पंजाब के बाद अब राजस्थान पर टिकी निगाहें, कभी भी पलट सकता है पासा
पंजाब की राजनीति में लंबे समय से चली आ रही सियासी हलचलें फिलहाल जरूर थम गई हैं, लेकिन अब राजस्थान में सियासी पारा चढ़ा हुआ है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी के ट्वीट और उनके इस्तीफा देने के बाद राजस्थान की राजनीति फिर से गरमा गई है.
highlights
- राजस्थान में भी चढ़ सकता है सियासी पारा
- राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने को लेकर सुगबुगाहटें तेज
- मुख्यमंत्री बदलने को लेकर पायलट समर्थक भी रख सकते हैं मांग
नई दिल्ली:
पंजाब की राजनीति में लंबे समय से चली आ रही सियासी हलचलें फिलहाल जरूर थम गई हैं, लेकिन अब राजस्थान में सियासी पारा चढ़ा हुआ है. पंजाब के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा के ट्वीट और उनके इस्तीफा देने के बाद राजस्थान की राजनीति फिर से गरमा गई है. इस घटनाक्रम के बाद राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने को लेकर सुगबुगाहटें जरूर तेज हो गई हैं. ये चर्चाएं चल रही है कि क्या गांधी परिवार यहां भी बदलाव कर प्रदेश की कमान किसी युवा नेता को देंगे. पिछले कुछ समय से पंजाब के घटनाक्रम पर सचिन पायलट के समर्थकों की नजरें टिकी थीं. माना जा रहा है कि जिन वजहों से पंजाब में अमरिंदर सिंह की बातों को नजरअंदाज कर पार्टी ने सिद्धू को आगे किया गया, अब यहीं मांग राजस्थान में पायलट के समर्थक भी रखेंगे.
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गहलोत के ओएसडी ने क्यों दिया इस्तीफा
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने अपना इस्तीफा शनिवार देर रात करीब 12.30 बजे अपना इस्तीफा सीएम गहलोत को भेजा था. इस्तीफे के पीछे की वजह उन्होंने खुद के एक ट्वीट बताया है. ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि ''मजबूत को मजबूर, मामूली को मगरूर किया जाए…। बाड़ ही खेत को खाए, उस फसल को कौन बचाए''! शर्मा ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि उनके इस ट्वीट को राजनीतिक रंग देते हुए पंजाब के घटनाक्रम से जोड़ा जा रहा है, जिससे वह अपना इस्तीफा दे रहे हैं.
पायलट समर्थक इंतजार में
पंजाब में मुख्यमंत्री बदलाव के बाद अब सचिन पायलट के समर्थक राजस्थान में भी मुख्यमंत्री बदलाव की मांग कर सकते हैं. यहां यह मांग जरूर उठ सकती है यहां भी युवा नेता को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंप दी जाए. गौरतलब है कि करीब 6 महीने पहले गांधी परिवार ने पायलट और गहलोत के बीच विवाद को सुलझाया था. उस वक्त सचिन पायलट से कहा गया था कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा. लेकिन अभी इस मोर्चे पर कोई फैसला नहीं लिया गया है, लेकिन पंजाब में नए मुख्यमंत्री की नियुक्ति के बाद पायलट के समर्थक अब बेहद उतावले हो रहे हैं.
एक जैसी है राजस्थान और पंजाब में सियासी रार
पंजाब और राजस्थान में सियासी रार लगभग एक जैसी है. हालांकि पंजाब में कांग्रेस ने यहां की सियासी हलचलों को थोड़ी देर के लिए शांत जरूर कर दिया है, लेकिन अब राजस्थान की राजनीति में मुख्यमंत्री बदलाव की चर्चाएं तेज हो गई हैं. पंजाब लंबे अरसे से अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच लड़ाई चल रही थी जिसका अंत कैप्टन अमरिंदर को इस्तीफा देकर चुकाना पड़ा. राजस्थान में भी लगभग एक जैसी स्थिति है. यहां भी सचिन पायलट खेमे और गहलोत खेमे में लंबे अरसे से लड़ाई चल रही है, पायलट खेमा कई बार मुख्यमंत्री को बदलने की बात कर चुका है.
एक साल से है तनातनी
एक साल से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट आमने-सामने हैं. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तैयार किए गए समझौते के फार्मूले से अभी तक रिश्ते में नरमी नहीं आई है, कई सांसद इस बात से नाराज हैं कि कैबिनेट में फेरबदल का वादा पूरा होने में अधिक समय लग रहा है. पंजाब में कांग्रेस द्वारा कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाए जाने से राजस्थान की राजनीति पर भी असर पड़ सकता है, जहां एक और कांग्रेस सरकार गुटीय प्रतिद्वंद्विता से जूझ रही है. एक साल से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट आमने-सामने हैं. राजस्थान में राज्य के चुनाव अभी भी दिसंबर 2023 में दो साल से अधिक दूर हैं. राजनीतिक विश्लेषक मनीष गोधा ने कहा, "गहलोत गांधी परिवार के भी बहुत करीब हैं." यह सुझाव देते हुए कि राजस्थान में पंजाब की पुनरावृत्ति की संभावना नहीं है. हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि पार्टी नेतृत्व को असंतुष्टों को शांत करने के लिए काम करना होगा क्योंकि समय समाप्त हो रहा है.
करीबी भी कर रहे बदलाव की बात
वहीं पायलट के करीबी एक अन्य विधायक ने कहा, पंजाब में पार्टी नेतृत्व ने जो किया है, उससे हमारा विश्वास बढ़ा है कि यहां भी बदलाव होंगे. ऊपर उद्धृत दूसरे नेता ने कहा, 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बदलाव अधिक हैं जहां कांग्रेस तीन अंकों के निशान को देख रही है. वहीं गहलोत के करीबी माने जाने वालों ने कहा कि अमरिंदर और गहलोत में बहुत बड़ा अंतर है. “अमरिंदर मुख्यमंत्री पद के लिए दिल्ली की पसंद नहीं थे, जबकि गहलोत को दिल्ली बुलाया गया और सीएम के रूप में घोषित किया गया. इसके अलावा, गहलोत को राज्य में 100 से अधिक विधायकों का समर्थन प्राप्त है.
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