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पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख कहा, सुप्रीम कोर्ट-हाई कोर्ट की नियुक्तियों में वंशवाद-जातिवाद हावी

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने अपनी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायपालिका की गरिमा को फिर से स्थापित करने का अनुरोध किया है.

Updated on: 03 Jul 2019, 11:50 AM

highlights

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडे ने पीएम मोदी को हिंदी में पत्र लिखा.
  • नियुक्ति प्रक्रिया में जातिवाद औऱ वंशवाद हावी रहने का गंभीर आरोप लगाया.
  • कहा पीएम न्यायपालिका की गरिमा की बहाली के लिए कड़े कदम उठाएं.

नई दिल्ली.:

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायपालिका में व्याप्त विसंगतियों से अवगत कराया है. उन्होंने कोलेजियम व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में परिवारवाद और जातिवाद का बोलबाला है. जस्टिस पांडे ने लिखा है कि तीन स्‍तंभों में से सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण न्‍यायपालिका वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्‍त है. पीएम नरेंद्र मोदी को उन्होंने हिंदी में पत्र लिखा है. वह भी अपनी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले.

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न्यायपालिका में नियुक्ति का कोई मापदंड नहीं
एक जुलाई को भेजे पत्र में जस्टिस रंगनाथ पांडे लिखा है कि राजनीतिक कार्यकर्ता के काम का मूल्यांकन चुनाव में जनता करती है, प्रशासनिक सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षा पास करनी पड़ती है. यहां तक कि अधीनस्थ न्यायालय में न्यायाधीशों को नियुक्ति के लिए परीक्षा पास कर योग्यता साबित करनी पड़ती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में नियुक्ति का कोई मापदंड नहीं है. यहां प्रचलित कसौटी है तो परिवारवाद और जातिवाद. यहां न्‍यायाधीशों के परिवार का सदस्‍य होना ही अगला न्‍यायाधीश होना सुनिश्चित करता है.

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न्यायधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान तक नहीं
जस्टिस पांडेय ने लिखा है कि 34 वर्ष के सेवाकाल में उन्हें बड़ी संख्या में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को देखने का अवसर मिला है, जिनमें कई न्यायाधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान तक नहीं था. कई अधिवक्ताओं के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं है. कोलेजियम सदस्यों का पसंदीदा होने के आधार पर न्यायाधीश नियुक्त कर दिए जाते हैं. यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. अयोग्य न्यायाधीश होने के कारण किस प्रकार निष्पक्ष न्यायिक कार्य का निष्पादन होता होगा, यह स्वयं में विचारणीय प्रश्न है. कोलेजियम पर गंभीर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा, 'भावी न्यायाधीशों का नाम नियुक्ति प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ही सार्वजनिक किए जाने की परंपरा रही है. अर्थात कौन किस आधार पर चयनित हुआ है इसका निश्चित मापदंड ज्ञात नहीं है. साथ ही प्रक्रिया को गुप्त रखने की परंपरा पारदर्शिता के सिद्धांत को झूठा सिद्ध करने जैसी है.'

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न्यायपालिका की गरिमा फिर से स्थापित करने की अपील
जस्टिस पांडेय ने प्रधानमंत्री से कहा है, 'जब आपकी सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग स्थापित करने का प्रयास किया था तब पूरे देश को न्यायपालिका में पारदर्शिता की आशा जगी थी, परंतु दुर्भाग्यवश माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था. अत: आपसे अनुरोध करता हूं कि उपरोक्त विषय पर विचार करते हुए आवश्यकतानुसार न्यायसंगत और कठोर निर्णय लेकर न्यायपालिका की गरिमा पुन:स्थापित करने का प्रयास करेंगे. जिससे किसी दिन हम यह सुनकर संतुष्ट हो सकें कि एक साधारण पृष्ठभूमि से आया हुआ व्यक्ति अपनी योग्यता, परिश्रम और निष्ठा के कारण भारत का प्रधान न्यायाधीश बन पाया.' जस्टिस पांडेय ने पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव 2019 में पूर्ण बहुमत प्राप्‍त करने पर बधाई भी दी है. साथ ही कहा है कि पीएम ने वंशवाद की राजनीति को खत्‍म करने का महत्‍वपूर्ण काम किया है.