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बंगाल में ओवैसी की नजर 100 सीटों पर, दीदी के लिए खतरे की घंटी

सियासी पंडित साफ इशारा कर रहे हैं कि एआईएमआईएम के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने पर तृणमूल कांग्रेस की अल्पसंख्यकों पर पकड़ कमजोर हो सकती है.

सियासी पंडित साफ इशारा कर रहे हैं कि एआईएमआईएम के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने पर तृणमूल कांग्रेस की अल्पसंख्यकों पर पकड़ कमजोर हो सकती है.

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Nihar Saxena
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Asaduddin Owaisi

ओवैसी बंगाल में भी दीदी को चोट पहुंचा अपरोक्ष मदद करेंगे बीजेपी की.( Photo Credit : न्यूज नेशन.)

अगर धार्मिक समीकरणों की बात करें तो पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में अल्पंसख्यकों का प्रभाव बिहार से ज्यादा है. ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव में बड़े फेरबदल करने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पश्चिम बंगाल में झंडा गाड़ने का मन बना लिया है तो ममता बनर्जी सरकार की राह मुश्किल हो सकती है. सियासी पंडित साफ इशारा कर रहे हैं कि एआईएमआईएम के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने पर तृणमूल कांग्रेस की अल्पसंख्यकों पर पकड़ कमजोर हो सकती है. इसका अपरोक्ष लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा, क्योंकि इससे हिंदू वोट एकजुट हो जाएगा. ऐसे में बंगाल में अगले साल चुनाव को देखते हुए राजनीतिक पारा गरमाने लगा है.

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100 से 110 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक
पश्चिम बंगाल में लगभग 32 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. कई जिले जैसे मालदा, मुर्शिदाबाद, बीरभूम, दक्षिण 24 परगना सहित कई राज्यों में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है. राज्‍य की कुल 294 विधानसभा सीटों में से 98 विधानसभा क्षेत्रों में 30 प्रतिशत से ज्‍यादा मुस्लिम आबादी है. इसके अलावा दर्जन भर सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटों का झुकाव किसी भी पार्टी के समीकरण बना-बिगाड़ सकता है. मुर्शिदाबाद जिले में करीब 66.3 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इस क्षेत्र में अंतर्गत करीब 22 विधानसभा सीटें आती हैं. मालदा जिले में 12 विधानसभा सीटें आती हैं और यहां मुस्लिम आबादी 51.3 प्रतिशत है. उत्‍तर दिनाजपुर जिले में मुस्लिम आबादी 49.9 प्रतिशत है. इस रीजन में 9 विधानसभा सीटें आती हैं. बीरभूम में मुस्लिम आबादी 37.1 प्रतिशत है. इस क्षेत्र में 11 विधानसभा सीटें हैं. दक्षिण 24 परगना जिले में मुस्लिम आबादी 35.6 प्रतिशत है. इस क्षेत्र में 31 विधानसभा सीटें आती हैं. 

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ममता को मिलता है मुस्लिम वोट
ममता बनर्जी के चुनावों में जीत के पीछे मुस्लिमों का समर्थन माना जाता रहा है. मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर ममता को चुनावों में समर्थन करते रहे हैं. इस कारण ममता बनर्जी की नीति भी मुस्लिमों के प्रति अपेक्षाकृत सॉफ्ट रही है और यही कारण ही बीजेपी ममता बनर्जी पर तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही है, हालांकि बीजेपी के आरोप के बाद ममता बनर्जी ने अपनी नीति बदली है और अब वो हिंदुओं को भी लुभाने की कोशिश में जुट गई हैं. सियासी समझ के मुताबिक दीदी का सॉफ्ट हिंदुत्व ही ओवैसी के लिए बंगाल की राह आसान बना सकता है. ओवसी के आने से मुस्लिम वोटरों के बंटने की संभावना बढ़ जाएगी. ममता बनर्जी के हाल के हिंदू प्रेम के कारण कई मुस्लिम संगठन नाराज हैं. वे ओवैसी का दामन थाम सकते हैं. मुस्लिम वोट बंटने का सीधा फायदा बीजेपी को होगा. वैसे पहले से ही कांग्रेस व लेफ्ट ममता के मुस्लिम वोट बैंक में घात लगाए बैठे हैं.

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बंगाल में मुस्लिम मतदाता
बंगाल में 2011 में वाम मोर्चे को हराने के बाद से ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को ही अल्पसंख्यक मतों का फायदा मिला है. एआईएमआईएम के इस फैसले पर टीएमसी का कहना है कि ओवैसी का मुसलमानों पर प्रभाव हिंदी और उर्दू भाषी समुदायों तक सीमित है, जो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ छह प्रतिशत है. वैसे भी मुस्लिम वोटर्स चुनावी रण में प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ तृणमूल के लिए हमेशा फायदेमंद रहे है. इनमें से अधिकांश ने पार्टी के पक्ष में मतदान किया है, जो भगवा दल के विरोध में हमेशा उनके लिए विश्वसनीय रहे हैं. यह अलग बात है कि ओवैसी की हुंकार दीदी का खेल बिगाड़ सकती है. 

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