केंद्र के आश्वासन पर 'संदेह' के बीच किसानों ने दिल्ली पहुंचकर ख़त्म की पद यात्रा
मंगलवार देर रात करीब 12:30 बजे पुलिस ने बैरियर खोल दिए और किसानों को दिल्ली में प्रवेश की इजाजत दे दी.
नई दिल्ली:
ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) ने मंगलवार को कहा कि दिल्ली - उत्तर प्रदेश सीमा पर किसानों के शांतिपूर्ण विरोध मार्च को रोकने के लिए गांधी जयंती पर पुलिस की कार्रवाई बर्बरतापूर्ण थी और उनकी मांगों पर विचार करने का केंद्र का आश्वासन 'झांसा' लगता है. बता दें कि मंगलवार को दिल्ली पुलिस ने किसानों और पुलिस के बीच हिंसक संघर्ष देखने को मिला था. किसानों को दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर रोकने के लिए यूपी और दिल्ली, दोनों राज्यों की पुलिस ने पूरा जोर लगा दिया, मगर जीत किसानों की ही हुई.
मंगलवार देर रात करीब 12:30 बजे पुलिस ने बैरियर खोल दिए और किसानों को दिल्ली में प्रवेश की इजाजत दे दी.
दिल्ली में प्रवेश की इजाजत मिलने के बाद भारतीय किसान संघ (बीकेयू) के प्रमुख नरेश टिकैत की अगुआई में हजारों किसान 200 से अधिक ट्रैक्टरों पर सवार होकर किसान घाट पहुंचे.
टिकैत ने इसे किसानों की जीत बताया. उन्होंने कहा, 'सभी कठिनाइयों के बावजूद किसान जुटे रहे. हम अब 12 दिनों से मार्च कर रहे हैं. किसान थके हुए हैं. हम सरकार से अधिकारों की मांग जारी रखेंगे, लेकिन अब हम पदयात्रा खत्म कर रहे हैं.'
उन्होंने कहा कि किसान बुधवार को सुबह जल्दी लौट जाएंगे. एआईकेएस ने कहा कि देश के किसान केंद्र और अनेक बीजेपी नीत राज्य सरकारों के हमले का सामना कर रहे हैं. एआईकेएस के महासचिव और वामपंथी नेता अतुल कुमार अन्जान ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा महात्मा गांधी के विचारों को लेकर तथाकथित प्रतिबद्धता महज दिखावटी प्रेम और घड़ियालू आंसू बहाना है.
उन्होंने पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा, 'गांधी जयंती पर शांतिपूर्ण तरीके से दिल्ली आ रहे किसानों पर एक बार फिर बर्बरतापूर्ण पुलिस कार्रवाई की गयी.'
स्वामीनाथन आयोग में भारतीय किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्जान ने दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर किसानों पर की गयी कार्रवाई की निंदा की.
अन्जान ने कहा कि गांधी के सिद्धांतों का पालन करने का दावा करने वाली मोदी सरकार ने शांतिपूर्ण किसानों पर निशाना साधकर राष्ट्रपिता का अपमान किया है.
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एआईकेएस नेता ने कहा कि राजनाथ सिंह द्वारा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और कृषि रिण में छूट देने जैसी किसानों की मांग को तथाकथित रूप से स्वीकार करना 'झांसा' देना है.
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