अरुण जेटली ने JK से अनुच्छेद 370 हटाने पर पीएम मोदी और अमित शाह की जमकर तारीफ की थी
अरुण जेटली ने कहा कि अनुच्छेद 370 पर फैसले के लिए ऐसे राजनीतिक साहस की ही जरूरत थी
highlights
- उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्पष्ट दृष्टिकोण से इतिहास रचा है.
- जनता का समर्थन देख कई विपक्षी नेता भी आए सरकार के साथ.
- कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उसे पतन की ओर करार दिया था.
नई दिल्ली:
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का शनिवार 24 अगस्त को एम्स में निधन हो गया. बीमार होते हुए भी वे हमेशा ब्लॉग लिखते थे. अपने ब्लॉग के माध्यम से विपक्षियों पर हमेशा निशाना साधते रहे, तो सरकार की विभिन्न योजनाओं से आम लोगों को जागरूक करते रहे. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर भी मोदी सरकार की जमकर तारीफ की थी. उन्होंने इस कदम को ऐतिहासिक बताया था. उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्पष्ट दृष्टिकोण से इतिहास रचा है. अनुच्छेद 370 पर फैसले के लिए ऐसे राजनीतिक साहस की ही जरूरत थी. साथ ही गृह मंत्री अमित शाह की भी प्रशंसा की.
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कश्मीर पर जनता का भी समर्थन
उन्होंने कहा कि सरकार की नई कश्मीर नीति पर आम जनता की ओर से जो जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है. उसे देखते हुए कई विपक्षी दलों ने आम जनता के सुर में सुर मिलाना ही उचित समझा है. यही नहीं, राज्यसभा में इस निर्णय का दो तिहाई बहुमत से पारित होना निश्चित तौर पर कल्पना से परे है. मैंने इस निर्णय के असर के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने के अनगिनत विफल प्रयासों के इतिहास का विश्लेषण किया. उन्होंने कहा कि विशेष दर्जा प्रदान करने की ऐतिहासिक भूल से देश को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी. आज इतिहास को नए सिरे से लिखा जा रहा है. उसने ये फैसला सुनाया है कि कश्मीर के बारे में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की दृष्टि सही थी और पंडित नेहरू जी के सपनों का समाधान विफल साबित हुआ है.
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कांग्रेस पतन की ओर अग्रसर
उन्होंने कहा कि यह एक पछतावा है कि कांग्रेस पार्टी की विरासत ने पहले तो समस्या का सृजन किया और उसे बढ़ाया, अब वह कारण ढूंढने में विफल है. यह सरकार के इस फैसले के लिए लागू होता है. कांग्रेस के लोग व्यापक तौर पर विधेयक का समर्थन करते हैं. नया भारत बदला हुआ भारत है. केवल कांग्रेस इसे महसूस नहीं करती है. कांग्रेस नेतृत्व पतन की ओर अग्रसर है. उन्होंने कहा कि 1989-90 तक, हालात काबू से बाहर हो गए तथा अलगाववाद के साथ आतंकवाद की भावना जोर पकड़ने लगी. कश्मीरी पंडित को इस तरह के अत्याचार बर्दाश्त करने पड़े, जिस तरह के अत्याचार केवल नाजियों ने ही किये थे. कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर खदेड़ दिया गया.
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