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गिरफ्तारी हमेशा जरूरी ही नहीं होती, SC ने की CRPC की व्याख्या

पुलिस को गिरफ्तारी का सहारा सिर्फ इसलिए नहीं लेना चाहिए क्योंकि कानून के तहत ऐसा करने की उन्हें अनुमति है.

Updated on: 22 Aug 2021, 01:49 PM

highlights

  • सुप्रीम कोर्ट ने बताया किसी को कब किया जा सकता गिरफ्तार
  • सीआरपीसी की धारा 170 की व्याख्या कर समझाया औचित्य
  • गिरफ्तारी से प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को अपूर्णीय क्षति

नई दिल्ली:

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की एक टिप्पणी से पुलिस तंत्र एक बार फिर कठघरे में है. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की तरफ से नियमित हो रही गिरफ्तारी (Arrest) को लेकर चिंता व्यक्त की है. सर्वोच्च अदालत ने निज स्वतंत्रता को संवैधानिक जनादेश का महत्वपूर्ण पहलू मानते हुए कहा है कि जब आरोपी जांच में सहयोग कर रहा हो और यह मानने का कोई आधार नहीं है कि वह फरार हो जाएगा या जांच को प्रभावित करेगा, तो गिरफ्तारी को रूटीन तरीका नहीं बनाना चाहिए. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि गिरफ्तारी से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को अपूर्णीय क्षति होती है. ऐसे में पुलिस को गिरफ्तारी का सहारा सिर्फ इसलिए नहीं लेना चाहिए क्योंकि कानून के तहत ऐसा करने की उन्हें अनुमति है.

1994 में सुप्रीम कोर्ट ने दी थी व्यवस्था
गौरतलब है कि 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस कार्यप्रणाली और पर तीखी टिप्पणी की थी. ऐसे में उन्हीं की अवहेलना पर अफसोस जताते हुए बेंच ने कहा कि दिशा-निर्देशों के बावजूद नियमित गिरफ्तारियां की जा रही हैं और निचली अदालतें भी इस तरह के तरीके पर जोर दे रही हैं. बेंच ने कहा कि जांच के दौरान किसी आरोपी को गिरफ्तार तब करना चाहिए जब हिरासत में जांच जरूरी हो या अपराध बेहद जघन्य हो. यही नहीं, शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां गवाहों या आरोपी को प्रभावित करने की संभावना हो, तो वहां भी गिरफ्तारी की जानी चाहिए. पुलिसिया कार्यप्रणाली को फिर नसीहत देते हुए बेंच ने कहा कि गिरफ्तार करने की शक्ति के अस्तित्व और इसके प्रयोग के औचित्य के बीच अंतर किया जाना चाहिए.

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सीआरपीसी की धारा 170 की भी की व्याख्या
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 170 की व्याख्या की. इसके लिए कोर्ट ने अलग-अलग हाईकोर्ट के आदेशों का भी विस्तार से उल्लेख किया. इन आदेशों में कहा गया था कि क्रिमिनल कोर्ट चार्जशीट को सिर्फ इस आधार पर स्वीकार करने से इंकार नहीं कर सकती हैं क्योंकि आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है या उसे अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया है. प्राप्त जानकारी के मुताबिक सर्वोच्च अदालत ने यह आदेश एक याचिका पर दिया जिसमें एक व्यक्ति ने अपने खिलाफ अरेस्ट मेमो जारी होने के बाद अग्रिम जमानत की मांग की थी. इस पर उत्तर प्रदेश की एक निचली अदालत ने कहा था कि जब तक आरोपी हिरासत में नहीं लिया जाता, सीआरपीसी की धारा 170 के मद्देनजर आरोपपत्र को रिकॉर्ड में नहीं लिया जाएगा.