मुख्तार से शुरू हुए झगड़े में आखिरकार नप गए शिवपाल
पार्टी और सरकार में नियंत्रण को लेकर घर के भीतर चल रही लड़ाई अब सबके सामने आ गई थी।
नई दिल्ली:
सपा में झगड़े की शुरुआत माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के विलय के फैसले से होती है। अखिलेश ने इस मामले में तत्काल कार्रवाई करते हुए विलय में अहम भूमिका निभाने वाले बलराम यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था। बलराम यादव ने यह पहल शिवपाल यादव के कहने पर की थी, इसलिए अखिलेश का यह फैसला शिवपाल को नागवार गुजरा।
इसके साथ ही पार्टी और सरकार में नियंत्रण को लेकर घर के भीतर चल रही लड़ाई सार्वजनिक तौर पर सामने आ गई और फिर पार्टी और सरकार के भीतर स्थितियां तेजी से बदली।
सितंबर महीने में अखिलेश यादव ने शिवपाल के करीबी समझे जाने वाले मुख्य सचिव दीपक सिंघल को बर्खास्त कर दिया।
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आलोक रंजन के हटने के बाद अखिलेश यादव वैसे भी दीपक सिंघल को चीफ सेक्रेटरी बनाने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन शिवपाल से करीब होने के कारण वह चीफ सेक्रेटरी बनने में सफल रहे।
सिंघल की बर्खास्तगी से एक दिन पहले ही अखिलेश यादव ने सपा सरकार के दो मंत्रियों गायत्री प्रजापति और राज किशोर सिंह को बर्खास्त किया था। खनन घोटाले में सीबीआई जांच नहीं कराए जाने की राज्य सरकार की याचिका खारिज होने के बाद गायत्री प्रजापति को बर्खास्त किया गया तो जमीन घोटाले का आरोप लगने के कारण अखिलेश ने राज किशोर सिंह की छुट्टी कर दी। यह महज संयोग नहीं था कि दोनों ही मंत्री शिवपाल के करीबी थे।
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सिंघल की बर्खास्तगी का फैसला शिवपाल सिंह यादव के जरिये मुलायम सिंह यादव को ठीक नहीं लगा और उन्होंने सरकार और पार्टी के बीच फर्क बनाते हुए अखिलेश यादव से पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी छीनते हुए उस पर भाई शिवपाल को बिठा दिया।
इसके बाद लगा कि नियंत्रण को लेकर चल रही लड़ाई में अखिलेश की हार हो गई। इसकी वजह यह थी कि पार्टी प्रेसिडेंट का पद हाथ से चले जाने की वजह से टिकटों के बंटवारे का अधिकार भी शिवपाल के हाथ में चला गया। लेकिन अखिलेश हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने फिर से पार्टी के भीतर अपने को मजबूत करना शुरू किया।
लेकिन शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव की सरपरस्ती में फिर से पार्टी के भीतर मौजूद अखिलेश समर्थकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। हालांकि इस बार अखिलेश पूरी तरह से तैयार थे और उन्होंने जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट को अपना नया ठिकाना बना लिया। साथ ही उन्होंने चुनाव प्रचार में हो रही देरी का हवाला देते हुए पार्टी के सिल्वर जुबली समारोह में आने से मना कर दिया।
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अखिलेश की बगावत के बाद पार्टी में बैठकों का दौर शुरू हुआ। पहले शिवपाल ने जिलाध्यक्षों की बैठक बुलाई लेकिन अखिलेश इसमें नहीं गए। हालांकि इस बैठक में शिवपाल नरम पड़ते नजर आए और उन्होंने अखिलेश के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की घोषणा की। लेकिन मुलायम अड़े रहे।
शनिवार की बैठक में मुलायम सिंह ने सपा पार्षद उदयवीर सिंह को पार्टी से 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखाया। अखिलेश के करीबी सिंह ने कुछ दिनों पहले ही मुलायम सिंह यादव को लेटर लिखकर अखिलेश को पार्टी का नेशनल प्रेसिडेंट बनाए जाने की अपील की थी। उन्होंने यह भी लिखा था कि मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी अखिलेश के खिलाफ साजिश कर रही है।
इसके बाद अखिलेश ने 24 अक्टूबर से पहले रविवार को ही पार्टी विधायकों और पार्षदों की बैठक बुला ली जबकि पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह ने 24 अक्टूबर को पार्टी विधायकों और पार्षद की बैठक बुलाई थी। बैठक में अखिलेश ने शिवपाल यादव समेत उनके करीबी चार मंत्रियों को कैबिनेट से बर्खास्त कर यह साफ कर दिया कि वह मुलायम सिंह के उत्तराधिकारी है। अखिलेश की इस फैसले के बाद अब सबकी नजर मुलायम सिंह पर जा टिकी है। खबरों के मुताबिक मुलायम सिंह ने सोमवार को पार्टी के सभी पदाधिकारियों, विधायकों और पार्षदों की बैठक बुलाई है।
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