गहलोत-पायलट में दूरी है बरकरार, कांग्रेस की चुनौती बढ़ी
एक समझौते के बाद पायलट वापस आ गए, लेकिन राज्य में कांग्रेस की परेशानी अभी खत्म नहीं हुई है.
नई दिल्ली:
राजस्थान में सचिन पायलट द्वारा विद्रोह का बैनर उठाए जाने के बाद कांग्रेस पार्टी ने पिछले साल एक बड़ा आंतरिक संकट देखा था. हालांकि एक समझौते के बाद पायलट वापस आ गए, लेकिन राज्य में कांग्रेस की परेशानी अभी खत्म नहीं हुई है. विगत दिनों किसान आंदोलन के दौरान एक मंच पर आए गहलोत-पायलट में रस्साकशी साफ देखी गई. बीते साल संकट के दौरान ही कांग्रेस ने गोविंद सिंह दोतासरा को प्रदेश पार्टी प्रमुख नियुक्त किया था लेकिन अभी तक कमेटी की घोषणा नहीं की गई है.
कांग्रेस अपना घर बचाने में जुटी
दोतासरा ने सचिन पायलट का स्थान लिया था, जिन्होंने पिछले साल गहलोत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था. सूत्रों ने कहा कि सचिन पायलट चाहते हैं कि उनके वफादारों को पार्टी के विभिन्न पदों के साथ-साथ कैबिनेट में भी जगह दी जाए. खासकर रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह को. ये दोनों गहलोत के खिलाफ विद्रोह करने वाले 18 विधायकों में शामिल थे।. दोनों को राज्य मंत्री के पद से हटा दिया गया था. लेकिन जब पायलट की पार्टी में वापसी हुई, फिर भी कांग्रेस अपना घर बचाने में जुटी हुई है.
आंतरिक मतभेद से नहीं दूर हो रहा तनाव
राज्य के नेताओं के बीच मतभेद के कारण पार्टी ग्रामीण चुनाव हार गई. हालांकि शहरी स्थानीय चुनावों में इसका प्रदर्शन थोड़ा बेहतर रहा. 19 दिसंबर को कांग्रेस की अंतरिम प्रमुख सोनिया गांधी द्वारा बुलायी गयी बैठक में भाग लेने आए गहलोत ने पार्टी नेताओं से मुलाकात की, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार का मुद्दा अभी तक सुलझा नहीं है.
अजय माकन के लिए गंभीर है चुनौती
ग्रामीण चुनाव में हार के लिए गहलोत ने कोविड-19 को जिम्मेदार ठहराया था. जिला परिषद और पंचायत चुनावों में, परिणाम हमारी अपेक्षा के अनुरूप नहीं थे और पिछले नौ महीनों से हमारी सरकार कोविड प्रबंधन में जुटी हुई थी और हमारी प्राथमिकता लोगों के जीवन और आजीविका को बचाए रखने की थी. शहरी निकाय चुनावों में वापसी करने के बाद गहलोत के चेहरे पर खुशी लौटी. हालांकि कांग्रेस आलाकमान किसी भी गुट नजदीकी दिखाना नहीं चाहती है. सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अजय माकन सभी हितधारकों से मिल रहे हैं ताकि दोनों खेमों में से कोई भी अलग-थलग महसूस ना करे.
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