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पुरातत्वविदों को ओडिशा के बालासोर में ताम्रपाषाण युग के मिले निशान

ओडिशा में पुरातत्वविदों ने बालासोर जिले की रेमुना तहसील के दुर्गादेवी में एक किलेदार ऐतिहासिक स्थल की खोज की है. वहाँ पाए गए सामानों के निशान ताम्रपाषाण काल ​​के सांस्कृतिक भंडार हैं.

Updated on: 03 Jul 2021, 10:02 PM

highlights

  • ओडिशा के खाते में एक और ऐतिहासिक शहर 
  • प्राचीन शहर दुर्गादेवी  बालासोर में था स्थित 
  • 5 किमी भूमिगत मिट्टी के नीचे होने का मिला साक्ष्य 

भुवनेश्वर:

ओडिशा में पुरातत्वविदों ने बालासोर जिले की रेमुना तहसील के दुर्गादेवी में एक किलेदार ऐतिहासिक स्थल की खोज की है. वहाँ पाए गए सामानों के निशान ताम्रपाषाण काल ​​के सांस्कृतिक भंडार हैं - कांस्य, लौह और शहरी संस्कृति.उत्खनन ने पुरातत्वविदों को 2000 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व तक इस क्षेत्र के सांस्कृतिक विकास का पता लगाने में मदद की है. इस साल फरवरी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से अनुमति मिलने के बाद ओडिशा समुद्री और दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन संस्थान (ओआईएमएसईएएस) ने मार्च से 5 मई तक खुदाई का पहला चरण किया.मयूरभंज जिले की सीमा से लगे बालासोर शहर से 20 किमी की दूरी पर स्थित, दुर्गादेवी साइट में दक्षिण में सोना नदी और इसके उत्तर-पूर्वी हिस्से में बुराहबलंग के बीच परिधि में लगभग 4.9 किमी की एक गोलाकार मिट्टी की किलेबंदी है.

OIMSEAS पुरातत्वविदों का उद्देश्य भारत के पूर्वी तट में शहरीकरण के साथ-साथ उत्तर में गंगा घाटी और मध्य ओडिशा में महानदी घाटी को जोड़ने के साथ-साथ समुद्री गतिविधियों के विकास और विकास को सहसंबंधित करना था. उनका ध्यान विशेष रूप से उत्तरी ओडिशा में प्रारंभिक सांस्कृतिक विकास पर था. उन्होंने 2 एकड़ ऊंचे भूमि क्षेत्र में क्षैतिज उत्खनन किया जहां लगभग 4 से 5 मीटर की सांस्कृतिक जमा देखी गई थी. कार्य के प्रथम चरण में 2.6 मीटर तक की चुनी हुई खाइयों में वैज्ञानिक पुरातात्विक खुदाई की गई.साइट पर खोजे गए तीन सांस्कृतिक चरण हैं - ताम्रपाषाण (2000 से 1000 ईसा पूर्व), लौह युग (1000 से 400 ईसा पूर्व) और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (400 से 200 ईसा पूर्व). ये चरण 2000 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व की समय अवधि को कवर करते हैं, जिसका अर्थ है कि अब से 4000 से 2000 वर्ष.

"खुदाई का परिणाम शानदार है क्योंकि पहली बार हमने एक साइट में तीन सांस्कृतिक चरणों के निशान खोजे हैं. उत्खनन के दौरान हमें ताम्रपाषाण-कांस्य, लौह और शहरी संस्कृति के अवशेष मिले,” पुरातत्वविद् और OIMSEAS सचिव डॉ सुनील कुमार पटनायक ने कहा. "हमने कभी भी ऐसी साइट की खोज नहीं की है जिसमें क्षेत्रों के सामाजिक विकास को दर्शाने वाले तीन चरणों के अवशेष हों. यहाँ एक साइट में हमें लगभग 2000 वर्षों का इतिहास मिला है.

क्यों कहा जा रहा है ताम्रपाषाण काल

एक वृत्ताकार झोपड़ी को आधार बना कर ताम्रपाषाण काल ​​की प्रमुख खोज की गयी है, साथ ही मिट्टी के बर्तनों के कुछ अवशेष जैसे लाल चित्रित मिट्टी के बर्तनों के अलावा  काले चिकने बर्तन, लाल चिकने बर्तन और तांबे की वस्तुएं. गोलाकार झोपड़ी के फर्श पर गेंगुटी के साथ लाल मिट्टी मिली हुई थी.भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 2016 में किए गए सुबाराई उत्खनन के दौरान पुरातत्वविदों को ताम्रपाषाण काल ​​की एक समान गोलाकार झोपड़ी मिली थी.

”डॉ पटनायक ने बताया कि "ताल्कोलिथिक चरण से पहले, क्षेत्र के लोग खानाबदोश जीवन शैली का पालन कर रहे थे. ताम्रपाषाण काल ​​उन क्षेत्रों में बसावट की शुरुआत को दर्शाता है जहां हमें एक गोलाकार झोपड़ी मिली. उन्होंने कांस्य का उपयोग भी शुरू किया और इस चरण के दौरान कृषि अभ्यास, पशुपालन और मछली पकड़ना शुरू किया.