सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई प्राथमिकी के खिलाफ दायर देशमुख की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई प्राथमिकी के खिलाफ दायर देशमुख की याचिका खारिज की
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मुंबई के पूर्व पुलिस प्रमुख द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी।देशमुख का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने तर्क दिया कि सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत राज्य सरकार की मंजूरी की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बंबई हाईकोर्ट के आदेश ने केवल सीबीआई को मामले की प्रारंभिक जांच (पीई) करने का निर्देश दिया था, और फिर जांच एजेंसी को इसके परिणाम के आधार पर कानून के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, कानून के अनुसार का मतलब है कि सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने से पहले राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होगी।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और एम. आर. शाह की पीठ ने देसाई से पूछा कि यदि गृह मंत्री के खिलाफ धारा 17 (ए) के तहत जांच शुरू की गई है, तो यह उद्देश्य को पीछे कर देता है, क्योंकि राज्यमंत्री पर मुकदमा चलाने की अनुमति कभी नहीं देगा।
शीर्ष अदालत 22 जुलाई को बंबई हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली पूर्व मंत्री की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीबीआई की प्राथमिकी को रद्द करने की देशमुख की याचिका खारिज कर दी गई थी।
पीठ ने सवाल किया कि अगर अदालत ने जांच का निर्देश दिया है तो क्या धारा 17ए की मंजूरी की आवश्यकता होगी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि सीबीआई जांच के लिए दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6ए के तहत राज्य की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है, जब अदालत ने प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है।
उन्होंने कहा, क्यों पहली जगह में जांच का आदेश दिया गया है? क्योंकि राज्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सीबीआई को एक पीई का आदेश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरोपियों के अधिकारों की अधिकतम सीमा तक रक्षा की जा सके।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने देसाई की दलीलों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अदालत द्वारा आदेशित जांच की स्थिति में धारा 17ए लागू नहीं होती है।
शीर्ष अदालत ने इस मामले में करीब दो घंटे तक दलीलें सुनीं। सुनवाई का समापन करते हुए पीठ ने देसाई से कहा कि वह याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं है।
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