भूख हड़ताल पर बैठे अन्ना हजारे को अस्पताल में भर्ती कराया गया, देवेंद्र फडणवीस रालेगण पहुंचे
अन्ना पिछले 7 दिनों से अपने गांव रालेगन सिद्दी में केंद्र सरकार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं. उनकी तबियत लगातार खराब हो रही थी.
मुंबई:
लोकपाल और लोकाकायुक्त की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे अन्ना हजारे को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. अन्ना पिछले 7 दिनों से अपने गांव रालेगन सिद्दी में केंद्र सरकार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं. 81 वर्षीय हजारे ने शहीद दिवस (30 जनवरी) के दिन अपने गांव रालेगण-सिद्धि में अनशन शुरू किया था. अनशन पर बैठे अन्ना हजारे की सेहत लगातार बिगड़ रही है. पिछले 7 दिनों में अन्ना हजारे का 5 किलोग्राम वजन कम हो गया है और उनकी स्थिति गंभीर है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह और महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री गिरीश महाजन रालेगण सिद्धि में अन्ना से मुलाकात की.
सोमवार को उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मेरा इस्तेमाल किया. हजारे ने कहा, 'सभी जानते हैं कि लोकपाल पर मेरे आंदोलन का इस्तेमाल बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने किया. मेरे भीतर अब उनके लिए कोई सम्मान नहीं है.'
इससे पहले उन्होंने कहा था कि अगर अनशन के दौरान उन्हें कुछ होता है तो इसके लिए लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिम्मेदार ठहराएंगे. उन्होंने बीते रविवार को कहा था कि वे राष्ट्रपति को अपना 'पद्म भूषण' पुरस्कार लौटा दूंगा.
'जन आंदोलन सत्याग्रह' के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे अन्ना की प्रमुख मांगें हैं- केंद्र में लोकपाल, प्रत्येक राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति और किसानों का मुद्दा. भूख हड़ताल शुरू करने से 3 दिन पहले ही अन्ना ने राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति करने की मांग करते हुए महाराष्ट्र सरकार को अल्टीमेटम दिया था और ऐसा न करने पर भूख हड़ताल शुरू करने की बात कही थी.
अनशन शुरू करते हुए हजारे ने दावा किया था कि बीते 5 वर्षों में उन्होंने लोकपाल प्राधिकरण को लागू करने के लिए करीब 35 पत्र प्रधानमंत्री को लिखे लेकिन उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया. इस मुख्य मांग के अलावा हजारे ने किसानों के मुद्दे को भी उठाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिसके कारण देश भर में आत्महत्याओं की समाप्त न होने वाली घटनाएं जारी हैं.
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उन्होंने कहा था, 'लोकपाल के जरिये, अगर लोग प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई सबूत देते हैं तो उनकी जांच भी की जा सकती है. इसी तरह लोकायुक्त में मुख्यमंत्री और सभी मंत्रियों की जांच की जा सकती है अगर कोई उनके खिलाफ सबूत देता है. इसलिए वे इसे नहीं चाहते हैं. कोई पार्टी इसे नहीं चाहती है. लोकपाल को संसद में 2013 में पारित कर दिया गया था लेकिन सरकार ने अभी तक इसकी नियुक्ति नहीं की है.'
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