भारत ने रूस के साथ पांचवीं जेनरेशन के फाइटर एयरक्राफ्ट्स परियोजना पर काम शुरू करने से पहले अपनी शर्त रखी है। भारत का कहना है कि वह जॉइंट डिवेलपमेंट और प्रॉडक्शन के काम को तभी शुरू करेगा, जब रूस उसे टेक्नॉलजी के पूरी तरह ट्रांसफर पर सहमत हो जाए।
ट्रांसफर को लेकर भारत का कहना है कि वह सुखोई एयरक्राफ्ट वाली गलती नहीं दोहराना चाहता है। सुखोई एयरक्राफ्ट खरीदने के दौरान तकनीकी हस्तांतरण नहीं हुआ था।
पांचवीं पीढ़ी के एयरक्राफ्ट्स परियोजना पर काम करने के लिए रूस ने भारत के सामने दो मांगें रखी हैं। पहला मांग है कि डील में टेक्नॉलजी के पूर्ण हस्तांतरण पर सहमति होनी चाहिए जिससे कि भविष्य में भारत अपने स्तर पर ही इन एयरक्राफ्ट्स को अपग्रेड कर सके।
इसके अलावा दूसरी मांग है कि रूस पांचवीं पीढ़ी के फाइटर एयरक्राफ्ट्स तैयार करने के दौरान स्वदेशी प्रॉजेक्ट में भारत की मदद करे।
तकनीकी हस्तांतरण को लेकर रक्षा मंत्रालय का मानना है कि ऐसा होने से भारत को स्वदेशी एयरक्राफ्ट्स तैयार करने में काफी मदद मिलेगी। डिफेंस मिनिस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि यह फैसला शीर्ष स्तर से लिया गया है ताकि सुखोई-30MKI जेट विमानों की डील में हुई गलती को दोहराया न जा सके।
सुखोई डील के दौरान भारत की ओर से सबसे बड़ी चूक यह हुई थी कि वह रूस से पूर्ण तकनीकी हस्तांतरण नहीं कर पाया था। यदि ऐसा होता तो भारत की घरेलू स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग क्षमता में बढ़ोतरी होता।
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रूस की ओर से पांचवीं जेनरेशन के फाइटर एयरक्राफ्ट्स की डील को लेकर भारत का कहना है कि 127 सिंगल सीट जेट्स पर 25 अरब डॉलर की लागत पर्याप्त होगी या नहीं।
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दोनों देशों ने 2007 में इन एयरक्राफ्ट्स के करार पर सहमति जताई थी, इसके बाद 2010 में 295 मिलियन डॉलर का शुरुआती डिजाइन करार हुआ था।
Source : News Nation Bureau