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हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता (फाइल फोटो)
जमात-ए-इस्लामी की तर्ज पर भारत सरकार हुर्रियत कांफ्रेंस पर भी पाबंदी लगाने की सोच रही है. सूत्रों का कहना है कि इस बारे में सुरक्षा एजेंसियों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया था. गृह मंत्रालय के उच्चस्तरीय सूत्रों का कहना है कि सरकार जीरो टोलरेंस नीति के तहत यह बड़ा कदम उठाने की सोच रही है.
क्या है हुर्रियत कांफ्रेंस
13 जुलाई 1993 को कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को राजनीतिक रंग देने के मकसद से ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस (एपीएससी) का गठन हुआ था. यह संगठन उन तमाम पार्टियों का एक समूह था, जिसने 1987 में हुए चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन के खिलाफ आए थे. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस मुख्यत: जम्मू-कश्मीर में चरमपंथी संगठनों से संघर्ष कर रही भारतीय सेना की भूमिका पर सवाल उठाने के अलावा मानवाधिकार की बात करती है. भारतीय सेना की कार्रवाई को सरकारी आतंकवाद का नाम देती है. 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के समारोहों का बहिष्कार भी करती आई है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने अभी तक एक भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ख़ुद को कश्मीरी जनता का असली प्रतिनिधि बताती है.
एक दिन पहले ही लगा है जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध
नरेंद्र मोदी सरकार ने गुरुवार को गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम 1967 की धारा 3 के तहत, जमात-ए-इस्लामी (JeI) को "गैरकानूनी संघ" घोषित कर दिया है. जमात-ए-इस्लामी ऐसा पहला संगठन है जिसने इस्लाम की आधुनिक संकल्पना के आधार पर एक विचारधारा को तैयार किया. एक रिपोर्ट के मुताबिक जमात ने आतंक को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाई है. दिलचस्प बात यह है कि जमात लोकसभा और विधानसभा के चुनाव भी लड़ चुकी है और आधिकारिक रूप से किसी भी सशस्त्र विद्रोह से दूरी बनाकर रखती है.
Source : News Nation Bureau