Article 370 (1): अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक विपक्ष के मंसूबे ध्वस्त

यह भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया, जो कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा 14 मई 1954 को जारी किया गया था. यह अनुच्छेद 370 के खण्ड (1) में उल्लेखित है.

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Nihar Saxena
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Article 370 (1): अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक विपक्ष के मंसूबे ध्वस्त

राज्य़सभा में बोलते गृह मंत्री अमित शाह.

राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का संकल्प पेश किया है. इसके साथ ही अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का संकल्प भी पेश किया है. उन्होंने कहा कि जिस दिन से राष्ट्रपति द्वारा इस गैजेट नोटिफिकेशन को स्वीकार किया जाएगा, उस दिन से संविधान के अनुच्छेद 370 (1) के अलावा और कोई भी खंड लागू नहीं होंगे. यानी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की सिफारिश कर दी है. 370 (1) वहां के नागिरकों को कुछ खास अधिकार देता है, जिसे राष्ट्रपति के अनुमोदन से ही समाप्त किया जा सकता है.

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इन अनुच्छेद को हटाने का विरोध करने वालों का सोचना है कि इससे बाकी भारत के लोगों को भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार मिल जाएगा. साथ ही नौकरी और अन्य सरकारी मदद के भी वे हकदार हो जाएंगे. इससे उनकी जनसंख्या में बदलाव हो जाएगा. वहीं 35 A की बात करें तो भारतीय संविधान का 35 ए अनुच्छेद एक अनुच्छेद है जो जम्मू और कश्मीर राज्य विधानमण्डल को 'स्थायी निवासी' परिभाषित करने तथा उन नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता है. यह भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया, जो कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा 14 मई 1954 को जारी किया गया था. यह अनुच्छेद 370 के खण्ड (1) में उल्लेखित है.

सुप्रीम कोर्ट में 2014 से इस पर केस चल रहा है. मामले में दाखिल याचिका में तर्क दिया गया था कि ये भारत की भावना के खिलाफ और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले प्रावधान हैं, जबकि कश्मीर भी भारत का अभिन्न अंग है. ये अनुच्छेद एक देश के नागरिकों के बीच ही भेद पैदा करते हैं. भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 एक अनुच्छेद है. इस धारा के 3 खंड हैं. इसके तीसरे खंड में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के परामर्श से धारा 370 कभी भी खत्म कर सकता है. हालांकि अब तो संविधान सभा रही नहीं, ऐसे में राष्ट्रपति को किसी से परामर्श लेने की जरूरत नहीं.

यहां यह समझने वाली बात यह है कि धारा 370 भारत की संसद लेकर आई है और वहीं इसे हटा सकती है. इस धारा को कोई जम्मू और कश्मीर की विधानसभा या वहां का राजा नहीं लेकर आया, जो हटा नहीं सकते हैं. यह धारा इसलिए लाई गई थी, क्योंकि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पीओके) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी. ऐसे में वहां भारत के संपूर्ण संविधान को लागू करना तत्कालीन प्रधानमंत्री शायद प.जवाहर लाल नेहरू ने उचित नहीं समझा था.
जम्मू कश्मीर के पास क्या विशेष अधिकार हैं
- धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है.
- किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती है।
- इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है.
- 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
- भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते.
- भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.

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