अमित शाह ने श्रीनगर में रामानुजाचार्य की स्टैच्यू ऑफ पीस का अनावरण किया
अमित शाह ने श्रीनगर में रामानुजाचार्य की स्टैच्यू ऑफ पीस का अनावरण किया
बेंगलुरु:
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में स्थापित श्री रामानुजाचार्य की स्टैच्यू ऑफ पीस का वर्चुअली अनावरण किया।उन्होंने श्रीनगर में एक यात्री भवन का भी उद्घाटन किया, जिसे बेंगलुरु दक्षिण के सांसद तेजस्वी सूर्य के समर्थन से पुनर्निर्मित किया गया है।
गुरुवार को शाह ने स्टैच्यू ऑफ पीस यानी शांति प्रतिमा का अनावरण किया और यात्रियों के लिए पुनर्निर्मित यात्री भवन को औपचारिक रूप से खोल दिया। मठ ने परिसर में श्री रामानुजाचार्य की शांति की प्रतीक 4 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की है, जो जम्मू और कश्मीर के साथ उनके विशेष संबंध का प्रतीक है।
सूर्या ने श्रीनगर में तीर्थयात्रियों के लिए यात्री भवन के पुनर्निर्माण में योगदान दिया है। यात्री भवन जीर्ण-शीर्ण हालत में था और लगभग एक शेड में तब्दील हो गया था, जिसमें किसी भी मेहमान को ठहराने के लिए कोई उचित बुनियादी ढांचा नहीं था।
इस अवसर पर सूर्या ने कहा, आज एक सभ्यता के रूप में भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।
उन्होंने कहा, कश्मीर हमारी सभ्यता और परंपराओं का ताज है। भारत के दक्षिणी भाग से एक बेंगलुरु के नागरिक होने के तौर पर, मैं हमेशा से कश्मीर में सभ्यता के मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान देना चाहता हूं।
उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद ही हमें कश्मीर में सनातन धर्म की बेहतरी में योगदान करने का यह अवसर मिला है।
उन्होंने आगे कहा, पुनर्निर्मित यात्री भवन देश भर से कश्मीर जाने वाले तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या को समायोजित कर सकता है। मैं रामानुजाचार्य की शांति की प्रतिमा का अनावरण करने और यात्री भवन का उद्घाटन करने के लिए गृह मंत्री का आभारी हूं।
रामानुजाचार्य ने 11वीं शताब्दी में ब्रह्म सूत्र पर एक ग्रंथ, बोधायन वृत्ति नामक एक महत्वपूर्ण पांडुलिपि प्राप्त करने के लिए कश्मीर का दौरा किया था। बोधायन वृत्ति को ब्रह्म सूत्रों की सबसे आधिकारिक व्याख्या होने की प्रतिष्ठा प्राप्त थी।
अपने संबोधन में गृह मंत्री शाह ने कहा, आज कश्मीर में संगमरमर से बनी स्वामी रामानुजाचार्य की शांति प्रतिमा का अनावरण करके मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। भारत में हर युग में, जब भी समाज को सुधारों की जरूरत पड़ी, किसी न किसी महापुरुष ने आकर सच्चा रास्ता दिखाने का काम किया है और रामानुजाचाय का जन्म भी ऐसे समय पर हुआ, जब देश को एक महापुरूष की जरूरत थी।
शाह ने कहा, जब सामाजिक एकता खंडित हो रही थी, अनेक प्रकार की कुरीतियां समाज को ग्रसित कर रहीं थी, तब विधाता ने रामानुजाचार्य को एक महापुरुष के रूप में भारत में भेजकर वैष्णव मानवधर्म को उसके मूल के साथ जोड़ने का एक महान कार्य उनके हाथों से कराया।
अमित शाह ने कहा, एक प्रकार से रामानुजाचार्य का जीवन और कर्मस्थल ज्यादातर दक्षिण भारत में ही रहा, लेकिन उनकी शिक्षा और प्रेम का प्रसार आज पूरे देश में दिखाई दे रहा है। देशभर में अनेक मत, संप्रदाय रामानुजाचार्य और उनके शिष्य रामानंद के मूल संदेश में से आगे बढ़े हैं। आज इसी का परिणाम है कि पूरे उत्तर में भारत माता की मुकुटमणि कश्मीर में उनकी इतनी बड़ी शांति प्रतिमा का प्रतिस्थापन किया गया है। ये प्रतिमा ना केवल कश्मीर बल्कि पूरे भारत में शांति का संदेश देगी। ये प्रतिमा चार फुट ऊंची और शुद्ध सफेद मकराना संगमरमर से बनी है और लगभग 600 किलो वजन की है। कर्नाटक के मांड्या जिले में स्थित यदुगिरि का यतिराज मठ मेलकोट का एकमात्र मूल मठ है जो रामानुजाचार्य जी के समय से मौजूद है।
समारोह की अध्यक्षता जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, यदुगिरी यतिराजा मठ के वर्तमान और 41वें पुजारी, श्री श्री यदुगिरी यतिराजा नारायण रामानुज जीयर स्वामीजी और कर्नाटक सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. अश्वथ नारायण ने की।
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