अयोध्या: चश्मदीद की ज़ुबानी, विवादित ढांचा किए जाने की कहानी, पैदा करती है सिहरन
सिंह ने छह दिसंबर 1992 की घटना को याद करते हुए कहा कि हमारी परीक्षा होने वाली थी लेकिन उस समय के घटनाक्रम से परीक्षा महीने भर के लिए टल गयी थी.
नई दिल्ली:
बाबरी मस्जिद ध्वस्त किये जाने के साक्षी रहे महेन्द्र प्रताप सिंह के शरीर में उस समय के घटनाक्रम की याद करते ही सिहरन दौड़ जाती है. अयोध्या के कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने लखनऊ जाना तय कर लिया. सिंह ने छह दिसंबर 1992 की घटना को याद करते हुए कहा कि हमारी परीक्षा होने वाली थी लेकिन उस समय के घटनाक्रम से परीक्षा महीने भर के लिए टल गयी थी.
उन्होंने बताया कि शिक्षकों के पास भी कोर्स जल्दी जल्दी पूरा कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. सिंह ने बताया कि 2002 में स्नातक करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ का रूख कर लिया.
अयोध्या से हाल ही में स्नातक उत्तीर्ण हुए हिमांशु कुमार वर्मा ने बताया कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए उनके तमाम दोस्त लखनऊ, वाराणसी या प्रयागराज चले गये. खुद वर्मा भी अयोध्या से जा रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि यहां बेहतर पढ़ाई नहीं हो सकती.
राष्ट्रीय महापुरूष स्मृति समिति के प्रमुख भरत सिंह पूरेदरबार अयोध्या के पड़ोसी जिले आंबेडकरनगर से आते हैं. उन्होंने बताया कि जब वह छात्र थे, तब आंबेडकरनगर पूर्व के फैजाबाद जिले में ही आता था. उन्होंने युवावस्था में ही मंदिर आंदोलन देखा. वह स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं के विकास की दृष्टि से हो रहे विकास के हिमायती हैं लेकिन साथ ही कहते हैं कि हमें अपनी सदियों पुरानी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए.
लखनऊ में वकालत कर रहे आशीष त्रिपाठी विहिप की धर्म सभा में शामिल होने आये हैं. उनका मानना है कि मंदिर निर्माण होना चाहिए लेकिन साथ ही विकास कार्यों की गति भी तेज होनी चाहिए.
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