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म्यांमार में तख्तापलट के बाद बॉर्डर पर हालात और कलादान प्रोजेक्ट की ग्राउंड रिपोर्ट

म्यांमार में तख्ता पलट के बाद मिलिट्री शासन की वापसी हो गयी है और इसके पीछे चीन की साजिश को लेकर भी सवाल उठने लगे है.

Updated on: 21 Mar 2021, 08:50 PM

म्यांमार बॉर्डर :

म्यांमार में तख्ता पलट के बाद मिलिट्री शासन की वापसी हो गयी है और इसके पीछे चीन की साजिश को लेकर भी सवाल उठने लगे है. म्यांमार की स्थिति पर भारत भी नजरे गड़ाये बैठा है और इसकी दो प्रमुख वजह है; एक तो म्यांमार से भागकर भारत मे शरणार्थियों का आना और दूसरा भारत म्यांमार के बीच चल रहे सामरिक महत्व के सबसे बड़े कालादान प्रोजेक्ट को मूर्त रूप देना. ऐसे में न्यूज़ नेशन ने म्यांमार बार्डर का रुख किया ताकि भारत के निवेश से तैयार हो रहे इस प्रोजेक्ट की जमीनी हालात से देश को रु ब रु कराया जा सके, साथ ही बॉर्डर पर स्थिति क्या है इससे भी अवगत हुआ जा सके.

कलदान प्रोजेक्ट से क्यों घबराता है चीन 

कलादान मल्टी मॉडल प्रोजेक्ट भारत के उन महत्वकांक्षी योजनाओ में से एक है जो नार्थ ईस्ट पर चीन की साजिशों पर ब्रेक लगाने के लिए शुरू किया गया था. नार्थ ईस्ट भारत से सिलगिडी कॉरिडोर के जरिये जुड़ता है और यह महज 22 किमी का हिस्सा है जिसके चलते इसे चिकेन नेक भी कहा जाता है. चीन की साजिश रही है कि नार्थ ईस्ट में कनफ्लिक्ट या युद्ध की स्थिति में इस चिकेन नेक को भारत से काट दिया जाये और इसी साजिश को देखते हुए भारत ने कालादान प्रोजेक्ट शुरू किया जो म्यांमार के रास्ते भारत को एक मल्टी मॉडल ट्रांजिट रुट देने वाला है. साथ ही नार्थ ईस्ट स्टेट मिजोरम के लिए गेटवे ऑफ ईस्ट रास्ता खोलने वाला है.

इस प्रोजेक्ट के तीन हिस्से है- सी रुट, रिवर रुट और रोड रुट..

कोलकाता से म्यांमार में सितवे सी रुट है 590 किमी का है और यह बनकर तैयार है, साथ ही ऑपरेशनल भी है. सितवे से शुरू होता है रिवर रुट जो कालदान नदी पर बना है और यह 158 किमी का है जो म्यांमार के पलेतवा में खत्म होता है. पलेतवा से रोड रुट शुरू होता है जो कले तवा होते हुए भारतीय सीमा पर आता है और इस जगह को जोरिनपुई कहते है. जोरिन पुई तक म्यांमार के हिस्से में यह सड़क लगभग 110 किमी लंबी है.

भरतीय हिस्से में कलदान प्रोजेक्ट की सड़क जोरिन पुई से शुरू होकर मिज़ोरम में लॉंगतलयी तक आती है और यहा से फिर आइजोल की सड़क कनेक्ट हो जाती है जो कि नेशनल हाईवे है. यह प्रोजेक्ट 2008 में शुरू हुआ था और 2018 में पूरा होना था लेकिन अब भी काम पूरा नही हुआ. इस बीच प्रोजेक्ट कॉस्ट भी कई गुणा बढ़ चुका है. अभी तक के अगर प्रोजेक्ट की स्थिति पर नजर डाले तो सी रुट चालू है, रीवर रुट में ड्रेजिंग का काम पूरा हो चुका है, भारत के हिस्से में सड़क का काम भी पूरा होने वाला है लेकिन म्यांमार में अभी सड़क का बड़ा काम बाकी है.

मिजोरम की सीमा पर क्या है चीन की साजिश

भरतीय हिस्से में 8 ब्रिज है जबकि म्यांमार के हिस्से में 25 ब्रिज है. यह इलाका साल के 6 महीने वर्षा से प्रभावित रहता और कच्चे पहाड़ होने के चलते भू स्खलन भी अत्यधिक होता है. काम के स्लो स्पीड की एक वजह तो यह है लेकिन इससे बड़ी वजह म्यांमार के हिस्से ने अरक्कन आर्मी जिसे चीन फंड देता रहा है ताकि वह इस प्रोजेक्ट को डिस्टर्ब करता रहे. 2019 में प्रोजेक्ट से जुड़े 5 लोगों को अगवा किया गया था जिसमे एक की मौत भी हो गयी थी. हालांकि म्यांमार के रखाइन स्टेट में भी इस प्रोजेक्ट की शिद्दत से जरूरत है जो कनेक्टिविटी को बढ़ायेगा और इसी चलते पिछले साल से अब तक यहा माहौल नियंत्रण में है.

चीनी फंड और हथियारो के दम पर चलने वाली अरक्कन आर्मी  और म्यांमार की आर्मी के बीच अगर भिड़ंत को देखे तो बीते सालों में ऐसी 600 घटनाओं का रिकॉर्ड है. वही चीन उग्रवादियों से मुक्त हो चुके मिजोरम में फिर से उग्रवाद को हवा देने की भी साजिश करता रहा है. इन सभी हालातो के बीच भारत की कोशिस है की यह प्रोजेक्ट जल्द से जल्द पूरा हो ताकि नार्थ ईस्ट को एक नया मल्टी मॉडल ट्रांसपोर्ट ट्रांजिट रुट मिले. इस रूट के खुल जाने से  नार्थ ईस्ट में भारत को एक और सामरिक महत्व का नया रास्ता मिलेगा जिससे होकर सेना हर सैन्य संसाधन को तनाव की स्थिति में चीन के खिलाफ खड़ा किया जा सकेगा. साथ ही यह प्रोजेक्ट भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी को भी मिजोरम के रास्ते नया आयाम देगा...