योंकि सुनवाई का आज अंतिम दिन है. आपको लग रहा है कि सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट फैसला देने में एक माह क्यों लगा रहा है. दलीलें सुन ली है तो अब फैसला भी सुना देना चाहिए, लेकिन आपको यह जान लेना चाहिए कि लंबी-लंबी बहस, दलीलों और सबूत गवाहों के चर्चे, किताबों के हवाले को समेटना इतना आसान काम नहीं है. जो दस्तावेज और दलीलें दी गईं उनकी तस्दीक भी करनी जरूरी होता है. साथ ही अदालत को अपने फैसले को कानूनी तौर पर जस्टिफाई भी करना होता है.
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जिस मामले में फैसला आना होता है, उससे मिलते-जुलते दुनिया भर की अदालतों के नजीर माने जाने वाले फैसलों के संबंधित अंश का हवाला भी देना होता है. यानी कोर्ट ऐसे मामलों में अधिक से अधिक फूलप्रूफ फैसला देने की कोशिश करता है, ताकि न्याय के बिंदु पर कहीं से कोई कोर कसर न रह जाए. संबंधित कानून की किताबों के पन्नों को भी बार-बार पलटना होता है.
जजों के पास रिसर्च स्टाफ की पूरी टीम होती है. इन सभी चीजों के अलावा जज खुद भी अपने विवेक के मुताबिक फैसले को कई तरह के तर्कों से सुसज्जित करते हैं. कई बार फैसलों में किसी ग्रंथ की उक्तियां, कविताएं, शेर-ओ-शायरी या फिर श्लोक या ऋचाएं भी होती हैं. अयोध्या मामले में 30 हजार पेज के तो मूल दस्तावेज हैं और उनके अलावा अनुवाद भी. सात बड़े-बड़े संदूक कोर्ट में मूल दस्तावेजों से भरे हैं, जिसमें जजों के नाम भी लिखे हैं.
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इन सबके अलावा सबकी दलीलें, विभिन्न ग्रंथों के हवाले और साथ ही कई तरह की बातें, तर्क और सबूत या फिर रिपोर्ट्स की तस्दीक करने और उनका सार निकालने में वक्त, मेहनत और काबिलियत तो लगती ही है. यही वजह है कि अदालतें मुकदमे की सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लेती हैं. इसके बाद अदालत सभी पक्षकारों को ये भी कहती हैं कि अब जिसे जो कहना हो लिखित बयान के जरिए बता सकते हैं. यानी फैसला सुरक्षित होने के बाद से फैसला लिखे जाने तक 'मुकदमा' इन राहों से गुजरता है.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो