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नौकरशाही, पुलिस व न्यायपालिका में सुधार की ज़रूरत: अरविन्द पनगढ़िया

अरविन्द पनगढ़िया ने नौकरशाही, पुलिस और न्यायिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उसमें सुधार की ज़रुरत पर बल दिया है।

Updated on: 11 Aug 2017, 05:31 PM

highlights

  • नौकरशाही, पुलिस और न्यायिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उसमें सुधार की ज़रुरत पर बल दिया है
  • पनगढ़िया ने कहा कि 8-9 प्रतिशत आर्थकि वृद्धि के लिए ये सामान्य सुधार भले ही बहुत ज़रूरी न हो लेकिन लोगों की भलाई के लिए ये सुधार बहुत ज़रूरी है

 

नई दिल्ली:

नीति आयोग के निवर्तमान उपाध्याक्ष अरविन्द पनगढ़िया ने नौकरशाही, पुलिस और न्यायिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उसमें सुधार की ज़रुरत पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लोगों की विश्वसनीयता बनाए रखने और टिकाउ वृद्धि के लिए ज़रुरी है कि विरासत में मिली पंरपरावादी समस्याओं को खत्म किया जाए।

आगे पनगढ़िया ने कहा कि 8-9 प्रतिशत आर्थकि वृद्धि के लिए ये सामान्य सुधार भले ही बहुत ज़रूरी न हो लेकिन लोगों की भलाई के लिए ये सुधार बहुत ज़रूरी है।

उन्होंने कहा, 'समूची सिविल सेवा, न्यायपालिका, पुलिस .. . ये सब पुराने मुद्दे हैं जिनका समाधान किए जाने की जरूरत है। 8-9 प्रतिशत वृद्धि हासिल करने के लिए इन्हें सुलझाने की जरूरत नहीं बल्कि दीर्घकालिक स्तर पर लोगों की भलाई के लिए हमें नौकरशाही, पुलिस व न्यायपालिका में सुधार की जरूरत है।'

बता दें कि पनगढ़िया ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है। उनसे जब ये पूछा गया कि क्या उनके हटने से सुधारों की प्रक्रिया प्रभावित होगी तो पनगढ़िया ने कहा, 'एक व्यक्ति या हस्ती मायने जरूर रखती है लेकिन वह, जो बहुत ही शीर्ष पद पर हो। प्रधानमंत्री कौन है इससे अंतत: नीति की दशा व दिशा निर्धारित होती है।'

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पनगढ़िया 31 अगस्त को नीति आयोग से हटेंगे और प्रख्यात अर्थशास्त्री राजीव कुमार उनकी जगह नए उपाध्यक्ष होंगे।

उन्होंने कहा कि भारत ने पूंजी व कुशल श्रमोन्मुखी उद्योगों में बहुत अच्छा काम किया है लेकिन दुर्भाग्य से ये उद्योग बड़े रोजगार सृजनकर्ता नहीं हैं। यह तो वस्त्र उद्योग है। कुछ हद तक फुटवियर उद्योग है और इलेक्ट्रोनिक्स जो कि बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करता है। उन्होंने रोजगार प्रधान इन उद्योगों को बढावा दिए जाने पर बल दिया।

पनगढि़या ने बिजली क्षेत्र में सुधार को भी जरूरी बताया। उन्होंने यह भी कहा कि 2-3 साल में जीएसटी की दरों पर दोबारा गौर करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा, हमें दो-तीन साल में इसका फिर से आकलन करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या ये दरें, राजस्व निरपेक्ष दरें, हो सकता है जो दरों में सीमित की जा सकती हैं।

इस समय जीएसटी चार स्तरीय है जिसमें 5, 12, 18, व 28 प्रतिशत की दरें हैं।

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