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AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट से कहा ट्रिपल तलाक के मसले पर बरगलाया जा रहा है, 30 मार्च को होगी सुनवाई

एआईएमपीएलबी ने ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथा के खिलाफ दी गई दलीलों को रद्द करने की मांग की है और कहा इनके खिलाफ दी गई दलीलों को लागू नहीं किया जा सकता है।

Updated on: 27 Mar 2017, 06:52 PM

नई दिल्ली:

ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है। एआईएमपीएलबी ने ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथा के खिलाफ दी गई दलीलों को रद्द करने की मांग की है और कहा इनके खिलाफ दी गई दलीलों को लागू नहीं किया जा सकता है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 30 मार्च को होगी।

संगठन ने दावा किया है कि ट्रिपल तलाक के खिलाफ किसी भी तरह का आदेश उनके धार्मिक परंपराओं को मानने और उसका पालन करने में दखल होगा।

बोर्ड ने कहा है कि याचिकाओं को मुस्लिम पर्सनल लॉ को बिना समझे दायर की गई है। साथ ही उन्होंने कहा है किसी भी तरह का संवैधानिक बदलाव भारतीय परिवेश को देखते हुए किया जाना चाहिये। किसी दूसरे देश के इन नियमों में बदलाव और सुधारों को भारत में लागू नहीं किया जा सकता है।

AIMPLB की सुप्रीम कोर्ट में दलील

  • मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ याचिका लागू नहीं की जा सकती है क्योंकि मौलिक अधिकार निजता पर लागू किया जा रहा है।
  • संविधान में 14, 15 और 21 के तहत जो अधिकार दिये गए हैं वो विधायिका और कार्यपालिका के खिलाफ लागू होते हैं न कि व्यक्ति पर
  • वर्तमान में याचिकाकर्ता जिस मुद्दे पर न्यायिद आदेश की मांग कर रहा है वो धारा 32 के अदिकार क्षेत्र के बाहर है। इस धारा के तहत निजी अधिकार को शामिल नहीं किया जा सकता है।
  • याचिकाकर्ता द्वारा हलाला की अवधारणा को गलत समझा गया है। जिसके तहत कहा गया है कि अगर एक महिला को तलाक दिया जाता है तो वो अपने पति से दोबारा शादी नहीं कर सकती जबतक कि वो दूसरी शादी न कर ले। जिसे याचिकाकर्ता द्वारा निकाह हलाला कहा जा रहा है। जबकि निकाह हलाला जैसी कोई धारणा इस्लाम में नहीं है।
  • शरीयत के तहत शादी एक जीवन भर का संबंध है और इस संबंध को तोड़ने से रोकने के लिये कई प्रावधान हैं। यदि संबंध ठीक न हों तो तलाक अंतिम हल है।

केंद्र सरकार की दलील

केंद्र ,सरकार ने कहा था कि कि ट्रिपल तलाक से लैंगिक समानता के अधिकार, धर्मनिरपेक्षता और अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन होता है। सरकार की चार दलीलें थीं।

1. ट्रिपल तलाक के प्रावधान को संविधान के तहत दिए गए समानता के अधिकार और भेदभाव के खिलाफ अधिकार के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

2. केंद्र ने कहा कि लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ समझौता नहीं हो सकता।

3. केंद्र सरकार ने कहा है कि भारत जैसे सेक्युलर देश में महिला को जो संविधान में अधिकार दिया गया है उससे वंचित नहीं किया जा सकता। साथ ही क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में आता है? जिसके तहत कोई भी कानून आवैध है औगर वो संविधान के दायरे से बाहर है।

4. ये परंपरा उन अंतरराष्ट्रीय संधियों के खिलाफ है जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किया है। केंद्र ने कहा है कि तमाम मुस्लिम देशों सहित पाकिस्तान के कानून का भी केंद्र ने हवाला दिया जिसमें तलाक के कानून को लेकर रिफॉर्म हुआ है और तलाक से लेकर बहुविवाह को रेग्युलेट करने के लिए कानून बनाया गया है।