Advertisment

1990 के वक्त कश्मीर में छोड़ आये सारी जायदाद, ला सके तो सिर्फ उर्दू में लिखी श्रीमद भगवत गीता

1990 के वक्त कश्मीर में छोड़ आये सारी जायदाद, ला सके तो सिर्फ उर्दू में लिखी श्रीमद भगवत गीता

author-image
IANS
New Update
All the

(source : IANS)( Photo Credit : (source : IANS))

Advertisment

द कश्मीर फाइल्स फिल्म के बाद कश्मीरी पंडितों का मसला काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। गाजियाबाद में रह रहे एक कश्मीरी पंडित का उस दौरान सब कुछ छूट गया, लेकिन कुछ नहीं छूटा तो वह थी उर्दू में लिखी श्रीमद भगवत गीता। करीब 70 वर्षीय महाराज कृष्ण कौल की मानें तो उनकी रूह इस गीता में बसती है।

1990 में हुए अत्याचार के बाद वह और उनके परिवार के छह सदस्यों के अलावा कई अन्य कश्मीरी पंडित अपना सबकुछ छोड़ भागने पर मजबूर हुए। अभी फिलहाल वह गाजियाबाद जिले के राजेन्द्र नगर में रह रहे हैं। महाराज कृष्ण कौल उस वक्त को याद कर काफी भावुक हो जाते हैं और बताते हैं कि किस तरह उनकी जमीन जायदाद पीछे रह गई और वह अपने साथ कुछ लाने में कामयाब हो सके तो वह थी उर्दू में लिखी श्रीमद भगवत गीता।

इस बात का भी वह जिक्र करते हैं कि उस दौरान एक ट्रक में 10 -10 परिवार किस तरह से अपनी जान बचाकर भागे और उन हालातों से बाहर निकले। कृष्ण कौल को यह गीता उनके मामा ने 1966 में दी थी, उस वक्त उनकी उम्र करीब 10 वर्ष रही होगी, उन्होंने तभी से गीता पढ़ना शुरू कर दिया।

उनको गीता पढ़ने की आदत ऐसी लगी कि वह सुबह शाम उसे पढ़ने लगे। महाराज कृष्ण कॉल ने बताया कि, श्रीनगर में उनकी शुरूआती पढ़ाई हुई और कश्मीर यूनिवर्सिटी से उनकी कॉलेज की पढ़ाई हुई। उन्हें अच्छी खासी उर्दू भी आती है।

बोले, जिस वक्त कश्मीर में डर का माहौल बन गया था, उस दौरान मैं नौकरी कर रहा था।

मेरी इस गीता में जान बसती है, मैं इसके बिना नहीं रह सकता। जहां यह होगी वहीं मैं होउंगा। इसलिए मैं सिर्फ इसे लेकर ही वहां से निकलने में कामयाब हुआ। यह लाहौर में ख्वाजा दिल मोहम्मद सहाब द्वारा लिखी गई थी। इस गीता में जितने साफ उच्चारण दिए हैं उतना हिंदी को पढ़कर संतुष्टि नहीं मिलती।

उन्होंने बताया कि, पलायन के वक्त सब कुछ मेरा पीछे छूट गया, तीन कोठियां, बाग ,चावल के खेत, सोना -जेवर आदि। मैंने उस वक्त सिर्फ उर्दू में लिखी गीता को ही साथ ले जाना उचित समझा, क्योंकि उसके बिना मैं रह नहीं सकता था।

महाराज कृष्ण कौल जैसे और न जाने कितने लोग हैं जो उस दौरान अपना घर छोड़कर भागे।

गृह मंत्रालय के मुताबिक, जम्मू कश्मीर सरकार का डेटा कहता है कि 44684 कश्मीरी विस्थापित परिवार राहत और पुनर्वास आयुक्त (विस्थापित) जम्मू के कार्यालय में पंजीकृत हैं।

वहीं, वापस विस्थापित किए गए लोगों की जानकारी दें तो कश्मीरी विस्थापित परिवारों के पुनर्वास के उद्देश्य से जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने 5 अगस्त 2019 से 1697 ऐसे व्यक्तियों को नियुक्ति प्रदान की है और इस संबंध में अतिरिक्त 1140 व्यक्तियों का चयन किया गया है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Source : IANS

Advertisment
Advertisment
Advertisment